नई दिल्ली, 05 जून, (वीएनआई) अयोध्या तीर्थ आज पूरे विश्व में आकर्षण केन्द्र बना हुआ है। जहां भगवान राम के नाम से इस अयोध्या नगरी की पहचान पूरे विश्व में है। वहीं जैनधर्म का भी यह मूल शक्ति स्थान है, जहां जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव जैसे महापुरुष का जन्म हुआ था।
जैन प्राचीन आगमों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि युग की आदि में जैनधर्म का प्रवर्तन भगवान ऋषभदेव के द्वारा इसी अयोध्या की धरती से किया गया है। भगवान ऋषभदेव का जन्म राजा नाभिराय और माता मरुदेवी के महल में हुआ, जिसके पश्चात् उन्होंने इस धरती का राज्य संभाला। इतना ही नहीं जब भोगभूमि की व्यवस्था इस धरती से समाप्त हो रही थी, तब कर्मभूमि की व्यवस्था बनाकर प्रजा को जीवने जीने की कला सिखाई थी। असि, मषि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प जैसी इन छह क्रियाओं के माध्यम से भगवान ने प्रजा को जीवने जीने की नई राह दिखाई थी।
जैनधर्म में इस अयोध्या की महानता इतनी ही नहीं अपितु इसी अयोध्या से भगवान ऋषभदेव के प्रथम पुत्र भरत चक्रवर्ती ने समस्त आर्यखण्ड और 5 म्लेच्छखण्ड की धरती पर राज्य करके चक्रवर्ती का पदभार संभाला। भरत चक्रवर्ती के सुशासन में पूरे छह खण्ड की धरती पर प्रजाजन सुख-शांति और प्रसन्नता से जीवन व्यतीत करती थी। इसके साथ ही भगवान ऋषभदेव की दो पुत्रियां ब्राह्मी और सुंदरी हुईं, जिनमें भगवान ने ब्राह्मी को अक्षर लिपि और सुंदरी को अंक लिपि सिखाकर नारी शिक्षा का सूत्रपात किया और समस्त प्रजा के समक्ष लिपि ज्ञान को भी इस धरती पर प्रस्तुत किया। जैनधर्म में ऐसे अनेकानेक इतिहासों से सुसज्जित इस अयोध्या नगरी में ही भगवान ऋषभदेव के बाद चैबीस तीर्थंकरों में से दूसरे तीर्थंकर भगवान अजितनाथ, चैथे तीर्थंकर भगवान अभिनंदननाथ, पांचवे तीर्थंकर भगवान सुमतिनाथ और चैदहवें तीर्थंकर भगवान अनंतनाथ का भी जन्म हुआ, जिन्होंने प्रत्येक काल में प्रजा को सत्य, अहिंसा जैसे सिद्धान्तों का सदुपदेश देकर विश्वशांति की स्थापना की।
ऐसी इस अयोध्या धरती पर वर्तमान में सर्वोच्च जैन साध्वी भारतगौरव गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा व सान्निध्य में देश का ऐतिहासिक महोत्सव सम्पन्न हो रहा है, जिसमें लगभग 25 प्रान्तों से, 150 जिलों से और लगभग 500 स्थानों से भक्तजन पधारकर पिछले 30 अप्रैल से 5 मई 2023 तक तीस चैबीसी तीर्थैंकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोतसव का आयोजन सम्पन्न कर रहे हैं। 30 अप्रैल को झण्डारोहण, यागमण्डल विधान, गर्भकल्याणक जैसे आयोजन, 1 मई को पूरे अयोध्या नगरी में विशाल जुलूस निकालकर चप्पे-चप्पे पर भगवान ऋषभदेव और जैनत्व की पहचान प्रस्तुत कीगई, जिसमें 5000 से ज्यादा लोगों ने भाग लेकर पुण्य अर्जित किया। पुनः इसी क्रम में 2 मई को भगवान ऋषभदेव का दीक्षाकल्याणक मनाया जा रहा है, जिसमें एक दीक्षार्थी ब्र. जयकुमार जी को भी जैनधर्म की क्षुल्लक दीक्षा प्रदान करके उसके मोक्षमार्ग को प्रशस्त किया गया।
यह प्राण प्रतिष्ठा तीस चैबीसी तीर्थंकरों के 720 प्रतिमाओं की तथा भगवान ऋषभदेव के मोक्षप्राप्त पुत्र-101 भगवन्तों की तथा जिनके नाम से इस देश का नाम भारत पड़ा, ऐसे चक्रवर्ती भरत स्वामी की 31 फुट विशाल जिनप्रतिमा की सम्पन्न की जा रही है, जिसमें प्रतिष्ठाचार्य विजय कुमार जैन, वृषभसेन उपाध्ये, अकलंक जैन, सतेन्द्र जैन आदि समस्त विधिविधान करा रहे हैं। समारोह में जैनधर्म के गुरुओं में आचार्य श्री विपुलसागर जी महाराज, आचार्य श्री भद्रबाहुसागर जी महाराज, आचार्य श्री विशदसागर जी महाराज, मुनि श्री अनुशरण सागर जी महाराज एवं गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के समस्त साधु-संतों का सान्निध्य प्राप्त हो रहा है। विशेषरूप से समस्त ऐतिहासिक आयोजन का मार्गदर्शन प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी के द्वारा एवं कुशल नेतृत्व पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी के द्वारा किया जा रहा है। समस्त कार्यक्रम का संचालन डाॅ. जीवन प्रकाश जैन ने किया हैं।
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