न्यूयॉर्क की चकाचौंध छोड़ हथकरघे पर बुने जा रहे हैं सपने

By Shobhna Jain | Posted on 24th Jul 2017 | देश
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कुंडलपुर,मध्यप्रदेश-25 जुलाई (शोभनाजैन/वीएनआई) न्यूयॉर्क की शानदार चमकती सड़को और गगन चुंबी ईमारतो को छोड़,इस उनींदे से छोटे कस्बे की धूल भरी उबड़ खाबड  सड़को पर विश्वास के साथ लंबे लंबे डग भरता एक युवक और अगले ही पल वह युवक कर एक छोटे से कमरे मे हथकरघे पर झुक कर सूत से कपड़ा बनाता नजर आता है  और उसके पास ही रखे कुछ और हथकरघो पर कपडा  बनाते युवा, इन युवको की तन्मयता देख लगता नही है वे काम कर रहे है, लगता है सपने बुन रहे है और इन सपनो से  पनप रहा है एक आंदोलन ... 
ये युवक है, अमित जैन जो दिल्ली आई आई टी से मैकेनिकल इंजीनियर की परीक्षा पास करने के बाद न्यूयॉर्क की एक  नामी कंपनी मे एक करोड़ रुपये से अधिक की नौकरी छोड़ इस छोटे से कस्बे मे हथकरघे को अपनी दुनिया बना चुके है और जैन तपस्वी संत आचार्यश्री विद्यासागर  की प्रेरणा से बने हथकरघा प्रशिक्षण/उत्पादन केन्द्र मे रच बस गये,जहा विशेष तौर पर बदहाल किसानो/महिलाओ/गॉवो के बेरोजगार युवाओ को उनके अपने  गॉव देहात मे ही  काम मिल रहा है, रोजगार मिल रहा है .दरसल इन्हे हथकरघा पर 'अहिंसक कपड़ा' बनाना सिखाया जाता है और फिर  बाजार मे बेचा जाता है जिससे न/न केवल उनकी आय होती है बल्कि गॉवो के गरीब बेरोजगार युवाओ को हुनर भी सिखाया जाता है उनका बना कपड़ा बाजार मे बेचा जाता है,कोई बिचौलिया नही होने की वजह से उन्हे पारिश्र्मिक भी अच्छा मिलता है.सभी का प्रयास रहता है कि श्रम कर्ता का शोषण नही हो श्रमिक ्बाजार से सीधा  जुड़े जिससे अपने उत्पाद् का उन्हे अधिकतम लाभ मिले.  हथकरघा केन्द्र से जुड़े एक सज्जन बताते है अमित की ही तरह आईआईटी, बीई, सीए, एमबीए जैसी उच्च शिक्षा प्राप्त प्रोफेशनल्स अब इस स्वदेशी आंदोलन की धुरी हथकरघे से जुड़ कर  प्रशिक्षण लेते है और बाद मे गॉव देहात के कितने ही बेरोजगार युवाओ को यह काम सिखा कर उनकी की जिंदगी मे रोशनी बिखेर रहे है, उन्हे स्वालंबी बना रहे है.
अमित जैन ने वीएनआई से बातचीत मे कहा कि ्केन्द्र के युवाओं की टीम देश के प्राचीन कुटीर उद्याेग हथकरघा को पुनर्स्थापित करने में जुटी है। उनका मानना है कि इस काम से लाखो लोगो को रोजगार मिल सकता है जरूरत है इस दिशा मे द्र्ढ संकल्प के साथ काम करने की. वे बताते है वे विशुद्ध रूप से हथकरघे पर ही कपड़ा बनाते है  जबकि दुख की बात है कि आज बाजार मे नामी कंपनियॉ  हथकरघे के नाम पर पॉवरलूम् का कपड़ा बेच रही है. 
