मध्यप्रदेश में राजनैतिक अनिश्चितता के बीच, अदालती लड़ाई जारी

By Shobhna Jain | Posted on 18th Mar 2020 | राजनीति
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नई दिल्ली/ बेंगलूर, 17 मार्च (वीएनआई) पिछले कुछ दिन से चल रहे मध्य प्रदेश के राजनैतिक संकट हल होने का आज भी कोई  रास्ता नहीं निकल सका. कमलनाथ सरकार के भविष्य को ले कर आज भी अनिश्चय की स्थति बनी रही.विधान सभा में फ्लोर टेस्ट करने को ले कर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज भी इस मामले की सुनवाई की. इस दौरान  दोनों ्पक्षों  ने ही बागी विधायकों को अपने अपने साथ होने का दावा किया, बाद में न्यायलय ने इस मामलें में ्कल फिर सुनवाई करने का आदेश दिया. तेजी से घट रहे घटनाक्रम के  बीच बागी विधायकों से मिलनें कॉग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय  सिंह आज बेंगलोर पहुंचे, उन से नही मिल पाने पर उन्होंने बागी विधायकों से मिलने ्को ले कर एक  याचिका कर्नाटक उच्च न्य्यालय  ने दायर की लेकिन उन की मांग ्न्यायलय  ने खारिज कर दी   दिग्विजय सिंह ने हाईकोर्ट से अपील की थी कि कर्नाटक पुलिस को आदेश दिया जाए, ताकि वह  उन्हें कांग्रेस के बाकी विधायकों से रिजॉर्ट में मिलने दे.  हाईकोर्ट ने दिग्विजय सिंह की इस अपील को ठुकरा दिया. अब मामले की सुनवाई 26 मार्च को होगी.
 
उधर  इस मामलें को ले कर उच्चतम में चल रही सुनवाई के दौरान  आज कोर्ट में कांग्रेस की ओर से वकील दुष्यंत दवे ने कहा, ''आज हम एक अजीबोगरीब स्थिति में हैं. राज्य की जनता ने कांग्रेस पार्टी (114 सीटों) पर भरोसा किया और भाजपा ने 109 सीटें जीतीं. सबसे बड़ी पार्टी ने उस दिन विश्वास मत जीता था. 18 महीनों से बहुत ही स्थिर सरकार काम कर रही थी.कांग्रेस ने  कहा, ''स्पीकर को ये देखना होगा कि इस्तीफे स्वैच्छिक हैं या नहीं.'' दवे ने आगे कहा, ''विधायकों को अगवा किया गया. राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट का जो आदेश भेजा वो पूरी तरह असंवैधानिक है.''
 
कोर्ट में दुष्यंत दवे ने कहा, ''यह साधारण फ्लोर टेस्ट का सवाल नहीं है, बल्कि बाहुबल और धन शक्ति का उपयोग करके लोकतंत्र को नष्ट करने का सवाल है.'' उन्होंने कहा, ''आज सुबह दिग्विजय सिंह बेंगलोर गए लेकिन उन्हें हिरासत में लिया गया है. वे क्या चाहते हैं, मुझे समझ नहीं आ रहा. भाजपा एक जिम्मेदार पार्टी और सत्ता में पार्टी है. हम एक संकट का सामना कर रहे हैं जो मानवता ने पहले कभी नहीं देखा है.मध्य प्रदेश के सियासी घमासान के बीच कांग्रेस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट में कांग्रेस की ओर से वकील दुष्यंत दवे ने कहा, ''आज हम एक अजीबोगरीब स्थिति में हैं. राज्य की जनता ने कांग्रेस पार्टी (114 सीटों) पर भरोसा किया और भाजपा ने 109 सीटें जीतीं. सबसे बड़ी पार्टी ने उस दिन विश्वास मत जीता था. 18 महीनों से बहुत ही स्थिर सरकार काम कर रही थी.''
 
कोर्ट में कांग्रेस की ओर से वकील दुष्यंत दवे ने कहा, ''आज हम एक अजीबोगरीब स्थिति में हैं. राज्य की जनता ने कांग्रेस पार्टी (114 सीटों) पर भरोसा किया और भाजपा ने 109 सीटें जीतीं. सबसे बड़ी पार्टी ने उस दिन विश्वास मत जीता था. 18 महीनों से बहुत ही स्थिर सरकार काम कर रही थी.'' कांग्रेस ने आगे कहा, ''स्पीकर को ये देखना होगा कि इस्तीफे स्वैच्छिक हैं या नहीं.'' दवे ने आगे कहा, ''विधायकों को अगुवा किया गया. राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट का जो आदेश भेजा वो पूरी तरह असंवैधानिक है.''
कोर्ट में दुष्यंत दवे ने कहा, ''यह साधारण फ्लोर टेस्ट का सवाल नहीं है, बल्कि बाहुबल और धन शक्ति का उपयोग करके लोकतंत्र को नष्ट करने का सवाल है.'' उन्होंने कहा, ''आज सुबह दिग्विजय सिंह वहां गए लेकिन उन्हें हिरासत में लिया गया है. वे क्या चाहते हैं, मुझे समझ नहीं आ रहा. भाजपा एक जिम्मेदार पार्टी और सत्ता में पार्टी है. हम एक संकट का सामना कर रहे हैं जो मानवता ने पहले कभी नहीं देखा है, क्या वे चाहते हैं कि अदालत अब इस पर सुनवाई करे. ऐसे में क्या अभी बहुमत परीक्षण जरूरी है? संविधान पीठ से तय करे कि क्या विधायक इस तरह इस्तीफा दे सकते हैं ? 
 
