कुंडलपुर,दमोह, मध्य प्रदेश, 21 मई (शोभनाजैन/वीएनआई)भोर की वेला,यहां के पवित्र वर्द्धमान सागर के चारो ओर बने मंदिर भोर के धुंधलके की चादर से ढके हुए है,सरोवर के ऊपर् शांत् भाव से बह रही शीतल मंद पवन सभी को शीतलता दे रही है और ठीक यहीं सरोवर के सामने चबूतरे पर दिगंबर जैन पंरपरा के दार्शनिक, घोर तपस्वी संत आचार्य विद्यासागर अपने संघ के साथ ' भक्ति साधना ' मे लीन है. वातावरण मे दिव्यता है,संतोष भरी शांति है. संघ के सम्मुख मौन श्रद्धालु भी नेत्र मूंदे भक्तिसाधना मे लीन है.भक्ति साधना सम्पन्न होती है, 'जयजिनेन्द्र, बडे बाबा की जय, छोटे बाबा की जयकार' से शांत निस्तब्धता अचानक हर्षोल्लास के स्वरो मे परिवर्तित हो जाती है. जयकार के बीच तपस्वी संत आचार्य विद्यासागर उठते है और तेजी से पहाड़ी पर् बने बड़े बाबा के दर्शन के लिये बढ चलते है,पीछे पीछे संघ के श्रद्धेय मुनिगण, साध्वी वृंद और श्रद्धालु उबड़ खाबड़ पथरीले रास्ते से तेजी से जय घोष करते हुए लगभग़ डेढ किलोमीटर के रास्ते पर भागते से चढ रहे है. एक श्रद्धालु पहली बार इस् मे क्षेत्र मे आये दूसरे श्रद्धालु को बता रहे है" आप जब पहाड़ी पर चढ कर बड़े बाबा की चमत्कारिक प्रतिमा के दर्शन करेंगे तो बड़े बाबा यानि भगवान आदिनाथ की चमत्कारिक प्रतिमा आपको मुस्करा्ती सी लगेगी,बात करती सी लगेगी , लगेगा आपसे आपके सुख दुख की बाते पूछ रही है यह प्रतिमा .ऐसा है इस विशाल प्रतिमा का चमत्कार"
सिद्धक्षेत्र कुंडलपुर यानि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ यानि बड़े बाबा का मंदिर जहा आचार्य विद्यासागर यानि छोटे बाबा दर्शन के लिये जा रहे है. एक श्रद्धालु बताते है "छोटे बाबा इस बार 7 साल बाद नदी नाले पहाड़ पार करके बड़े बाबा से मिलने कुंडलपुर पहुंचे है. इस बार उनके दर्शन की विशेष महत्ता है, इस बार यहा पंद्रह वर्ष बाद बड़े बाबा की प्रतिमा का महामस्तकाभिषेक 4 जून से 9 जून तक होने जा रहा है,जिसकी बडे पैमाने पर तैयारियॉ की जा रही है, इसमे देश विदेश से लगभग 10 लाख श्रद्धालुओ के हिस्सा लेने की उम्मीद है . कुंडल गिरि यानि कुंडलपुर जैन धर्म का ऐतिहासिक स्थल है. मध्य प्रदेश के दमोह से 35 किलोमीटर दूर पर स्थित है यह स्थल, कुंडलपुर में (पद्मासन )आसन पर बैठे बड़े बाबा आदिनाथ की प्रतिमा है ,यहां अति अलौकिक 65 मंदिर स्थापित है जो करीब आठवीं नौवीं शताब्दी से बताये जाते हैं. प्रमुख मंदिर 2500साल पुराना है और इस प्रमुख मंदिर को राजा छत्रसाल ने बनाया था .बड़े बाबा की विशालतम पद्मासन प्रतिमा 15 फुट ऊंची व 11 फुट चौड़ी है.
