बरसने की उम्मीद

By Shobhna Jain | Posted on 19th Jun 2016 | देश
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नई दिल्ली 19 /06/16 सुनील कुमार जमीन पर कुछ अहमियत मिली जो आदमी को वो आसमान में उड़ने लगता है शाम को दुनिया को अंधेरों में छोड़ जाता है , उजाला जो सुबह,जहाँ को रोशन करने निकलता है लिए हुए तेल में भीगी बाती ,ये दीया एक चिंगारी की राह तकता है कभी आने वाले वक्त में ,कभी गुजरे वक्त में , आदमी आज में कब जिया करता है इन ठोकरों की परवाह मत कर ए दोस्त , इन्ही ठोकरों से मुक्क़दर संवरता है बरसने की उम्मीद उससे कैसे की जाय , जो गरजता है , फकत गरजता है
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