नई दिल्ली 27 नवंबर (वीएनआई) भारत मे अंगदान की परंपरा महर्षि दधीचि के समय से चली आ रही है । पुराणों की कथा के अनुसार देव-दानव संग्राम में एक बार देवता बार-बार हार रहे थे, लग रहा था कि दानव विजयी हो जाएंगे। घबराए हुए देवता सहायता के लिए ब्रह्मा जी के पास गए । ब्रह्मा जी ने कहा कि पृथ्वी पर एक ऋषि रहते हैः दधीचि उनकी तपस्या से उनकी हड्डियों में अनन्त बल का प्रादुर्भाव हुआ है। उनसे, इनकी हड्डियों का दान मांगो। उससे ‘वज्र’ नामक शस्त्र बनेगा, वह शस्त्र दानवो को परास्त कर देवों को विजयी बनाएगा। इन्द्र ने दधीचि से उनकी हड्डियाँ मांगी। पुलिकित दधीचि ने ध्यानस्थ हो प्राण त्याग दिए। उनकी अस्थियों से बने वज्र ने देवताओं को विजय दिलवाई।
पर इसी देश में हर साल लाखों लोग किडनी, लीवर, हृदय और शरीर के अन्य अंगों के काम नहीं करने से कम उम्र में ही जान गंवा देते हैं। अंगदान से कइयों की जिंदगी बचाई जा सकती है, लेकिन अंगदान के प्रति लोगों में न सिर्फ जागरूकता की कमी है, बल्कि इसके प्रति समाज में भ्रांतियां भी हैं। इन्हीं भ्रांतियों को दूर करने के लिए आज छ्ठा भारतीय अंगदान दिवस मनाया गया। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने आज कहा कि सरकार ने अंगदान को बढ़ावा देने के लिए कुछ निर्णायक पहल किए हैं और सभी प्रमुख सरकारी अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण की सुविधा शुरू की है। नड्डा ने ये बातें यहां विज्ञान भवन में भारतीय अंगदान दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह मे कही।
उन्होंने लोगों से स्वेच्छा से अंगदान को बढ़ावा देने एवं इसमें भाग लेने की भी अपील की। नड्डा ने माना कि अंगदान मामले में सरकार की ओर से विलंब हुआ है और स्वास्थ्य मंत्रालय ने अब सरकारी अस्पतालों में अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण में प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, "हमने अस्पतालों में सहयोगी स्टाफ को अंगदान संबंधी प्रशिक्षण देने और उन्हें इस दिशा में संवेदनशील बनाने का भी फैसला लिया है, ताकि वे समाज में इस विषय को आगे बढ़ा सकें।"
उन्होंने कहा, "अंगदान को लेकर सरकार ने पिछले एक साल में जो निर्णय लिए हैं, उससे इस दिशा में सार्थक प्रगति होगी।" छठे भारतीय अंगदान दिवस कार्यक्रम में कई अंग दाताओं और उनके परिवार को पुरस्कृत किया गया। मंत्री ने गैर-सरकारी संगठनों और स्वयंसेवी संगठनों से इस मुद्दे पर आगे आने और स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर काम करने की अपील की। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, भारत में हर साल करीब दो लाख गुर्दे दान करने की जरूरत होती है, लेकिन मौजूदा समय में 7,000-8,000 से भी कम गुर्दे मिल पाते हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार भारत मे 50000 लोगों को दिल प्रतिरोपण की आवश्यक्ता है जबकि उपलब्धता केवल 10 से 15 ही है, दूसरी तरफ 50000 लोगों को लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता है जबकि 700 लोगों को ही डोनर मिल पाते हैं भारत में प्रति दस लाख व्यक्ति में अंगदान करने वालों की संख्या सिर्फ 0.8 है। विकसित देशों, जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंड्स और जर्मनी में यह संख्या औसतन 10 से 30 के बीच है। स्पेन में प्रति दस लाख लोगों में 35.1 अंगदान करते हैं। हमारे देश में संख्या के इस कदर कम होने के पीछे कई कारण हैं, जैसे सही जानकारी का अभाव, धार्मिक मान्यताएं, सांस्कृतिक भ्रांतियां और पूर्वाग्रह। हालांकि, भारत में ऐसा कर पाना फिलहाल संभव नहीं है, लेकिन जागरूकता पैदा कर इस संख्या को बढ़ाया जा सकता है। भारत में स्थिति चिंताजनक इसलिए भी है क्योंकि ज़्यादातर लोगों को पता ही नहीं है कि अगर वो अंगदान करना चाहते हैं तो कहाँ जाएँ और किससे संपर्क करें.
मेडिकल साइंस के अनुसार ्जीवित व्यक्ति के दो गुर्दों में से एक दान में दिया जा सकता है. जबकि आंत और लीवर के अंश को किसी की जान बचाने के लिए दिया जा सकता है क्योंकि आंत और लीवर अपने आप बढ़ते है.
एक मृत व्यक्ति द्वारा किए गए अंगदान से लगभग सात व्यक्तियों को जीवनदान मिल सकता है। अंगदान में एक बड़ी समस्या अस्पतालों द्वारा समय से रोगी को ब्रेन डेड घोषित न कर पाना भी है, जिसके बाद मृतक के अंग खराब होने लगते हैं। कई देशों में अंगदान ऐच्छिक न होकर अनिवार्य है। गौरतलब है कि सिंगापुर में हर नागरिक को स्वाभाविक अंगदाता मान लिया जाता है और 'ब्रेन डेड' घोषित किए जाने पर अस्पताल और सरकार का उसके अंगों पर अधिकार होता है.उल्लेखनीय है कि सरकार ने 1994 में मानवीय अंगों के प्रत्यारोपण के लिए कानून बनाया था, ताकि विभिन्न किस्म के अंगदान और प्रत्यारोपण को सुचारु रूप दिया जा सके।