मंदिर के बारे मे अतिशयकारी किवदंतियॉ प्रचलित है.बताते हैं कि एक बार निकटवर्ती पटेरा गांव में एक व्यापारी व्यापार के लिये प्रतिदिन सामान बेचने के लिए पहाड़ी की दूसरी तरफ जाता था जहां रास्ते में प्रतिदिन उसकी एक पत्थर पर ठोकर लगती थी. वह पत्थर को हटने की कौशिश करता लेकिन पत्थर टस से मस नही होता एक दिन उसने खुदाई कर पत्थर हटाने की कौशिश भी की लेकिन पत्थर वही रहा , उसी रात उसे स्वप्न आया कि वह एक पत्थर नहीं बल्कि तीर्थंकर की मूर्ति है स्वप्न में उसे मूर्ति की प्रतिष्ठा करने के लिए कहा गया लेकिन शर्त यह थी कि वह पीछे मुड़ कर नहीं देखेगा उसने दूसरे दिन वैसा ही किया बैलगाड़ी पर मूर्ति सरलता से आ गई जैसे ही वह आगे बढ़ा उसे संगीत ऑफ मध्य ध्वनियां सुनाई दी जिससे उत्साहित होकर उसने पीछे मुड़ कर देख लिया और मूर्ति वहीं की वही स्थापित हो गई
संत आचार्यश्री विद्यासागर महाराज इन दिनो ससंघ यही विराजमान हैं। विश्व प्रसिद्ध बड़े बाबा एवं आचार्यश्री छोटे बाबा के दर्शनार्थ देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में श्रद्धालु एवं भक्तजन कुंडलपुर पहुंच रहे हैं। मौसम विभाग के अनुसार एक ओर पारा जहां 45 डिग्री के ऊपर जा रहा गया है वही आचार्य संघ भी तपती धूप गर्मी में भी साधना और तप में लीन हैं। सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर समितिके अध्यक्ष संतोष कुमार जैन सिंघई के अनुसार "भव्य आयोजन् के लिये समुचित प्रबंध किये जा रहे है जिसमे राज्य सरकार, जिला प्रशासन भी सहयोग दे रहा है. एक तरह से पूरी नगरी ही इस आयोजन के लिये बसाई जा रही है. पुलिस की समुचित सुरक्षा व्यवस्था के साथ विद्युत, पेयजल, साफ सफाई और मार्ग मरम्मत के लिये जोर शोर से तैयारियॉ की जा रही है आयोजन के दौ्रान 5 से 10 लाख श्रद्धालुओ के आने की उम्मीद है जिसमे देश के अनेक विशिष्ट राष्ट्रीय नेता और अपने क्षेत्र की विशिष्ट जानी मानी हस्तियॉ शामिल् है' श्री सिंघई के अनुसार छोटे बाबा जब ब्ड़े बाबा के मंदिर मे तीस बरस पहली बार यहा आये तब यह एक छोटा सा मंदिर था लेकिन अब यहा आचार्य श्री की प्रेरणा से विशाल भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है और इस चम्त्कारिक मंदिर का प्रताप शद्धालुों के बीच दिनो कृपा बरसा रहा है.
इन दिनो विशेष तौर पर यह क्षेत्र भक्त महोत्सव मे रंगा प्रतीत होता है.प्रातःकाल दूर-दूर से आए भक्तजन पर्वतमाला के उच्च सिंहासन पर विराजे बड़े बाबा का अभिषेक पूजन एवं विद्याभवन में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की पूजन में भाग लेते हैं। दिन भर यह स्थल भक्ति-उत्सव स्थल मे बदल जाता है और शाम होते ही यहा के मंदिरो से आरती के मधुर स्वर पूरे माहौल को और भी भक्ति मय कर देते है.आचार्य श्री के अनन्य भक्त और महामस्तकाभिषेक समिति के अध्यक्ष उद्द्योगपति अशोक पाटनी बताते है "सुबह आचर्य श्री की भक्ति साधना,नमोस्तु-नमोस्तु की गूंजसे शुरू होती आहार चर्या ,प्रवचन सब दिव्य अनुभूति होते है. यह सब आत्मशुद्धि की चर्या सी लगती है जहॉ ईश्वर ही सत्य है.हालांकि तापमान यहा 45 को पार कर रहा है लेकिन् क्या बुजुर्ग, क्या बच्चे सभी पूरी भक्ति भावना से तपती दोपहरी मे नंगे पॉव इधर से उधर लगे रहते है.आचार्य् श्री के घोर तप के आभा मंडल मे जीना निश्चय ही हम सबके लिये दैविक अनुभूति है'
गौरतलब है कि दिगंबर जैन साधु की आहारचर्या बेहद कठिन है. वे 24 घंटे में एक बार ही अन्न जल ग्रहण करते हैं, उसमे से भी कुछ चुनींदा खाद्य वस्तुये ही ग्रहण करते है, आहार में तीन हिस्सा पेय पदार्थ और एक हिस्सा खाद्य पदार्थ ग्रहण करते हैं। आहार लेते समय पाणि पात्र हाथ की अंजुली में जीव जंतु, बाल आदि के आने पर या किसी भी प्रकार की अशुद्धि होने पर बीच में ही आहार का त्याग कर देते हैं और फिर चौबीस घंटे बाद ही आहार के लिये जाते है। जैन दर्शन की ज्ञाता सुश्री बैनाडा बताती है' दिगंबर जैन साधु विधि मिलने, संकल्प पूर्ण होने पर ही आहार ग्रहण करते हैं। आहार और शरीर के प्रति ममत्व हटाने के लिए इन कठोर नियमों का पालन करते हैं। संत मात्र जीने के लिए आवश्यक भोजन करते हैं .
