मुंबई, 4 जनवरी (विश्वास/वीएनआई)| अपनी कप्तानी से दुनिया भर के कप्तानों को आश्चर्यचकित करने वाले भारत के सबसे सफल कप्तानों में शामिल महेन्द्र सिंह धोनी ने सीमित ओवरों की कप्तानी छोड़ने के फैसले से भी क्रिकेट जगत को आश्चर्य में डाल दिया। बीसीसीआई ने बीते बुधवार को एक बयान में धोनी के कप्तानी छोड़ने के फैसले की पुष्टि की।
भारत के मैजिकल कप्तान के नाम से मशहूर धोनी ने इससे पहले वर्ष 2014 में ऑस्ट्रेलिया दौरे के बिच में ही टेस्ट कप्तानी छोड़ अपने फैसले से सबको हैरत में डाल दिया था। हालाँकि उम्मीद जताई जा रही है कि वर्ल्डकप 2019 कि तैयारी को देखते हुए टेस्ट के कप्तान विराट कोहली को अपनी टीम तैयार करने के लिए धोनी ने कप्तानी छोड़ी है ऐसे में विराट कोहली को टेस्ट के बाद एकदिवसीय और टी-20 की कप्तानी का मौका मिलना तय है। वैसे भारतीय क्रिकेट में कप्तानी का इतिहास गजब का रहा है ज्यादा पीछे ना जाते हुए 20 के दशक की बात करे तो जब भारत मैच फिक्सिंग के दौर से गुजर रहा था तो सौरव गांगुली ने भारत की कमान संभालकर भारत की नई टीम तैयार की जिसने विदेशो में जाकर भारत का तिरंगा लहराना सीख लिया और विदेशी जमी पर भारत ने जीतने की आदत डाली। गांगुली वैसे आक्रामक कप्तान के रूप में मशहूर थे, उन्होंने 2002 नेटवेस्ट ट्रॉफी में लॉर्ड्स में भारत भारत को जीत दिलाकर इंग्लैंड में पहली बार सीरीज जीती, उसके बाद 2003 वर्ल्डकप के फाइनल में भारत को पहुँचाया, लेकिन 2007 राहुल द्रविड़ की कप्तानी में ख़राब दौर से गुजर रही टीम की कमान गांगुली के विपरीत कप्तान कूल के नाम से पहचाने जाने वाले धोनी ने टीम की नई संरचना की और भारत को एक और ऊँचाई पर ले गए। उन्होंने भारत को 2007 टी-20 वर्ल्डकप और 2011 वर्ल्डकप में भारत को विजेता बनाया। लेकिन अब दौर विराट कोहली का है तो अब देखना है की कोहली टेस्ट में भारत को ऊंचाई तक पहुँचाने के बाद एकदिवसीय और टी-20 में कितनी ऊंचाई पर भारत का तिरंगा ले जाते है।
धोनी करियर की बात करे तो, धोनी का जन्म 7 जुलाई 1981 में बिहार के छोटे से शहर रांची में (जो अब झारखण्ड में है) एक राजपूत परिवार में हुआ है, धोनी को शुरू से ही खेलों में रूचि थी, धोनी ने पहले जिला और क्लब स्तर पर फुटबॉल में बतौर गोलकीपर शुरुआत की, लेकिन 10वीं के बाद धोनी ने क्रिकेट की तरफ पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया और अंडर-16 वीनू मांकड़ ट्रॉफी में अपने प्रदर्शन से खुश कर क्रिकेट में अपने आगाज़ की दस्तक दे दी थी। धोनी ने 1999-2000 में बिहार की तरफ से 18 वर्ष की आयु में रणजी ट्रॉफी में पदार्पण किया, लेकिन बिहार से झारखण्ड अलग होने के बाद 2002-2003 में झारखण्ड की तरफ से रणजी में प्रतिनिधित्व किया, लेकिन 2003-2004 के घरेलु सत्र में देवधर ट्रॉफी में ईस्ट जोन की तरफ से खेलते हुए चार मैचों में एक शतक की मदद से 244 रन बनाकर राष्ट्रीय चयनकर्ताओ का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। इसी बीच धोनी ने 2001 से 2003 के बीच खड़गपुर रेलवे स्टेशन पर टिकट कलेक्टर की नौकरी भी की।