 अमित  अमेरिका की न्यूयार्क सिटी में  फाइनेंसियल कंपनी डिलॉइट में 1 करोड़ से अधिक के पैकेज पर कार्यरत थे, लेकिन जल्द ही उन्हे लगने लगा बेरोजगारी और गरीबी से जुझ रहे उनके जिस देश ्ने उन्हे शिक्षा दी उ्सका ज्यादा से ज्यादा फायदा देश में ही समाज की भलाई  मे करना ही उन्हे असली संतोष देगा, और  दो वर्ष पूर्व एक शाम सब कुछ समेट एक दिन वापस आ गए।  यहां आचार्यश्री के मार्गदर्शन में  आचार्य श्री से जुड़े २५ श्रद्धालुओ की टीम बनी और दो वर्ष पूर्व हथकरघा उद्योग शुरू किया गया। उनके साथ दर्जन भर से अधिक ऐसे युवा हैं जो खास तौर पर वे युवा है जो विदेशो मे भी लाखों रुपये के पैकेज और पोस्ट छोड़कर इस कार्य में लगे गए हंै। अब तक 300 युवा इन केन्द्रो मे प्रक्शिक्षण पा चुके है. उन्होने बताया कि  पहले सिर्फ आचर्यश्री से जुड़े लोग ही इस काम से जुड़े लेकिन धीरे धीरे अब सभी वर्गो के लोग इस से जुड़ रहे है.  अमित बताते है 'आज देश में बेरोजगारी जिस गति से बढ़ रही है, उस स्पीड से काम नहीं बढ़ रहा है। जबकि देश में कार्य करने वालों की कमी नहीं है। शिक्षित और अशिक्षित वर्ग में भी बेरोजगारी है। दुनिया के विकसित देेशों की अपेक्षा भारत में 2 से 3 प्रतिशत कला जानने वाले हैं। यहां श्रमिकों का शोषण हो रहा है। सबसे कम मेहनताना मिलता है। ्हालत यह है कि रोजगार और कमाई होती है तो भी बिचौलिये लाभ ले  लेते है इसीलिये सोचा गया जितने बिचौलिए कम होंगे उतना लाभ मिलेगा।और आचार्यश्री इन सब को ध्यान में रखते हुए आचार्यश्री के मार्गदर्शन में हथकरघा प्रशिक्षण केंद्र खोलने की योजना बनाई गई। जिसमें हाथ से कपड़ा बनाना सिखाएंगे और बाद में व्यापार करने प्रेरित करेंगे। इस उद्योग में लगातार वृद्धि हो रही हैं और इस का विस्तार तेजी से हो रहा है।'शायद आचर्यश्री इसी वजह से इसे आंदोलन बता रहे है 
अमित बताते है दरसल मध्यप्रदेश के बीना बारॉ के पहले केन्द्र के बाद  ्जल्द ही एक-एक कर  अन्य हथकरघा प्रशिक्षण केंद्र खुलने शुरू हो गए। अब तक28 से अधिक केंद्र खोले जा चुके हंै।  वे बताते है "प्रशिक्षण के दौरान युवाओं को मेहनताना देते है, जो प्रशिक्षण के बाद हमारे साथ रहकर कपड़ा बुन सकते हैं, या फिर अपने घर पर जाकर हथकरघा या चरखा लगाकर आजीविका चला सकते हंै। वह प्रशिक्षक भी बन सकते हंै।ऐसे प्रशिक्षण केन्द्र मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र मे है मध्यप्रदेश के बीना वारहा, कुंडलपुर, मंडला, खिमलाशा, मुंगावली, आरोन, जबलपुर, राहतगढ़ और छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ व महाराष्ट्र के रामटेक में 8 सेंटर शुरू किए हैं.इन दोनो राज्यो मे जल्द ही इन कपड़ो के  बिक्री केन्द्र भी खुलने लगे है. अमित ने बताया कि अपना दायरा बढाने के लिये  केन्द्र ने कपड़ो के डिजायन तैयार करने के लिये निफ्ट के डिजायनरो को भी जोड़ा है. उन्होने बताया कि अब मध्यप्रदेश हथकरघा विकास केन्द्र भी उन्हे सहयोग दे रहा है।्महिला बुनकरो मे भी ये केन्द्र काफी लोकप्रिय हो रहे है. ऐसा ही एक केन्द्र चलाने वाली  ऋतु जैन के मुताबिक 190 महिलाओं को ट्रेंड कर लूम खुलवाए गए हैं जो अब इन करघों के माध्यम से रोजाना 200 से 300 रुपए की कमाई कर रही हैं।
आमित बताते है उनका सपना है "जिस तरह दूसरे देशों में बच्चे अध्ययन के दौरान ही अपनी फीस के लिए रुपये कमा लेते हंै, वैसा कल्चर यहां लाना है, इसीलिए हथकरघा को स्कूलों में प्रारंभ करने की कोशिश की जा रही है। इस काम से बेरोजगारी कम की जा सकती है। आज जो आर्थिक विकास कुछ ही लोगों का बनकर रह गया है, उस का विस्तार भी धीरे धीरे होगा
आचार्यश्री विद्यासागर महाराज  के अनुसार ' हथकरघा दररसल  एक आंदोलन है,श्रम का सम्मान है  शहरो की तरफ रोजगार की तलाश मे लगी अंधाधुंध दौड़  की बजाय  ्काम अपने गॉव मे  ही मिले,किसान, खेतिहर मजदूर, महिलाओ गॉवो के बेरोजगार लोगो को अपने श्रम का पूरा दाम मिले, समाज मे खुशहाली हो, राष्ट्र स्वालंबी बने'उनकी इस 'आंदोलन' मे लगे लोगो केलिये सीख है' हथकरघे के लिए मन तो आपने बना तो लिया, लेकिन मन को स्थिर रखना बहुत है। यह संकल्प ले्ना होगा ।'
 कितने ही सपने,दृढ संकल्प से भरे... अमित की तरह ही है मनीष, बनारस आईआईटी से मैकेनिकल में इंजीनियरिंग की डिग्री  लेने के बाद मारुति कार उद्योग में मैकेनिकल इंजीनियर थे। मनीष कंपनी के उन 4 प्रमुख इंजीनियरों में शामिल थे जो मारुति कार की फाइनल ओके रिपोर्ट देते थे। अब वे बीना वारहा में हथकरघा सेंटर चला रहे हैं। ऐसे ही  कितने ही नाम, कितने ही सपने चाहे शैलेंद्र और सुलभ जो  चार्टड अकाउंटेंट है  हो जोर अब   युवाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए वह अब बीना वारहा में हथकरघा प्रशिक्षण केंद्र चला रहे हैं।्सपने तेजी से आंदोलन बन रहे है....

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