कांग्रेस की तरफ से वकील दवे ने कहा, ''स्पीकर सदन के .सर्वे सर्वा हैं, वह (गवर्नर) स्पीकर को भी ओवरराइड कर रहे हैं.कांग्रेस ने कहा कि 16 बागी विधायक अभी भी बंगलोर में है. वो अभी तक वापस मध्य प्रदेश नहीं आये. ऐसे में वो चाहते है कि कोर्ट उनकी अर्जी पर सुनवाई कर उन्हें राहत दे. दवे ने दलील में कहा, ''या तो सभी विधायक सदन में आएं या फिर इस्तीफ़ाशुदा सीटों पर फिर से चुनाव होने तक शक्तिपरीक्षण कराने की याचिका पर सुनवाई ना हो. विधायकों को जहां रखा गया है वहां एक-कमरे का खर्च 30-40 हजार है.''
 
जस्टिस चंद्रचूड ने कहा, ''जब स्पीकर ने 6 का इस्तीफा स्वीकार किया तो क्या उन्होंने सभी 22 विधायकों पर अपने विवेक का इस्तेमाल किया.'' इस पर दवे ने कहा, ''आज सबसे बुनियादी मुद्दा यह है कि राज्यपाल एक फ्लोर टेस्ट के लिए कैसे निर्देशित कर सकते हैं? वह यह तय करने वाले कोई नहीं है. इस्तीफे पर निर्णय लेने के लिए राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं है. दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता कार्यवाही में राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं है. राज्यपाल द्वारा ऐसा कोई भी आदेश संवैधानिक रूप से ठहरने वाला नहीं है.''
 
जस्टिस गुप्ता ने कहा, ''हम दसवीं अनुसूची पर नहीं हैं.'' इस पर दवे ने कहा, ''लेकिन फ्लोर टेस्ट के आदेश तो राज्यपाल ने दिए हैं.'' जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा, ''यही तो वे कर रहे हैं. वे अपनी सदस्यता छोड़ रहे हैं और मतदाताओं के पास फिर से जा सकते हैं.'' दवे ने कहा, ''यह एक बहुत ही सीमित व्याख्या है. कांग्रेस सरकार तुरंत ना हटे तो आसमान नहीं गिरेगा और शिवराज सिंह चौहान की सरकार को जनता के बीच जाना चाहिए.''
 
दवे ने कहा परिस्थिति को अलग से एकांगी तौर पर देखने की बजाय समग्र में देखा जाय. जिन विधायकों के इस्तीफे मंज़ूर हो जाएं उन सीटों पर उपचुनाव हो जाय फिर शक्ति परीक्षण हो.
 
शिव राज के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा, ''राज्यपाल राज्य के संवैधानिक मुखिया है ये उनकी जिम्मेदारी है कि वो सुनिश्चित करे कि राज्य में काम संविधान के मुताबिक चलता रहे.'' रोहतगी ने  कहा, ''यह अनसुनी बात है कि एक व्यक्ति जिसने बहुमत खो दिया है और एक दिन भी  ्पद पर नही  नहीं रह सकता, अब कह रहा है कि वह 6 महीने तक जारी रखना चाहता है. फिर से चुनाव होना चाहिए और फिर एक विश्वास मत हो.''
 
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ''मुद्दा यह है कि उन्होंने इस्तीफा दिया है इस पर स्पीकर द्वारा परीक्षण किया जाना है. स्पीकर का कर्तव्य है कि वह यह जांचने के लिए बाध्य है कि क्या किसी को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है. स्पीकर को पहले इस्तीफा स्वीकार करना होगा. यह एक न्यायाधीश के इस्तीफे की तरह नहीं है, जहां वह अपने हाथों से इस्तीफा देता है. स्पीकर को खुद को संतुष्ट करना होगा.''
 
