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By Shobhna Jain | Posted on 2nd Apr 2023 | देश
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विश्व शांति की कामना के साथ श्रीमज्जिनेन्द्र जिनबिम्ब प्रतिष्ठा गजरथ महोत्सव  पूरें श्रद्धा भाव से  सम्पन्न


                                                 



 अमरकंटक,अनूपसागर ,मध्यप्रदेश २ अप्रैल (वीएनआई /सुनील जैन) नर्मदा नदी के पवित्र तट पर सुबह की शीतल बयार के बीच विश्व शांति औरकल्याण की  कामना के साथ  यहा पिछलें नौ दिन से चल रहा श्रीमज्जिनेन्द्र जिनबिम्ब प्रतिष्ठा गजरथ महोत्सव  आज सोल्लास भक्ति और श्रद्धा  के साथ दार्शनिक तपस्वी संत आचार्य विद्यासागर के  सान्निधय और आशीर्वाद के साथ  सम्पन्न हो गया. कण कण में  बिखरी पवित्रता  के माहौल में,समारोह  के अंतिम दिन आज प्रातःकाल भगवान आदिनाथ की प्रतिमा  का  पवित्र अभिषेक और मोक्षगमन क्रिया  श्रद्धालुओं ने पूरे भक्ति भाव से सम्पन्न की और ऐसा लग रहा था कि पू्रें माहौल  में मंदिर की पवित्र घंटियॉ गूंज रही थी.

नर्मदा जी की उद्गम स्थळी  पर बसी सुरम्य  पवित्र नगरी अमरकंटक में   भारत की प्राचीन स्थापत्य  शैली  का उत्कृष्ट उदाहरण,  जैन मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा  तपस्वी,  दार्शनिक संत आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज के सन्निध्य में  हुई. समुद्र सतह से लगभग साढ़े तीन हजार फुट की ऊंचाई पर मैकल पर्वत माला के शिखर अमरकंटक में राजस्थान के बंसी पहाड़ के गुलाबी पत्थरों से ओडिसी शैली में निर्मित मंदिर आचार्य श्री विद्यासगर महाराज की प्रेरणा भावना और आशीर्वाद का यह अनुपम रूप है. मंदिर के जिनालय के मूलभवन में लोहि और सीमेंट का उपयोग नहीं किया गय बल्कि.पत्थरों को तराश कर गुड़ के मिश्रण से  प्राचीनकालीन निर्माण की तकनीक का प्रयोग कर चिपकाया गया है. जिनालय में राजस्थानी शिल्पकारों की  शिल्पकला अत्यंत मनमोहक है.दीवारों मंडप,स्तंभों पर बनी मूर्तियां देख दर्शक मोहित हो जाता है.इस आयोजन के लियें देश विदेश से लाखों जैन श्रद्धालुओं ने  मंदिर नगरी अमरकंटक पहुंच कर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कियें

 अमरकंटक, यानि  वह स्थान जहा   प्रदेश के अनूपपुर ज़िले मे समुद्र तल से 1065 मीटर ऊंचे इस स्थान पर मध्य भारत के विंध्य और सतपुड़ा की पहाडि़यों का मेल होता है. विंध्य व   सतपुडा की पर्वत क्षृंखला के बीच मैकाल पर्वत क्षृंखला के बीचों बीच बसा अमरकंटक सिर्फ पर्वतों ,घने जंगलों , गुफाओं, जल प्रपातों का पर्याय - एक रमणीक  पर्यटनस्थल ही नही बल्कि एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल भी है जहाँ जीवन दाई नदियाँ हैं, जड़ी बूटियों से भरे जंगल हैं”.“ प्रकृति, अध्यात्म और  जीवन का अद्भुत मेल"

 आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी की उम्र लगभग  77  वर्ष हो चुकी है, इस के बावजूद वे रोजाना 11-12 के आस पास पैदल चलने का प्रयास करते है  घोर तप,साधना और विद्वता के प्रतीक आचार्य श्री ने अनेक महा ग्रंथों कई रचना की हैं, समाजिक समरसता, स्त्री शिक्षा और समाज कल्याण यानि आत्म कल्याण से  से जन कल्याण जिन के जीवन का सार रहा,. इस अवसर पर आचार्य श्री ने अपनें उद्बोधन में कहा कि.्भगवान की प्रतिमा दर्पण के समान हैं, इस दर्पण में स्वयं को देख कर अपने कुविचारों को त्यागनें ्पर पूरा ध्यान देना चाहियें. उन्होंनें कहा कि  ्जैन दर्शन का सिद्धांत हैं अनेकांत और अनेकांत का  हर्दय हैं समता, सामने वाला जो कहता हैं, उस के मत कि सहर्ष सम्मान दो, जैन चर्या का घोर अनुशासन से पालन करने वाले आचार्य श्री पिछले बीस वर्षों से अधिक समय से मीठे और नमक का त्याग कर रखा हैं.एक श्रधालु के ये उद्ग गार कि वे तो हमारे लियें  इस युग के भगवान ही है, उन के समूचें जीवन दर्शन को एक वाक्य में पूरा कर देता हैं.उन के संघ मे उच्च शिक्षित , टेक्नोक्रेट, विदेशों में बड़ी बड़ी नौकरियॉ छोड़ कर  मुनि वेश धारण  कर घोर त्याग का जीवन अपना कर जीवन दर्शन को समझने के लालायित मुनि  एक आम श्रधालु को  एक चिंतन देता हैं.