घोर तपस्वी जीवन का पालन कर रहे आचार्य श्री ने पिछले बीस वर्षो से नमक, मीठा, सब्जी,फल का त्याग कर रखा हैा अब उन्होने दूध का भी त्याग कर दिया है, उनके संघ के अधिकतर मुनि गण इसी आहार अनुशासन का पालन करते है. गौरतलब है कि आचार्य श्री के संघ मे अधिकतर मुनि उच्च शिक्षित इंजीनियर, एम बी ए, स्नातकोत्तर आदि है जब अध्ययन पूरा करने के बाद युवा संसारिक दुनिया मे पूरी तरह से शामिल होने जाते है तो ये सभी साधु बन गये और घोर तप का मार्ग अपना लिया.
महामस्तकाभिषेक समिति के एक अन्य पदाधिकारी व पारस भक्ति चैनल के निदेशक व उद्यमी पंकज जैन के अनुसार ' आचार्यश्री का तप घोर है. वे रात्रि मे भी मात्र तीन घंटे ही विश्राम करते है और वे भी एक करवट के बल पर.वे ध्यान और साधना की उस स्थति मे पहुंच चुके है जहा उन्होने अपनी इन्द्रियो को वश मे कर लिया है.' आचार्य श्री के एक अन्य परम अनुयायी पत्रकार वेदचन्द जैन बताते है"आ्चार्य श्री के प्रवचन के एक एक शब्द मे गूढ दर्शन छिपा है. घोर तप और गहन दर्शन के प्रणेता है आचार्य श्री "आचार्य श्री के एक अन्य अनुयायी एवं पत्रकार अभिनंदन जैन के अनुसार" आचार्य श्री भारतीय मूल्यो और सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतीक है.वे मानवता का पाठ पठाते है , जीव दया के जैन दर्शन के साक्षात प्रतीक है'
कुंडलपुर मे भक्ति महोत्सव चल रहा है,आचार्य श्री का प्रवचन स्थल...प्रवचन चल रहा है श्रद्धालु दत्तचित्त हो कर सुन रहे है. आचार्य श्री बता रहे है किस प्रकार भगवान राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण के जल्द गुस्सा होने की प्रवृति के मद्देनजर उन्हे मरणासन्न रावण को स्वस्थ्य मन ,पूरे सम्मान के साथ शुभकामना संदेश के साथ भेजा. रावण के पूर्व आचरण की वजह से क्रोधित लक्ष्मण कई बार वहा गये लेकिन अपना मन स्वस्थ नही कर पाये,भगवान राम ने उन्हे स्वस्थ मन का जो भाव समझाया था अन्तत उन्हे वह समझ आया. प्रवचन सपन्न् हो गया है.स्वस्थ मन की अवधारणा साफ होती जा रही है. कोई, मान अभिमान नही, कोई कषाय नही,कोई दुर्भावना नही,सौहार्द ..सौहार्द.. मानवता के कल्याण का गुरू मंत्र.वीएनआई