नई दिल्ली, 29 अप्रैल ( सुनील के, वीएनआई) जिन लोगों ने ओटीटी पर आये लोकप्रिय "पंचायत" सीरियल देखा और वहां की ग्रामीण राजनीति की उठापटक और शहर से आये पंचायत सचिव की वहा रहने की चुनौतियाँ और इस सब के बीच आईएएस की तैयारी करना, आईएएस की परीक्षा में एक बार असफल हो कर दोबारा परीक्षा की तैयारी करने में जुट जाना साथ ही सचिव जी की हैसियत से गॉव के हालात सुधारने के प्रयास जारी रखना, सीरियल देखने वालों के दिमाग में शायद अब भी ताजा हो. गांव की पंचायत के सचिव के नाते के अपने प्रयास जारी रखने की जद्दोजहद, बाज दफा बेबसी का एहसास और इस सब के बीच वहा रह कर निकलने के लिये आईएएस की परीक्षा और तैयारी की तमाम जद्दोजहद के बीच गॉव की हालत सुधारने के प्रयास जारी रखने और साथ ही असफलता के बाद भी आईएएस बनने के अपने सपने को पूरा करने की मुहिम जारी रख्ना . रील के सचिव जी की आईएएस परीक्षा के रिजल्ट का तो अभी लेखक निर्देशक ने नही दिखाया हैं लेकिन रियल लाईफ में हरियाणा के फतेहाबाद जिले से संबंध रखने वाले अजय कुमार जो कि वहा की एक पंचायत के सचिव हैं, आईएएस बन सफलता का एक नया अध्याय लिख डाला है। हिंदी माध्यम से तैयारी करते हुए उन्होंने यूपीएससी परीक्षा में तीसरे प्रयास में सफलता प्राप्त कर ली हैं और 895वीं रैंक हासिल की है।के अपने प्रयास इस जी की जद्दोजहद बाज दफा बेबसी का एहसास और इस सब के बीच वहा रह कर निकलने के लिये आई ए एस की परीक्षा की और तैयारी की उपं्चायत और वहा तैनातहरियाणा के फतेहाबाद जिले से संबंध रखने वाले अजय कुमार द्वारा सफलता का एक नया अध्याय लिखा गया है। हिंदी माध्यम से तैयारी करते हुए यूपीएससी परीक्षा में तीसरे प्रयास में सफलता प्राप्त की गई है और 895वीं रैंक हासिल की गई है।
उन की यह यात्रा आसान नहीं कही जा सकती। पिछली बार इंटरव्यू तक पहुंचने के बावजूद चयन नहीं हो पाया था, जिससे इस बार परिणाम देखने से पहले मन में डर महसूस किया गया। वे बताते हैं क़ीड्यूटी से लौटने के बाद जब घर आया गया और भारी गर्मी के बीच दोपहर 2 बजे परिणाम देखा गया, तो मां के सामने खुशी के आंसुओं के साथ चिल्लाकर सफलता की खबर सुनाई गई। यह क्षण जीवन के सबसे भावुक पलों में शामिल कर लिया गया है।
समाचार धीरे-धीरे मित्रों और परिचितों तक पहुंचाया गया। मोबाइल पर एक के बाद एक फोन कॉल्स आते रहे और शुभकामनाओं की वर्षा की गई। लगभग 500 से अधिक बधाई संदेश प्राप्त किए गए, जिससे घर का माहौल उत्सव में बदल दिया गया।
इस सफलता के पीछे अनुशासन और समर्पण को अपना सबसे बड़ा शस्त्र बनाया गया है। तैयारी के दिनों में 'अनुशासन' और 'समर्पण' जैसे शब्दों को केवल सुना नहीं गया, बल्कि उन्हें व्यवहार में उतारा गया। मेहनत और संघर्ष को जीवन का हिस्सा बनाया गया और इन अनुभवों से अपने चरित्र को सशक्त किया गया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार "दृष्टि यूट्यूब चैनल" से करंट अफेयर्स ने उन को तैयारी मे दृष्टि की ं पूरा सहयोग दिया चेनल की'अस्मिता योजना' से जुड़कर वह सुविधा प्राप्त की गई, जिसमें उन्हें न ट ्तो दिल्ली मे रह कर रूम ढूंढने की चिंता करनी पड़ी, न लाइब्रेरी की तलाश। बस पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया गया और नियमित टेस्ट दिए गए। इसी व्यवस्थित माहौल ने सफलता के पथ को सुगम बनाया।
ुन्होंने माना कि हिंदी माध्यम से तैयारी करने पर कई बार दूसरों की टिप्पणियों का सामना करना पड़ा। "हिंदी मीडियम से सफलता कठिन है," जैसे शब्दों को बार-बार सुना गया, लेकिन इन्हें मन पर प्रभाव नहीं पड़ने दिया गया। आत्मविश्वास को बनाकर रखा गया और यह मान लिया गया कि माध्यम कोई भी हो, सफलता मेहनत से ही तय होती है।
सपने देखे जाने की शुरुआत आठवीं कक्षा पास करने के साथ ही कर दी गई थी। उस समय से ही बाहरी दुनिया के आकर्षणों से दूरी बनाकर पढ़ाई को प्राथमिकता दी गई। नाना-नानी के घर का अनुशासित वातावरण भी इस लक्ष्य को साधने में सहायक सिद्ध हुआ। स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं भी सहन की गईं — जैसे आंखों की दृष्टि कमजोर होना और वजन का बढ़ना — लेकिन इन सभी चुनौतियों को अब सफलता मिल गई हैं
पहले प्रयास की असफलता से हार नहीं मानी गई, बल्कि गलतियों को पहचाना गया और रणनीति को सुधारा गया। यह महसूस किया गया कि स्वयं के अनुभव और आत्मनिरीक्षण के आधार पर अपनी रणनीति बनाना सबसे आवश्यक है।
जानकारी के अनुसार आज जब लक्ष्य को प्राप्त कर लिया गया है, तब उन्होंने सभी सहयोगियों, मार्गदर्शकों और दृष्टि का विशेष आभार व्यक्त किया गया है। अस्मिता योजना को जारी रखने का आग्रह भी किया गया है, ताकि गांवों और छोटे शहरों के अन्य छात्रों को भी अवसर मिलता रहे।
यह माना गया है कि सफलता कोई अंतिम मुकाम नहीं होती। रैंक सुधारने के लिए नई ऊर्जा के साथ पुनः प्रयास करने का संकल्प लिया गया है। विश्वास किया गया है कि यदि मन से ठान लिया जाए तो कोई भी बाधा इतनी बड़ी नहीं होती, जिसे पार न किया जा सके।
अजय कुमार की इस यात्रा से यह सिद्ध कर दिया गया है कि भाषा, परिस्थितियाँ या साधन सीमाएँ नहीं हैं — यदि समर्पण सच्चा हो, तो सपनों को सच करने के लिए केवल एक निश्चय ही पर्याप्त होता है। उम्मीद हैं कि सचिव जी अब आई ए एस अधिकारी के नाते नयी भूमिका की चुनौतियों पर भी खरे उतरेंगे. वी एन आई
No comments found. Be a first comment here!