नई दिल्ली, 5 मई (वीएनआई)| देश की राजधानी में दिसंबर 2012 में घटी सामूहिक दुष्कर्म की घटना के सभी चार दोषियों की फांसी की सजा को सर्वोच्च न्यायालय ने आज बरकरार रखा। इस घटना को लेकर पूरे देश में उबाल आ गया था।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर. भानुमति की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि मुकेश, पवन, विनय शर्मा और अक्षय ठाकुर के खिलाफ गंभीर परिस्थितियां उनके बचाव में गिनाई गई परिस्थितियों पर बहुत भारी हैं। पीठ ने कहा कि यह मामला निश्चित रूप से जघन्यतम श्रेणी का है। पीठ ने कहा, "जिस तरह के मामले में फांसी आवश्यक होती है, यह मामला बिल्कुल वैसा ही है।"
गौरतलब है चारों को 23 वर्षीय पैरामेडिकल की छात्रा के साथ चलती बस में सामूहिक दुष्कर्म करने और बेरहमी के साथ उसकी पिटाई करने के आरोपों में दोषी ठहराया गया है। घटना के कुछ दिनों बाद छात्रा की मौत हो गई थी। इस घटना को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे। इस मामले में छह आरोपी थे, जिनमें से पांचवें आरोपी ने जेल में आत्महत्या कर ली थी और एक आरोपी नाबालिग था, जिसे छह महीने सुधार गृह में रखे जाने के बाद रिहा कर दिया गया है। न्यायाधीशों ने कहा कि गंभीर चोटों और दोषियों द्वारा अंजाम दिए गए अपराध की गंभीर प्रकृति को ध्यान में रखते हुए मौत की सजा बरकरार रखी जा रही है। इसके पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी चारों के दोष और उनकी मौत की सजा को बरकरार रखे थे।
गौरतलब है कि भारत मे बलात्कार के मामले में आख़िरी बार फांसी 2004 में पश्चिम बंगाल के धनंजय चटर्जी को दी गई थी.
कोलकाता में एक 15 वर्षीय स्कूली छात्रा के साथ बलात्कार और उसकी हत्या के मुजरिम धनंजय चटर्जी को 14 साल तक चले मुक़दमे और विभिन्न अपीलों और याचिकाओं को ठुकराए जाने के बाद 14 अगस्त 2004 को फांसी दे दी गई थी.