 शिवराज सिंह चौहान की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सीएम कमलनाथ, विधानसभा सचिव को नोटिस जारी किया था. याचिका में कांग्रेस ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि उन्होंने 16 विधायकों को कब्ज़े में रखा है. साथ ही याचिका में कहा है कि 16 विधायकों की अनुपस्थिति में बहुमत परीक्षण नहीं हो सकता. कांग्रेस पार्टी ने फ्लोर टेस्ट के लिए राज्यपाल के निर्देश पर भी सवाल उठाया, जिसमें उन्होंने कहा है कि कमलनाथ सरकार पहले ही सदन में बहुमत खो चुकी है.
 
मुकुल रोहतगी ने बोम्मई जजमेंट का हवाला देते हुए कहा कि गवर्नर को राष्ट्रपति को रिपोर्ट देने की आवश्यकता होती है, अगर वे ये पाते हैं कि राज्य संविधान के अनुसार काम नहीं कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल को इस तरह की रिपोर्ट बनाने से पहले एक विकल्प खोजने की कोशिश करनी चाहिए. 
 
रोहतगी ने कहा कि  एक बहुत ही सीमित प्रश्न है, जिसे अदालत को अभी तय करने की आवश्यकता है. राज्यपाल को राष्ट्रपति शासन के प्रस्ताव से पहले विकल्प का पता लगाना चाहिए. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एक चिंता जो हमारे पास है वह यह है कि स्पीकर ने इन 16 के लिए फैसला नहीं किया है. उनका कहना है कि 16 को बेंगलुरु भेज दिया गया है. हम विधायकों को कार्यवाही में शामिल होने के लिए मजबूर नहीं कर सकते, लेकिन हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे अपना फैसला ले सकें. यह एक संवैधानिक न्यायालय का कर्तव्य है.
 
रोहतगी ने कहा कि ये लोग कह रहे हैं कि ये विधायक अगवा किए गए हैं. लेकिन ऐसे वीडियो हैं जिनमें वे कह रहे हैं कि वे अपनी मर्जी से आए हैं. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने विधायकों द्वारा दिए गए हलफनामे को देखकर कहा कि वे खुद को याचिकाकर्ता के रूप में वर्णित कर रहे हैं जैसे कि वे एक याचिका दायर करने जा रहे हैं. हमें निश्चिंत होना है, यह उनकी पसंद है कि वे सदन में प्रवेश करना चाहते हैं, व्हिप आदि का पालन करते हैं या नहीं. लेकिन निश्चित रूप से, जब आरोप है कि उन्हें कैद में रखा जा गया तो हमें यह देखना होगा कि ये उनकी स्वतंत्र इच्छा हैं. जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि ये इन 16 पर निर्भर है कि वे सदन में जाते हैं या नहीं, लेकिन ये साफ है कि इनको बंधक बनाकर रखा नहीं जा सकता. हम इसे कैसे सुनिश्चित करें? हालांकि हम ये नहीं कह रहे कि उन्हें बंधक बनाया गया है. 
 
रोहतगी ने कहा कि हमारे पास वीडियो हैं जिसमें वे कह रहे हैं कि हम फ्री हैं. स्पीकर जो चाहे करें, वे नहीं आना चाहते. एक मात्र सवाल यह है कि राज्यपाल के आदेश का पालन किया जाना था या नहीं.  22 विधायकों ने इस्तीफा दिया, राज्यपाल को बताया गया कि उनके पास प्रथम दृष्टया निष्कर्ष पर आने के पर्याप्त कारण नहीं थे? यह देखने के लिए एक उचित दृष्टिकोण है कि इस मामले का अंत हो. इसके बाद संवैधानिक प्राधिकार की दिशा में हस्तक्षेप करने के लिए कुछ भी नहीं है.
 
जस्टिस चंद्रचूड़ ने फिर से बागी विधायकों द्वारा दायर हलफनामों को देखा और कहा कि एक अदालत कैसे सुनिश्चित करे कि विधायकों ने अपनी इच्छा से फैसला किया है. एक संवैधानिक अदालत के रूप में, हमें अपने कर्तव्यों का भी निर्वहन करना होगा. इसे सुनिश्चित करने के लिए क्या तरीके हो सकते हैं? हम यह नहीं कह सकते कि हमने टीवी पर देखा है और इसलिए हम निश्चित हैं. हम एक संवैधानिक न्यायालय हैं और हमें यह सुनिश्चित करना होगा.
 
कोर्ट ने कहा कि हमें केवल यह सुनिश्चित करना है कि ये 16 अपने अधिकार को स्वतंत्र रूप से प्रयोग कर सकें. यदि वे आना पसंद करते हैं, तो वो विधानसभा में आसानी से बिना मुश्किल से जा सकें. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम विधायिका के रास्ते में नहीं आने वाले.  हम जानते हैं कि ये 16 ही संतुलन को एक या दूसरी तरफ झुकाते हैं. बस हमें इस बात की सहायता चाहिए कि इसका तौर तरीका क्या हो. 
 
