दमोह, मध्य प्रदेश,30 जून (अनुपमाजैन/वीएनआई)क्या किसी साधारण से पत्थर की कीमत पॉच लाख हो सकती है?
दार्शनिक तपस्वी जैन संत आचार्य विद्यासागर महाराज ने विहार के दौरान जिस मामूली पत्थर को कुछ पल के लिए आसन बनाया था, वह पत्थर अब पारस का बन गया है। जैन धार्मावलम्बी पत्थर की कीमत पांच लाख रुपए तक लगा चुके हैं। जबकि इस पत्थर की कीमत महज तीस रुपए भी नही है। जिस व्यक्ति के पास यह पत्थर है वह इसे किसी भी कीमत पर नहीं बेचना चाहता। उसका कहना है कि यह पत्थर उसके लिए अनमोल है, आस्था है।
आचार्यश्री विद्यासागर महाराज दमोह से विहार कर श्रद्धालुओ के समूह के साथ पथरिया की ओर निकले थे। रास्ते में शहर से करीब नौ किलोमीटर दूर सेमरा तिराहे पर चाय की एक दुकान है। दुकान के सामने ही बरगद का पेड़ लगा है। आचार्य श्री कुछ पल के लिए बरगद के नीचे रखे पत्थर पर बैठ गए। आचार्य श्री को देख अभिभूत चाय दुकान संचालक बलराम पटेल ने आचार्य श्री के जाते ही पत्थर को सिद्ध स्थल पर रख दिया।
आचार्य श्री के आसन जमाने की बात सुनकर भक्त दुकान संचालक के पास पहुंचे। शिलाको पूजने के साथ ही वे दुकान संचालक से पत्थर दिये जाने का आग्रह करने लगे। पांच हजार रुपए से शुरू हुई कीमत पांच लाख तक पहुंच गई। लाख मनुहार करने के बाद भी दुकानदार ने पत्थर बेचने से मना कर दिया।
चाय दुकान संचालक बलराम पत्थर के लिये कुछ समय पहले जो एक एक साधारण सा पत्थर था ,वह पुज्यनीय हो गया । उसका कहना है कि जिस संत के दर्शन पाने के लिए हजारो श्रद्धालु हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। उस संत ने स्वयं उसके यहा पहुंच कर उसे धन्य कर दिया । वह उस पत्थर को आचार्यश्री का आशीर्वाद मान पूज रहा है। एक श्रद्धालु के अनुसार आचार्यश्री के साथ ऐसे चमत्कार देखने को सुनने को मिलते रहते .है यह घटना भी कोई चमत्कार नही बल्कि इस बात की द्योतक है कि कैसे एक साधु की घोर तपस्या और ग्यान साधना के चलते एक साधु अपने जीवन काल मे ही चलता फिरता तीर्थ बन गया है एन आई