धोनी के एकदिवसीय करियर की शुरुआत कुछ खास नहीं रही, धोनी को जिस दौर में भारतीय क्रिकेट टीम में 2004 के बांग्लादेश दौरे पर चुना गया, उस समय भारतीय क्रिकेट में विकेटकीपर के रूप में दिनेश कार्तिक ओर पार्थिव पटेल अपनी पहचान बना रहे थे। हालाँकि बांग्लादेश दौरे पर धोनी अपने पहले मैच में शून्य के स्कोर पर रनआउट हो गए थे। लेकिन भारतीय क्रिकेट के इतिहास में मैजिकल धोनी का आगाज़ होना बाकी था और पाकिस्तान के खिलाफ घरेलू सीरीज में धोनी विशाखापत्तनम में 123 गेंद पर 148 रन की शानदार पारी खेल अपने चिपरिचित अंदाज़ में क्रिकेट में आगाज़ किया, उसके बाद धोनी ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और इस मैच में धोनी ने भारतीय विकेटकीपर बल्लेबाज़ के रूप में सर्वाधिक रन का इतिहास रचा। लेकिन उनकी तूफानी पारी का आगाज़ अभी होना बाकी था जिसके बाद उनकी पहचान हेलीकाप्टर शॉट के रूप में होने वाली थी। वर्ष 2005 में श्रीलंका के खिलाफ लक्ष्य का पीछा करते हुए धोनी ने तीसरे नंबर पर बल्लेबाज़ी करते हुए नाबाद 183 रन की तूफानी पारी खेल भारत को शानदार जीत दिलाई और धोनी इस मैच में विकेटकीपर बल्लेबाज़ के रूप में सबसे अधिक रन बनाने वाले दुनिया के पहले बल्लेबाज़ बने। इसके बाद धोनी एकदिवसीय में मैच विनर खिलाडी के रूप में स्थाई पहचान बन गई। फिर चाहे वो वर्ल्डकप 2011 का फाइनल ही क्यों ना हो जिसमे धोनी ने फाइनल में छक्का मार कर भारत को 23 साल बाद दूसरी बार वर्ल्डकप दिलाया। धोनी ने अबतक भारत के लिए 283 एकदिवसीय मैचों में 9 शतक और 31 अर्धशतक की मदद से 9110 रन बनाये जिसमे उनका 183 सर्वक्षेष्ठ प्रदर्शन किया है।
धोनी कप्तानी की बात करे तो वर्ल्डकप 2007 में भारत की निराशाजनक हार के बाद भारत के तत्कालीन कोच ग्रेग चैपल पर गाज गिरने के बाद एकदिवसीय कप्तान राहुल द्रविड़ पर भी गाज गिरना तय थी, इसी बीच भारत के महान बल्लेबाज़ सचिन तेंदुलकर ने खुद कप्तानी लेने से इंकार कर दिया और धोनी को कप्तानी सौंपे जाने की वकालत की। इसी दौरान आईसीसी ने पहली बार टी-20 विश्व कप कराने का फैसला किया, और भारत ने धौनी को कप्तानी की परीक्षा के तौर पर इस टी-20 विश्वकप में पहली बार कप्तान की जिम्मेदारी सौंप दी। उनकी पहली परीक्षा काफी मुश्किल थी, पाकिस्तान को फाइनल में हराकर धौनी ने इस विश्व कप से अपनी कप्तानी की शुरुआत की और भारत को विजेता बनाकर स्वदेश लौटे। उनके प्रदर्शन से खुश होकर चयनकर्ताओ ने उनके ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एकदिवसीय टीम की कमान भी सौंप दी। उसके बाद वर्ष 2008 में अनिल कुंबले के टेस्ट से सन्यास के बाद धोनी को टेस्ट टीम की भी कमान मिल गई और 2009 में धोनी ने भारत को टेस्ट में न० 1 के स्थान पर पहुंचा दिया था। धौनी भारत के इकलौते ऐसे कप्तान हैं जिन्होंने आईसीसी के सभी आयोजनों में टीम को जीत दिलाई है। धौनी की कप्तानी में भारत ने 2007 में टी-20 विश्व कप और 2011 में 50 ओवरों के विश्व कप का खिताब हासिल कर इतिहास रचा, और 2013 में इंग्लैंड में हुई चैम्पियंस ट्रॉफी पर भी कब्जा जमाया। उन्होंने 2015 में हुए विश्व कप में भारत को सेमीफाइनल तक ले गए।
