सुनील कुमार ,वी एन आई ,नयी दिल्ली 24 -03-2017
जैसा हम सोचते हैं,हम वैसे ही बन जाते हैं ,जब हमारा दिमाग शुद्ध अवस्था में होता है ,खुशियां परछाईं की तरह हमारे पीछे चलती हैं
जब आप एक चिराग़ जलाते हैं ,उसकी परछाईं तो पड़नी ही है
हमारा चरित्र पेड़ की तरह है , हमारी प्रतिष्ठा परछाईं की तरह ,हम परछाईं पर ध्यान देते हैं ,पेड़ पर नहीं
हमारे विचार हमारी भावनाओं,की परछाईं हैं ,परछाईं यानि गहरी , रिक्त व् सादा सी