नई दिल्ली, 15 अक्टूबर, (वीएनआई) आज से शुरू हो रहे शारदीय नवरात्रि इस बार पूरे नौ दिन की है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपु्त्री की पूजा की जाती है। अगर आप इनकी पूजा पूरे मन के साथ करेंगे तो आपकी सारी ख्वाहिशें पूरी होंगी और आपको यश, बल और वैभव प्राप्त होगा। मां शैल पुत्री अपने बच्चों से बहुत प्रेम करती हैं और दोनों हाथों से अपना आशीष लुटाती हैं।
माँ शैलपुत्री दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल लिए अपने वाहन वृषभ पर विराजमान होतीं हैं इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इनका नाम शैलपुत्री हिमालय की पुत्री होने के कारण पड़ा। मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। मां शैलपुत्री कहानी बेहद मार्मिक है । एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया।
यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री।यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। हमारे जीवन प्रबंधन में दृढ़ता, स्थिरता व आधार का महत्व सर्वप्रथम है। अत: नवरात्रि के पहले दिन हमें अपने स्थायित्व व शक्तिमान होने के लिए माता शैलपुत्री से प्रार्थना करनी चाहिए। शैलपुत्री का आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती है। हिमालय की पुत्री होने से यह देवी प्रकृति स्वरूपा भी है। स्त्रियों के लिए उनकी पूजा करना ही श्रेष्ठ और मंगलकारी है।
ध्यान मंत्रः
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
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