नई दिल्ली,(शोभना जैन/वीएनआई), कुछ समय पहले तक भारतीय संसद की कैंटीन अत्यंत रियायती दरों पर भोजन मिलने के कारण चर्चा का विषय बनती रही, हालांकि दो वर्ष पूर्व इस कैंटीन के भोज्य पदार्थो की कीमतो मे वृद्धि कर इन्हे ' तर्क संगत 'बनाने का प्रयास किया गया। इसके बावजूद आम लोगो को महंगाई के जिस स्तर का सामना करना पड़ रहा है उसके मद्देनज़र कई बार तुलनात्मक रूप में संसद की कैंटीन में खाने पीने की चीजों की काम कीमतों पर सवाल उठते रहे है। संसद भवन की वही कैंटीन एक बार फिर चर्चा में है लेकिन इस बार सकारात्मक वजहो से। दरअसल, शीतकालीन सत्र के पहले दिन से इस कैंटीन में सभी राज्यो, प्रदेशो का खाना मिलना शुरू हो गया है.खाने की शुरूआत गुजराती खाने से हुई है। अच्छी बात यह है कि वहां सभी राज्यों से सम्बंधित जनप्रतिनिधियों से लेकर संसद कि खबरे कवर करने वाले पत्रकार और कर्मचारियों तक के बीच ये भोजन काफी लोकप्रिय हो रहे है।
गौरतलब है कि संसद भवन की केंटीन का प्रबंध रेल मंत्रालय की खान पान सेवा ही करती है. इसमें नई पहलकदमी का प्रस्ताव जब सामने आया तो उसे मंजूरी मिलने में कोई बाधा नहीं आई। इस पर अमल में सुविधा इसलिए भी हुई कि राजधानी स्थित विभिन्न प्रदेशो के भवनो के सहयोग से उन के प्रदेश के खा्ने सेन्ट्रल हॉल और संसद भवन की केन्टीन मे मिलने शुरू हुए , जिसे काफी पसंद किया जा रहा है. गुजराती खान पान के बाद अब अगले सप्ताह नंबर कश्मीरी खाने का नंबर होगा, उस के बाद उड़िया खाने का नंबर होगा, इसी तरह बारी बारी से सभी प्रदेशो क्षेत्रो का खाना यहा परोसा जायेगा। गौरतलब है संसद की कैंटीन में मंत्रियो, सांसदों और वहां के कमर्चारियों के अलावा मेहमानो और पत्रकारों को भी सस्ते दामों पर खाना मिलता है। अब तक कैंटीन में एक तयशुदा सूचि के मुताबिक सामान्य भोजन, नाश्ता, चाय, कॉफी, दूध, लस्सी जैसे काफी व्यंजन मिलते रहे है। वहां मौजूद लोगो के पास चूकिं विकल्प नहीं होता था, इसलिए इस ओर शायद किसी और का ध्यान नहीं गया होगा। जबकि संसद चूकिं देशभर के प्रतिनिधियों के जमा होने की जगह है, इसलिए वहां की कैंटीन में मुहैया कराये जाने वाले भोजन में वैसे भी देश के अलग अलग हिस्सों के खास भोजन उपलब्ध होने चाहिए थे। तो देर से ही सही, इस कैंटीन में भारत की बहुरंगी संस्कृति के अनुरूप खान-पान मुहैया करने की पहल हुई है।
मौजूदा समय में जो माहौल है उसमे राहत की बात यह है कि इस पहल पर किसी तरह का राजनीतिक रंग नहीं चढ़ा और इस पहल को अमूमन काफी लोग पसंद कर रहे है। इसलिए यह उम्मीद स्वाभाविक है कि दिल्ली की ठण्ड में कश्मीर का गरम कहवा आपसी समझ में भी गर्माहट लाएगा। इस मामले में मेरे मन में सहज जिज्ञासा यह हुई कि कही यह कोई तात्कालिक इंतजाम तो नहीं। लेकिन जितनी जानकारी मिल सकी उसके मुताबिक खान-पान की विविधता और देश की छवि दिखाने का यह सिलसिला बजट अधिवेशन में जारी रहेगा और उस समय भी वहां वहां बारी बारी से सभी प्रदेशो और क्षेत्रो का खाना मिल पायेगा। दरअसल पिछले कई सालो से संसद की कैंटीन में मिलने वाले भोजन की रियायती दरे जनता के बीच चर्चा का विषय बनी थी। लेकिन यह केवल महंगाई से उपजी प्रतिक्रिया के कारण तुलनात्मक निशाना नहीं था। तभी शायद यह राय बनी थी कि इसे बिना नफा-नुकसान के बजट में चलाया जाये। यों भी, इस महंगाई के दौर में दो रूपये प्रति कप चाय के अलावा भोजन और नाश्ते पर इसी अनुपात में रियायती दरे लागू हो तो समझा जा सकता है कि इस मद में जारी बजट पर उसका क्या असर पड़ रहा होगा। एक आंकड़े के मुताबिक कैंटीन को हुए घाटे को पूरा करने के लिए हर साल सोलह करोड़ रूपये की सब्सिडी दी जा रही थी। जिस दौर में बहुत जरुरी वस्तुओं पर से भी सब्सिडी काम या ख़त्म करने पर जोर दिया जा रहा है, उसमे संसद की कैंटीन में इतनी बड़ी राशि की सब्सिडी का सवालो के घेरे में आना स्वाभाविक था। अब वहां खाने-पीने की चीजों की कीमतों को तर्कसंगत बनाने का सवाल पूरी तरह हल हुआ हो या नहीं, लेकिन देश के अलग अलग राज्यों की संस्कृति के मुताबिक जिस तरह स्वाद की विविधता पर ध्यान दिया गया है, वह स्वागतयोग्य है। - साभार जनसत्ता (लेखिका वीएनआई समाचार सेवा की प्रधान संपादक है)
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