भगवान जो उठ कर चल पड़ते हैं भक्तों के साथ

By Shobhna Jain | Posted on 8th Mar 2015 | VNI स्पेशल
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वृंदावन २२ अगस्त,(अनुपमा जैन,वीएनआई) क्या कभी ऐसा भी हो सकता है, जहां भगवान भक्तों की भक्ति से अभिभूत होकर या उनकी व्यथा से द्रवित हो भक्‍तों के साथ ही चल दें ? वृदांवन का मशहूर बांके बिहारी मंदिर एक ऐसा ही मंदिर माना जाता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि बांके बिहारी जी भक्‍तों की भक्ति से इतना प्रभावित हो जाते है कि मंदिर मे अपने आसन से उठ कर भक्‍तों के साथ हो लेते है। इसीलिए मंदिर मे उन्हें परदे मे रख कर उनकी क्षणिक झलक ही भक्तों को दिखाई जाती है। पुजारियों का एक समूह दर्शन के वक्‍त लगातार मूर्ति के सामने पड़े पर्दे को खींचता , गिराता रहता है और उनकी एक झलक पाने को बेताब श्रद्धालु दर्शन करते रहते है. और बांके बिहारी है जो अपनी एक झलक दिखा कर पर्दे में जा छिपतें हैं। लोक कथायों के अनुसार कई बार बांके बिहारी कृष्ण ऐसा कर भी चुके हैं,मंदिर से गायब हो चुके है इसीलिये की जाती है ये पर्देदारी ... एक शृद्धालु के अनुसार\' मंदिर मे दर्शनार्थ आये शृद्धालु बार बार उनकी झलक पाना चाहते हैं लेकिन पलक झपकते ही वो अंतर्ध्यान हो जाते हैं उनके पास खड़े एक श्रद्धालु बताते है, ऐसे ही है हमारे बांके बिहारी सबसे अलग अनूठे। ये पर्दा डाला ही है इसलिये कि भक्त बिहारी जी से ज़्यादा देर तक आँखे चार न कर सकें क्योंकि कोमल हृदय बिहारी जी भक्‍तों की भक्ति व उनकी व्यथा से इतना द्रवित हो जाते है कि मंदिर मे अपने आसन से उठ कर भक्‍तों के साथ हो लेते है वो कई बार ऐसा कर चुके हैं इसलिये अब ये पर्दा डाल दिया गया है ताकि वे टिककर बैठे उनका भोला सा स्पष्टीकरण है \'अगर ये एक भक्त के साथ चल दिये तो बाकियों का क्या होगा?..\' विस्मित से भक्‍त बता रहे हैं, एक बार राजस्थान की एक राजकुमारी बांके बिहारी जी के दर्शनार्थ आई लेकिन वो इनकी भक्ति में इतनी डूब गई कि वापस जाना ही नहीं चाहती थी। परेशान घरवाले जब उन्हें जबरन घर साथ ले जाने लगे तो उसकी भक्ति या कहे व्यथा से द्रवित होकर बांके बिहारी जी भी उसके साथ चल दिये। इधर मंदिर में बांके बिहारी जी के गायब होने से भक्‍त बहुत दुखी थे, आखिरकार समझा बुझाकर उन्हें वापस लाया गया। भक्‍त बताते हैं यह पर्दा तभी से डाल दिया गया, ताकि बिहारी जी फिर कभी किसी भक्‍त के साथ उठकर नहीं चल दें और भक्‍त उनके क्षणिक दर्शन ही कर पायें, सिर्क झलक ही देख पाये, यह भी कहा जाता है कि उन्हें बुरी नजर से बचाने के लिये पर्दा रखा जाता है, क्‍योंकि बाल कृष्ण को कहीं नजर न लग जाये बंगाल से आये एक भक्त बता रहे हैं\' सिर्फ जनमाष्ट्मी को ही बांके बिहारी जी के रात को महाभिषेक के बाद रात भर भक्तों को दर्शन देते हैं और तड़के ही आरती के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं वैसे मथुरा वृंदावन मे जन्माष्ट्मी का उत्सव पर्व से सात आठ दिन पहले ही शुरू हो जाता है कहा जाता है कि सन १८६३ मे स्वामी हरिदास को बांके बिहारी जी के दर्शन हुए थे तब यह प्रतिमा निधिवन मे थी, पर गोस्वामियों के एक वर्ष बाद इस मंदिर को बनवाने के बाद इस प्रतिमा को इस मंदिर मे प्रतिष्ठापित किया गया पूरे वृंदावन मे कृश्न लीला का तिलिस्म चप्पे चप्पे पर बिखरा हुआ है.