नई दिल्ली, 05 जुलाई, (वीएनआई) दिल्ली सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की सरकार और दिल्ली के उप राज्यपाल के बीच अधिकारों के बंटवारे पर सर्वोच्च न्यायलय के फैसले के बाद भी अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर घमासान मचा हुआ है। सर्विसेज को जहां केजरीवाल सरकार अपनी अधीन बता रही है, वहीं अरुण जेटली ने एक ब्लॉग लिखकर इस पर केजरीवाल सरकार को जवाब दिया है।
केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने एक ब्लॉग में लिख कर दिल्ली की सरकार को बताया है कि इस फैसले को किसी को भी एक की जीत और दूसरे की हार के तौर पर नहीं देखना चाहिए। जिन मुद्दों पर सर्वोच्च न्यायालय ने कोई राय नहीं दी है उसे किसी पक्ष विशेष का समर्थन नहीं माना जाना चाहिए। संकेतों में इसे जेटली का सर्विसेज डिपार्टमेंट और ट्रांसफर पर केजरीवाल सरकार का जवाब माना जा रहा है। उन्होंने लिखा, सर्वोच्च न्यायलय ने कुछ मुद्दों पर स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा है इसलिए इसे न्यायलय का किसी एक पक्ष के लिए विशेष झुकाव या समर्थन नहीं माना जाना चाहिए।' उन्होंने लिखा कि दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में पुलिस नहीं है, इसलिए दिल्ली सरकार को किसी जांच एजेंसी को नियुक्त करने का अधिकार नहीं है। दिल्ली सरकार ने ऐसा पहले किया है और यह गलत है।
बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर के बारे में स्पष्ट करते हुए लिखा, 'सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर अपने फैसले में कहा है कि दिल्ली की तुलना देश के अन्य राज्यों से नहीं की जा सकती है। संघशासित काडर के तौर पर प्रशासन को दिल्ली सरकार के पक्ष में दिया गया फैसला बताना पूरी तरह से भ्रमित करने वाली व्याख्या है।' उन्होंने लिखा कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं है। उन्होंने लिखा, 'दिल्ली के उपराज्यपाल की भूमिका राज्यों के गवर्नर जैसी नहीं है। वह एक तरह से प्रशासनिक कार्यों के लिए नियुक्त प्रतिनिधि हैं।' जेटली ने लिखा कि फैसले को दिल्ली सरकार के पक्ष में नहीं बताते हुए यह कहा जाना चाहिए कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियों को मान्यता देते हुए राष्ट्रीय राजधानी के हित में केंद्र सरकार को सर्वोपरि रखा गया है। पेशे से वकील जेटली ने फैसले को संविधान की मूल भावना के अनुसार बताते हुए लिखा, 'फैसला मुख्य रूप से संविधान की मूल भावना और संविधान द्वारा किए गए प्रावधानों को ही स्थापित करता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में न तो किसी की शक्तियों का विस्तार किया है और न ही किसी की शक्तियां पहले की तुलना में कम की हैं। राज्य की चुनी हुई सरकार पर बल जरूर दिया गया है, लेकिन संघशासित प्रदेश होने के कारण दिल्ली में सत्ता और शक्तियों का विभाजन चुनी हुई सरकार के साथ केंद्र की सरकार के पास भी है।'
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