साहित्योत्सव-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी तरह की पाबंदी नही हो

By Shobhna Jain | Posted on 12th Mar 2015 | देश
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नई दिल्ली 11 मार्च (सुनील जैन,वीएनआई) राजधानी मे चल रहे साहित्य अकादमी के \'साहित्योत्सव\'कार्यक्रम मे श्रोताओ और लेखको के एक बड़े वर्ग ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी तरह की पाबंदी लगाये जाने पर असहमति व्यक्त की है और साथ ही कहा है कि यह कहना सही नही है कि आज का युवा साहित्य पढना नही चाहता है सहित्य के कार्यक्रमो और पुस्तक मेलो मे युवाओ की बड़ी तादाद मे मौजुदगी इस धारणा को निराधार साबित करती है. \'साहित्योत्सव\'कार्यक्रम मे मीडिया और इस वर्ष के अकादमी पुरस्कार प्राप्त लेखको के बीच हुए संवाद मे यह राय जाहिर की गयी. इस वर्ष के अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत असम की पुरस्कृत लेखिका अरूपा पतंगीया कलिता ने बताया की किस तरह उन्होंने प्रतिकूल परिस्थियों और धमकियो के बावजूद उन्होने अपना लेखन जारी रखा. संवाद कार्यक्रम मे लेखन/अभिव्यक्ति पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध का विरोध किया गया \'चाहे वो सलमान रशीदी की पुष्तक हो या कोई और रचना\'. साहित्योत्सव के एक अन्य कार्यक्रम मे हिंदी के वरिष्ठ लेखक रेमशचंद्र शाह ने कहा कि आज के लेखक का दुर्भाग्य है कि उसके पास अब पाठक नहीं है। किसी भी साहित्य की परिभाषा बिना पाठकों के तय नहीं हो सकती। हम लेखकों को इस पर विचार करना चाहिए। हिन्दी के लिए पुरस्कृत रमेशचंद्र शाह ने प्रयाग शुक्ल से अपनी रचना-प्रक्रिया के बारे मंे बताते हुए कहा कि अपने अंतर्मन को अभिव्यक्त करने के लिए ही मैंने अलग-अलग विधाएं चुनी हैं। प्रकृति और एकांत ने जहां मुझे कविता लिखने को प्रेरित किया तो बाजार के बीच रहते हुए मैंने मानव के विभिन्न चरित्रों को समझा और उसको अपनी कहानी- उपन्यासों द्वारा व्यक्त किया। पुरस्कृत \'विनायक\' उपन्यास के बारे में शाह ने बताया कि इस उपन्यास को लिखने का कारण उनके पाठकों की वे दो चिट्ठियां हैं, जिनमें उन्होंने जानना चाहा था कि उनके पहले उपन्यास गोबर गणेश का नायक, जिसकी उम्र उस समय 27 वर्ष थी, वो आज के समय में किस तरह जीवन व्यतीत कर रहा है। साहित्योत्सव 2015 के तीसरे दिन सम्मानित लेखकों से प्रख्यात लेखकों/विद्वानों से बातचीत के कार्यक्रम आमने-सामने के अंतर्गत आज पांच लेखकों ने अपनी रचना-प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया। जयंत विष्णु नारलीकर ने विकास खोले के साथ बातचीत में कहा कि नेहरू ने जिस वैज्ञानिक समाज का सपना देखा था वो अभी तक अधूरा है और कई मामलों में हम और ज्यादा अंधविश्वासी हुए हैं। भगवान और धर्म के अस्तित्व को लेकर किए गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि विज्ञान इसका जवाब हां या ना में नहीं दे सकता। विज्ञान किसी भी विचार को तभी मानता है जब वह उसके परिक्षण पर खरा उतरता है। यह प्रक्रिया बहुत लंबी है। वैसे भी विज्ञान में हम जैसे-जैसे समझते जाते हैं हमें लगने लगता है कि हमारी समझ और कम होती जा रही है। एक अन्य कार्यक्रम \'युवा साहिती\' में 24 भारतीय भाषाओं के युवा रचनाकारों ने अपनी कहानी और कविताओं का पाठ किया। कार्यक्रम का उद्घाटन प्रख्यात हिन्दी लेखक गिरिराज किशोर ने किया और इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि चित्रा मुदगल थी। अन्य सत्रों की अध्यक्षता मैनेजर पांडेय, अब्दुल बिस्मिल्लाह, विष्णु नागर ने की। साहित्योत्सव के एक अन्य कार्यक्रम मे विचारक, राजनयिक, शिक्षक एवं शिक्षाविद् जसपाल सिंह को शास्त्रीय एवं मध्यकालीन साहित्य (उत्तरी) को बढ़ावा देने और वसंत निर्गुण को भीली भाषा को प्रोत्साहन देने के लिए साहित्य अकादमी प्रतिष्ठित भाषा सम्मान से पुरस्कृत किया है.साहित्य अकादमी ने भाषा सम्मान पुरस्कार की शुरुआत 1996 में की थी, जिसके अंतर्गत उन लेखकों, विचारकों, संपादकों, कलाकारों और अनुवादकों को पुरस्कृत किया जाता है, जिन्होंने सम्बद्ध भाषा की प्रगति और विकास में योगदान दिया है। निर्गुण भीली विचारक हैं, जिन्होंने भील, गोंड जनजाति पर काफी काम किया है और गोंड, बेगा, कुरकु, सहरिया, बहरिया और भील संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर अपने काम को किताब के रूप में प्रकाशित किया है। साहित्य अकादमी ने प्रतिष्ठित अनुवाद पुरस्कार 2014 के लिए विभिन्न भाषाओं की 23 किताबों का चयन किया है। वी एन आई
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