फिर सज गया है दूल्हो का मेला !

By Shobhna Jain | Posted on 23rd May 2017 | देश
altimg
मधुबनी,्बिहार 23 मई,( मनोज पाठक) बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में 'सौराठ सभा' यानी दूल्हों का मेला फिर से सजा है, प्राचीन काल से लगता आया यह मेला आज भी लगता है। यह परंपरा आज भी कायम है अलबत्ता, आधुनिक युग में इसकी महत्ता को लेकर बहस जरूर तेज हो गई है, और मेले की भीड़ भी कम होती जा रही है। सौराठ सभा मधुबनी जिले के सौराठ नामक स्थान पर 22 बीघा जमीन पर लगती है। इसे 'सभागाछी' के रूप में भी जाना जाता है। सौराठ गुजरात के सौराष्ट्र से मिलता-जुलता नाम है। गुजरात के सौराष्ट्र की तरह यहां भी सोमनाथ मंदिर है, मगर उतना बड़ा नहीं। सौराठ और सौराष्ट्र में साम्य शोध का विषय है। मिथिलांचल क्षेत्र में मैथिल ब्राह्मण दूल्हों का यह मेला प्रतिवर्ष ज्येष्ठ या अषाढ़ महीने में सात से 11 दिनों तक लगता है, जिसमें कन्याओं के पिता योग्य वर को चुनकर अपने साथ ले जाते हैं और फिर 'चट मंगनी पट ब्याह' वाली कहावत चरितार्थ होती है। इस सभा में योग्य वर अपने पिता व अन्य अभिभावकों के साथ आते हैं। कन्या पक्ष के लोग वरों और उनके परिजनों से बातचीत कर एक-दूसरे के परिवार, कुल-खानदान के बारे में पूरी जानकारी इकट्ठा करते हैं और दूल्हा पसंद आने पर रिश्ता तय कर लेते हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि करीब दो दशक पहले तक सौराठ सभा में अच्छी-खासी भीड़ दिखती थी, पर अब इसका आकर्षण कम होता दिख रहा है। उच्च शिक्षा प्राप्त वर इस हाट में बैठना पसंद नहीं करते। इस परंपरा का निर्वाह करने को आज का युवा वर्ग तैयार नहीं दिखता। सौराठ सभा में पारंपरिक पंजीकारों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। यहां जो रिश्ता तय होता है, उसे मान्यता पंजीकार ही देते हैं। कोर्ट मैरिज में जिस तरह की भूमिका दंडाधिकारी की है, वही भूमिका इस सभा में पंजीकार की होती है। पंजीकार के पास वर और कन्या पक्ष की वंशावली रहती है। वे दोनों तरफ की सात पीढ़ियों के उतेढ़ (विवाह का रिकॉर्ड) का मिलान करते हैं। दोनों पक्षों के उतेढ़ देखने पर जब पुष्टि हो जाती है कि दोनों परिवारों के बीच सात पीढ़ियों में इससे पहले कोई वैवाहिक संबंध नहीं हुआ है, तब पंजीकार कहते हैं, 'अधिकार होइए!' यानी पहले से रक्त संबंध नहीं है, इसलिए रिश्ता पक्का करने में कोई हर्ज नहीं। सौराठ में शादियां तय करवाने वाले पंजीकार विश्वमोहन चंद्र मिश्र बताते हैं, "मैथिल ब्राह्मणों ने 700 साल पहले करीब सन् 1310 में यह प्रथा शुरू की थी, ताकि विवाह संबंध अच्छे कुलों के बीच तय हो सके। सन् 1971 में यहां करीब डेढ़ लाख लोग आए थे। 