इतनी कहानिया इतने किस्से कृष्न का भक्तों के अनन्य प्रेम को लेकर..राजस्थान के एक अन्य भक्त बताते है कि यह मंदिर शायद अपनी तरह का पहला मंदिर है जहाँ सिर्फ इस भावना से कि कहीं बांकेबिहारी की नींद मे खलल न पड़ जाये इसलिये सुबह घंटे नही बजाये जाते बल्कि उन्हे हौले हौले एक बालक कई तरह दुलार कर उठाया जाता है, इसीतरह संझा आरती के वक्त भी घंटे नही बजाये जाते ताकि वे शांति से रहे. गुजरात के एक भक्त बताते है\'यह जानकर शायद आप हैरान हो जायेंगे कि बांके बिहारी जी आधी रात को गोपियों के संग रासलीला करने निधिवन मे जाते है और तड़के चार बजे वापस लौट आते हैं\' विस्फरित नेत्रो से अपनी व्याख्या को वे और आगे बढाते हुए बताते हैं \'ठाकुर जी का पंखा झलते झलते एक सेवक की अचानक आँख लग गयी,चौंक कर देखा तो ठाकुर जी गायब थे पर भोर चार बजे अचानक वापस आ गये, अगले दिन वही सब कुझ दोबारा हुआ तो सेवक ने ठाकुर जी का पीछा किया और ये राज़ खुला कि ठाकुर जी निधिवन मे जाते हैं तभी से सुबह की मंगल आरती की समय थोड़ा देर से कर दिया जिससे ठाकुर जी की अधूरी नींद पूरी हो सके. अक्सर भक्तगण कान्हा की बांसुरी की धुन, निधिवन मे नृत्य की आवाज़े आदि के बारे मे किस्से यह कह के सुनाते हैं कि \'हमे किसी ने बताया है..\'...\' ऐसे कितने ही किस्से कहानियां वृंदावन के चप्पे चप्पे पर बिखरी हुई हैं. कितनी ही \"मीरायें\" वृंदावन मे आपको कृष्ण के सहारे ज़िंदगी की गाड़ी को आगे बढाती हुई नज़र आयेंगी इस जीवन मे कृष्ण ही इनके जीवन का सहारा है. अचानक मंदिर मे भक्‍तों के हुजम, राधे राधे, जय हो बांके बिहारी के जयघोष के बीच, मंदिर के प्रांगण के एक कोने से, मद्धम से स्वर मे भजन सुनाई देता है, हमसे परदा करो न हे मुरारी, वृदांवन के हो बांके बिहारी। चांदी से बाल, , सफेंद धोती दमकते, माथे पर चंदन का टीका, आंखों से बरसते आसुओं के बीच मूर्तिस्थल की तरफ लगातार देखती हुई बहुत धीमी आवाज़ मे भजन गाती एक ऐसी ही एक मीरा, हमसे परदा करो न हे मुरारी, वृदांवन के हो बांके बिहारी। साध्वी पर्दे के पीछे की बांके बिहारी जी की इसी लुका छिपी से व्यथित होकर ही सम्भवत: बरसती आंखों से गुहार कर रही थीं। .बांके बिहारी की एक झलक दर्शन के बाद मंदिर से वापसी... मंदिर के बाहर निकलते ही संकरी सी गली मे बनी किसी दुकान पर शुभा मुदगल की आवाज़ मे गाया गया गीत महौल मे एक अजीब सी शांति और अजीब सी बेचैनी बिखेर रहा है \'वापस गोकुल चल मथुराराज.... , राजकाज मन न लगाओ, मथुरा नगरपति काहे तुम गोकुल जाओ?\'.. शृद्धालुयों के हुजूम तेज़ी से मंदिर की ओर बढ रहे हैं..

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