इस अवसर पर उपस्थित समुदाय को संबोधित करते हुये निर्यापक मुनिश्री प्रसाद सागर महाराज ने बताया कि वैदिक संस्कृति और जैन संस्कृति का मिलन ही भारतीय संस्कृति है.  उन्हों ने कहा कि  ्दर असल जीवन  का दर्शन  ही यही हैं किजिसने स्वयं को जीता उसने ही जग का मन जीता है. उन्होंने कहा कि.जैन दर्शन में रेवा के तट से करोडों भव्य आत्माओं ने सिद्धत्व प्राप्त कर मोक्ष  गमन किया.रेवा के उद्गम अमरकंटक की पावनधरा पर स्थापित भगवान आदिनाथ का जिनालय युगों युगों तक सत्य अहिंसा और शांति का संदेश देता रहेगा.  मुनि श्री ने कहा कि आपने केवलज्ञान  ही मोक्ष गमन का रास्ता हैं.. उन्होंने कहा कि आपने केवलज्ञान भूतकाल सपना है भविष्य काल छलना है वर्तमान काल अपना, हमें इसी दर्शन को अपने जीवन का आधार बनाना चाहियें. आचार्य श्री के  संघ में चन्द्र प्रभ सागर और  मुनिश्री  निरामय सागर  की भी इस समारोह मे  श्रद्दालुओं आशीर्वाद  की वर्षा होती रही.


सर्वोदय तीर्थ समिति के अध्यक्ष व सुप्रसिद्ध उद्योगपति श्री  प्रमोद सिंघई के अनुसार मंदिर की  2000  में नींव रख   दी गयी थी. गत  6 जुलाई 2003 में भगवान आदिनाथ जी की बेदी में स्थापना की गई थी. अष्ट धातु निर्मित मूर्ति भगवान आदिनाथ जी की प्रतिमा यंहा विराजमान है जो कि  28 टन अष्ट धातु के कमल पर विराजमान है  जब कि भगवान  आदिनाथ जी  की अष्ट धातु से निर्मित प्रतिमा का वजन भी  2 4 टन  ही है . जिनालय के अंदर आदिनाथ जी व कमल दोनों का वजन 41 टन है जो कि अष्ट धा तु में  ढली ठोस रूप संसार में सबसे वजनी प्रतिमा मानी  जाती है. इस का  नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ड रिकार्ड में दर्ज हो चुका हैलगभग बीस वर्षों के अनथक और अनवरत परिश्रम से भूतल से लगभग एक सौ सत्तर फुट ऊंचा ये विशाल और भव्य जिनमंदिर निर्मित हुआ है.  श्री सिंघई के अनुसार भूकंप के प्रभाव से पूर्ण सुरक्षित आचार्य श्री की कल्पना का ये साकार रूप हजारों वर्ष के काल का साक्षी रहेगा.

स्वागताध्यक्ष विनोद सिंघई ने  ने बताया कि दुनिया की सबसे वजनी अष्टधातु की प्रतिमा  के दूसरी तरफ  दो और मूर्ति अष्टधातु की विराजमान है .पहली भगवान भरत व दूसरी भगवान बाहुबली. ये मूर्तिया भी 11 – 11 टन की बताई जा रही है. इसी मंदिर के ठीक सामने सहस्त्र कूट जिनालय बना है .इस सहस्त्र कूट जिनालय में नीचे से ऊपर तक मे 1008 मूर्तिया स्थापित होंगी जिनका वजन लगभग 55 से 60 किलोग्राम के बीच अष्टधातु की होगा और सबसे ऊपर शिखर पर तीन मूर्तिंया विराजमान होंगी जो लगभग ढाई ढाई टन की एक होंगी वह भी अष्टधातु की मूर्तिया रहेंगी.

  सर्व श्री सिंघई विनोद जैन,प्रमोद जैन के परिवार को समाज को दिये योगदान सहयोग नेतृत्व और तीन पंचकल्याणक महोत्सवों मे अग्रणी भूमिका दानराशि देने पर जैन समाज में श्रावकों के सर्वोच्च सम्मान श्रीमंत सेठ की उपाधि से विभूषित किया.शोभायात्रा की सात परिक्रमा होने पर जिनबिम्बों का अभिषेक शांतिधारा करने का प्रथम सौभाग्य ग्यारह लाख ग्यारह हजार के दान के साथ तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय के सुरेश जी अमित जी ने प्राप्त किया।
 
बिलासपुर के सुप्रसिद्ध कोयला उद्योगपति सिंघई विनोद जैन,प्रमोद जैन के परिवार को समाज को दिये योगदान सहयोग नेतृत्व और तीन पंचकल्याणक महोत्सवों मे अग्रणी भूमिका दानराशि देने पर जैन समाज में श्रावकों के सर्वोच्च सम्मान श्रीमंत सेठ की उपाधि से विभूषित किया.



   समारोह के प्रचार सचिव वेद चंद जैन के अनुसार  अमरकंटक की पावनधरा पर नवीन जिनालय के सम्मुख निर्मित भव्य सहस्रकूट प्रथम है जहां प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा के साथ सहस्रकूट जिनालय की वेदियों पर ये जिन  प्रतिमाएं स्थापित सुशोभित हो रही हैं।अपरान्ह में ग्यारह मंजिल ऊंचे सहस्रकूट जिनालय में एक हजार से अधिक प्रतिष्ठित जिन प्रतिमायें वेदियों में स्थापित हुईं. वी एन आई/  सुनील जैन/ शोभना

 

 

 

 

 


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