डब्लिन, 27 मई (वीएनआई) क्या आप जानते है आयरलेंड मे गत 25 मई को गर्भपात क़ानून को लेकर कराए गए ऐतिहासिक जनमत संग्रह और इसमे गर्भपात को वैध कराये जाने के पीछे की पृष्ठभूमि में एक भारतीय महिला की दर्दनाक कहानी भी जुड़ी है. इस जनमत संग्रह मे क़ानून में बदलाव के समर्थन में वोट किया है और अब यहां की महिलाएं भी गर्भपात करा सकेंगी.
जनमत संग्रह के नतीजों के मुताबिक 66 प्रतिशत से अधिक लोगों ने गर्भपात पर प्रतिबंध हटाने के लिए संविधान में संशोधन के पक्ष में वोट किया है. आयरलैंड के भारतीय मूल के प्रधानमंत्री लियो वरदकर ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि इसी साल नया गर्भपात क़ानून पारित हो जाएगा.दरअसल, आयरलैंड में यह जनमत-संग्रह गर्भपात पर दशकों तक चली बहस का नतीजा है. गर्भपात न होने की वजह से मौत को कई मामले भी हुए और उन कई मामलों में से एक अहम किरदार उस भारतीय महिला का भी है जिसकी मौत आज से छह साल पहले आयरलैंड में गर्भपात की इजाज़त नहीं दिए जाने के कारण हो गई थी.ऐसे ही एक मानवीय संवेदना से जुड़े मामले मे बलात्कार की शिकार एक दस वर्षीय बच्ची को गर्भपात की अनुमति नही मिली थी
आयरलैंड में भारतीय मूल की सविता हलप्पनवार का छह साल पहले मिसकैरेज हो गया था. हालांकि कड़े कैथोलिक क़ानून के चलते गर्भपात कराने की कई बार मांग कर चुकी सविता को इसकी इजाज़त नहीं दी गई. इस वजह से उनकी मौत हो गई थी.
बताया जाता है कि डॉक्टरों ने गर्भपात करने से इनकार कर दिया था क्योंकि सविता का भ्रूण जीवित था.अस्पताल वालों ्का कहना था कि कैथोलिक देश में उसका गर्भपात नहीं हो सकता है. अस्पताल मे उस की दशा गंभीर होती गई आखिर कार उन्होने कुछ दिन बाद २८ अक्टूबर २०१२ को अस्पताल मे दम तोड़ दिया. सविता की मौत के बाद आयरलैंड के गर्भपात क़ानूनों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे.जिसके बाद वहां की सरकार ने गर्भपात के मुद्दे पर क़ानूनी स्पष्टता लाने की घोषणा की और कहा कि वो एक ऐसा क़ानून बनाएगी जिसमें मां को जान का जोखिम होने पर गर्भपात का प्रावधान होगा. तब वहां के डॉक्टरों के लिए ऐसे कोई दिशा-निर्देश नहीं थे कि उन्हें किन स्थितियों में गर्भपात करना है और किनमें नहीं.
इसके बाद ही मां की ज़िंदगी ख़तरे में होने पर गर्भपात की मंजूरी के लिए 2013 में इस क़ानून में बदलाव किया गया था.सविता ौर उन के उनके वैज्ञानिक पति प्रवीण हलप्पनवार आयरलैंड में छह सालों से रह रहे थे. सविता खुद दातों की डॉक्टर थीं. उनकी मौत का मामला वहां की अदालत में गया जहां ज्यूरी ने उसे 'चिकित्सकीय हादसा' करार दिया. लेकिन उनके परिवार का कहना है कि अगर गर्भपात की अनुमति दी जाती तो सविता की जान बचाई जा सकती थी. गर्भपात कानून के खिलाफ महिलाओं की हड़ताल भी होती रही है.आयरलैंड के क़ानून में परिवर्तन के लिए महिला संगठन लंबे समय से आवाज़ उठाते रहे हैं मगर बहुसंख्यक कैथोलिक समुदाय में ऐसे लोगों की बड़ी तादाद है जो हर हाल में गर्भपात के विरोधी हैं.यह भी कहा गया कि बहुसंख्यक समुदाय की नाराजगी की आशंका कोई भी राजनैतिक दल इस दिशा मे कदम उठाने को तैयार नही था. यह भी देखा गया कि आयरिश महिलाओं को कई बार ऐसी अवस्था मे गर्भपात के लिये ब्रिटेन तक जाना पड़ता था.
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