रोहतगी ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल चाहें तो कल विधायकों से मिल लें. मुलाकात की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की जा सकती है. हालांकि जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस पर कोई आदेश जारी नहीं किया है. 
 
रोहतगी की दलील पूरी होने के बाद 16 बागी विधायकों की तरफ से मनिंदर सिंह ने बहस की. मनिंदर सिंह ने कहा कि हमारा इस्तीफा केवल लोकतंत्र को मजबूत करने के इरादे से है. हमने अपनी विचारधाराओं के कारण इस्तीफा दे दिया. यह अदालत ये कैसे देखेगी कि हमने कैसे और क्यों इस्तीफा दिया. इस्तीफे पर फैसला करने के लिए एक स्पीकर के संवैधानिक कर्तव्य के बारे में क्या? क्या वह अनिश्चितकाल तक इस पर बैठ सकता है? क्या वह बस बैठा रहे और कोई जांच शुरू नहीं करे. हम कहते हैं कि यह सरकार विश्वास खो चुकी है और इसे फ्लोर टेस्ट के लिए जाना चाहिए. राज्यपाल की संतुष्टि पर्याप्त है.
 
मनिंदर सिंह ने कहा कि इस्तीफा देने का अधिकार संविधान का दिया अधिकार है. लेकिन इस्तीफा स्वीकार करने के लिए स्पीकर का संबंधित कर्तव्य क्या है?  क्या वह इस्तीफे पर बैठ सकता है, क्या वह यह चुन सकता है कि वह कुछ स्वीकार करेगा, दूसरों को स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि राजनीतिक खेल चल रहा है? 
 
स्पीकर की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि क्या सदन की कार्यवाही के दौरान कोर्ट स्पीकर के अधिकारों में कटौती कर सकता है?  सबसे महत्वपूर्ण बात यह नजरअंदाज कर दी गई कि यह एक चालू विधानसभा है न कि एक ताजा या नई विधानसभा. और यह अदालत कभी भी विधानसभा में स्पीकर के विवेक के साथ हस्तक्षेप नहीं कर सकती.
 
कोर्ट ने कहा कि आप उनके इस्तीफे को स्वीकार क्यों नहीं करते?  क्या वे अपने आप अयोग्य नहीं हो जाएंगे? यदि आप संतुष्ट नहीं हैं तो आप इस्तीफे को अच्छी तरह से अस्वीकार कर सकते हैं. आपने 16 मार्च को बजट सत्र स्थगित कर दिया. जब आप बजट पास नहीं करेंगे तो राज्य कैसे कार्य करेगा?  और ऐसा नहीं है कि आप उस दिन नहीं मिले. उस दिन विधानसभा को बुलाया गया और फिर स्थगित कर दिया गया.
 
सिंघवी ने कहा कि 6 विधानसभा को कोरोना के चलते स्थगित किया गया है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यदि आप इस्तीफा स्वीकार करते हैं, तो क्या वे सैद्धांतिक रूप से अयोग्य नहीं होंगे. इस पर सिंघवी और सिब्बल ने कहा- नहीं. सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल स्पीकर को ये नहीं बता सकते कि वे विधानसभा का संचालन कैसे करें.
 
सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर से पूछा कि अगर ये विधायक आपके सामने आते हैं, तो क्या आप कोई फैसला लेंगे? बागी विधायक ने कहा - हम जाना नहीं चाहते. जस्टिस चंद्रचूड़ने कहा- वे आपके सामने आने को तैयार नहीं हैं, फिर? सिंघवी ने कहा कि कल कोर्ट को बता देंगे. बागी विधायकों ने कहा कि सुरक्षा कारणों से नहीं जाना चाहते.
 
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एक ताजा फैसले में  स्पीकर को जल्दी से निर्णय लेने के लिए कहा गया है. हमें बताएं कि आप कब फैसला करेंगे? सिंघवी ने कहा कि मैं नहीं चाहता कि स्पीकर के विवेक पर पर्दा डाला जाए. मैं कल सुबह इसके बारे में सूचित कर सकता हूं.
 
 मनिंदर सिंह ने कहा कि हम आपसे मिलना नहीं चाहते. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ये एक समस्या है, यह एक बच्चे की हिरासत की तरह नहीं है. मनिंदर सिंह ने कहा कि बागी विधायक सुप्रीम कोर्ट में पेश होने के लिए तैयार हैं. इस पर जस्टिस ने कहा कि लेकिन यह उचित नहीं होगा. मामले की कल सुबह 10.30 बजे फिर सुनवाई होगी.'' अब निगाहें इस पर हैं कि आखिर इस संकट का कब और कैसे समाधान होता हैं.वीएनआई

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