धौनी ने 60 टेस्ट मैचों में टीम की कमान संभाली जिसमें 27 में उन्हें जीत और 18 में हार मिली जबकि 11 मैच ड्रॉ रहे। वहीँ धौनी ने कुल 199 मैचों में एकदिवसीय मैच में टीम का नेतृत्व किया। उन्होंने कुल 110 मैचों में जीत दिलाई जबकि 74 मुकाबलों में उन्हें हार मिली। चार मुकाबले टाई और 11 मैचों का कोई परिणाम नहीं निकला। कप्तान रहते हुए एक बल्लेबाज के तौर पर भी धौनी कामयाब रहे। उन्होंने कप्तान रहते एकदिवसीय में 54 का औसत और 86 के स्ट्राइक रेट से 6,683 रन बनाए। जबकि उन्होंने 72 टी-20 मैचों में टीम की कमान संभाली और 41 जीत टीम को दिलाई और 28 हारों का सामना किया। एक मैच टाई और दो मैचों का परिणाम नहीं निकला। वह टी-20 में सबसे ज्यादा मैचों में कप्तानी करने वाले खिलाड़ी हैं। टी-20 में कप्तान रहते उन्होंने 122.60 के स्ट्राइक रेट से 1112 रन बनाए। टी-20 में वह बिना अर्धशतक लगाने के बाद सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज भी हैं। टी-20 में उनका सर्वोच्च स्कोर नाबाद 48 है। धौनी की कप्तानी में ही भारत ने अब तक खेले गए छह टी-20 विश्व कप में हिस्सा लिया और धौनी की कप्तानी में भारत दो बार विश्व कप के फाइनल तक पहुंचा। एक बार टीम विजेता बनी तो 2014 में उपविजेता। 2014 के फाइनल में उसे श्रीलंका ने मात दी। पिछले साल भारत की मेजबानी में हुए टी-20 विश्व कप में भी भारत ने सेमीफाइनल में जगह बनाई, जहां उसे वेस्टइंडीज के हाथों हार का सामना करना पड़ा। धौनी ने कप्तानी में अपनी सफलता इंडियन सुपर लीग (आईपीएल) में भी जारी रखी। उन्होंने इस समय निलंबित चल रही चेन्नई सुपर किंग्स को दो बार आईपीएल का विजेता बनाया जबकि चार बार उपविजेता बनी। चेन्नई ने धौनी के कप्तान रहते हर साल आईपीएल के सेमीफाइनल में जगह बनाई। वह विश्व क्रिकेट में सबसे ज्यादा एकदिवसीय मैचों में कप्तानी करने में तीसरे नंबर पर आते हैं। उनसे ज्यादा आस्ट्रेलिया के रिकी पोंटिंग और न्यूजीलैंड के स्टीफन फ्लेमिंग ने एकदिवसीय मैचों में कप्तानी की है। धौनी को क्रिकेट इतिहास में करिश्माई कप्तान भी कहा जाता है। क्रिकेट के मैदान पर उन्होंने कई बार ऐसे जोखिम उठाए जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
धोनी को उनके शानदार प्रदर्शन के लिए वर्ष 2008 और 2009 में आईसीसी एकदिवसीय क्रिकेट ऑफ़ द ईयर का पुरस्कार से नवाजा गया और 2013 में आईसीसी एलजी पीपल चॉइस अवार्ड मिला। वर्ष 2007 में उन्हें राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार मिला, जोकि खेल की दुनिया में सर्वोच्च पुरस्कार है और 2009 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाज गया जो की भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है। इसके आलावा धोनी क्रिकेट की दुनिया से दूर विज्ञापनों की दुनिया में अपनी बादशाहत कायम कर चुके है। साथ ही उनका नाम सेलेब्रिटी के रूप में खूब चर्चा में रहा है, उनका नाम बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका और बिपाशा बासु के साथ जुड़ चूका है, हालाँकि उन्होंने इन सब अटकलों पर विराम लगाते हुए 4 जुलाई 2010 को उत्तराखंड की साक्षी रावत से शादी कर ली।
धोनी एकतरफ जहाँ भारत के करिश्माई कप्तान और मैच फिनिशर बल्लेबाज़ के रूप में मशहूर है और वहीँ उनकी कप्तानी में भारत का काला अध्याय भी लिखा गया, उनकी कप्तानी में भारत ने 2011 के इंग्लैंड दौर में टेस्ट में भारत ने 4-0 से शिकस्त खाई और 2011-12 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर भी टेस्ट में भारत को 4-0 से करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। लेकिन इन दो दौरे पर टीम के ख़राब प्रदर्शन की गाज धोनी पर गिरने की बजाय टीम के दो वरिष्ठ बल्लेबाज़ वीवीएस लक्ष्मन और राहुल द्रविड़ पर गिरी और उन्होंने क्रिकेट को अलविदा कह दिया, इसके साथ ही सलामी बल्लेबाज़ सहवाग और गंभीर के टीम से बाहर होने का कारण भी धोनी को माना जाता है। टेस्ट ही नहीं एकदिवसीय टीम से सहवाग, गंभीर, युवराज, हरभजन और ज़हीर खान के टीम से बाहर जाने का कारण भी धोनी को ही माना जाता है, हालाकिं उस समय इन खिलाड़ियों का प्रदर्शन भी कुछ खास नहीं रहा था। लेकिन जानकर मानते है धोनी 2011 वर्ल्डकप के बाद भारत की युवा टीम तैयार करना चाहते थे और इन सीनियर खिलाड़ियों की अपनी टीम में वापसी नहीं चाहते थे। फिर भारत दौरे पर 2012-13 में आई इंग्लैंड के हाथो भारत को घरेलु मैदान पर 1984-85 के बाद हार कर सामना करना पड़ा। उसके बाद भारत ने 2014 में फिर इंग्लैंड का दौर किया, लेकिन भारत को लॉर्ड्स टेस्ट में जीत के बावजूद फिर से पांच मैचों की टेस्ट सीरीज में 3-1 से हार कर सामना करना पड़ा और 2014-15 में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टेस्ट की कप्तानी छोड़ दी। हालाँकि जानकर मानते है की धोनी का करियर एकदिवसीय में जितना शानदार था वहीँ वो टेस्ट क्रिकेट को खुद को पूरी तरह से साबित नहीं कर पाए। टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद धोनी का करियर सीमित ओवरों में बल्लेबाज़ के तौर पर गिरता रहा है, फिर चाहे उनकी मैच फिनिशर की भूमिका पर लगातार उठते सवाल ही क्यों ना हो। 2014 टी-20 वर्ल्डकप में फाइनल में भारत को श्रीलंका के खिलाफ हार सामना करना पड़ा। बांग्लादेश में 2015 दौरे पर एकदिवसीय सीरीज में मिली हार और 2015 में ही दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ घरेलु सीरीज में मिली करारी हार शामिल है। अब देखना है की धोनी अपनी कप्तानी छोड़ने के बाद बतौर बल्लेबाज़ अपनी गिरी साख को आगामी मैचों में कितना उठा पाते है और भारत को कितने दिन तक बल्लेबाज़ के रूप में अपनी सेवा प्रदान करेंगे।