1991 में भी करीब पचास हजार लोग आए थे, पर अब आगंतुकों की संख्या काफी घट गई है।" मिथिलांचल में सामाजिक कार्य करने वाली संस्था 'मिथिलालोक फाउंडेशन' के चेयरमैन डॉ. बीरबल झा ने मिथिलांचल में अतिप्राचीन काल से प्रचलित इस वैवाहिक सभा का अस्तित्व बचाए रखने की पुरजोर वकालत करते हैं। उन्होंने अपनी संस्था की ओर से 'चलू सौराठ सभा' अभियान शुरू किया है। उन्होंने कहा कि इस तरह के मेले के पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण भी हैं। एक ही ब्लड ग्रुप में शादी करने की सलाह डॉक्टर भी नहीं देते। शायद यही वजह है कि मैथिल ब्राह्मण एक ही गोत्र व मूल में शादी नहीं करते। इनका मानना है कि अलग गोत्र में विवाह करने से संतान उत्तम कोटि की होती है। इस मेले में विभिन्न गोत्रों के ब्राह्मण एक साथ मौजूद होते हैं। एक अन्य पंजीकार विजयचंद्र मिश्र उर्फ गोविंद जी कहते हैं कि पहले आवागमन की ज्यादा सुविधा नहीं थी। अपनी कन्या के लिए सुयोग्य दूल्हा खोजना कठिन कार्य था, इसलिए मिथिलांचल के सभी ब्राह्मण सौराठ सभा में आकर शादी तय करते थे। उन्होंने कहा कि अब यहां के लोग अन्य राज्यों में भी रहने लगे हैं और उन्हें वहां भी योग्य वर मिल जाते हैं। लड़का-लड़की पढ़े लिखे हैं तो मिल-बैठकर फैसला ले लेते हैं, यहां आने की जरूरत नहीं पड़ती। फिर भी पंजीकार से रिकॉर्ड जंचवाने और 'सिद्धांत' लिखवाने के लिए लोग यहां जरूर आते हैं। मिथिलालोक के डॉ. झा कहते हैं, "मिथिलांचल में प्रचीनकाल से ही वैवाहिक संबंधों के समुचित समाधान के लिए विवाह योग्य वर-वधू की एक वार्षिक सभा शुभ मुहुर्त के दिनों में लगाई जाती रही है। सौराठ सभा का उद्देश्य संबंधों की समाजिक शुचिता बनाए रखने के लिए समगोत्री विवाह को रोकना, दहेज-प्रथा का उन्मूलन तथा वर-वधू के सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए वैवाहिक सबंधों को स्वीकृति देना था।" उन्होंने कहा कि इस परंपरा का सकारात्मक नतीजा यह रहा कि मिथिला में विवाह संस्था हमेशा से मजबूत स्थिति में रही और सामाजिक संबंधों में प्रगाढ़ता बनी रही। आजकल तलाक के बढ़ते मामलों को देखते हुए इसकी महत्ता समझी जा सकती है। डॉ. झा का कहना है कि यह ऐतिहासिक स्थल पर्यटन विभाग और प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है। इसके पुनर्निर्माण पर जोर देते हुए उन्होंने बिहार सरकार से सौराठ सभा स्थल पर एक सामुदायिक भवन के निर्माण की मांग की है, जिससे इसकी कोई स्थायी पहचान बन सके और इसके माध्यम से मिथिलांचल में दहेज मुक्त विवाह को एक अभियान के रूप में आगे बढ़ाया जा सके। स्थानीय ग्रामीण वैभव मिश्र कहते हैं कि यह सच है कि इस सभा से अब लोगों का मोहभंग होता जा रहा है। इसका प्रमुख कारण सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति है। उन्होंने कहा कि सौराठ सभा को अब पहले जैसी सुविधाएं, जैसे यातायात, पानी और बिजली आदि नहीं दी जाती। मिश्र को इस बात का भी मलाल है कि अब बड़े धनी ब्राह्मण यहां नहीं आते। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि यहां आने वाले कई लोग अब कन्या पक्ष से दहेज भी मांगने लगे हैं।--आईएएनएस

Leave a Comment:
Name*
Email*
City*
Comment*
Captcha*     8 + 4 =

No comments found. Be a first comment here!

ताजा खबरें

Quote of the Day
Posted on 14th Nov 2024

Connect with Social

प्रचलित खबरें

सांस
Posted on 17th Jan 2017
© 2020 VNI News. All Rights Reserved. Designed & Developed by protocom india