भारतीय स्वाद और लेटिन अमरीकी खानों का फ्युजन लोकप्रिय हो रहा है अमरीका में

By Shobhna Jain | Posted on 7th Jun 2018 | देश
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शिकागो, 7 जून (वीएनआई) अमरीकामें भारतीय मूल की एक युवती द्वारा बनाया जा रहा भारतीय स्वाद  और लेटिन अमरीकी खानों का फ्युजन  लोग  वहा बहुत चटखारे ले कर खा रहे हैं. उन का इस तरह के खाने का रेस्तरांरो खासा लोकप्रिय हो रहा है.  रोहिणी डे मैनेजमेंट साइंस में पीएच.डी. हैं। वे कई वर्ष तक वर्ल्ड बैंक अमरीका में काम  कर चुकी है. एक अन्य नामी कंपनी की कंसल्टेंट के तौर पर उन्होने जब दुनिया भर का दौरा किया  तो उन्हे लगा कि इस ्तरह के फ्युजन खानें  को लोक प्रिय बनाने की काफी संभावनाये है।  2004 में उन्होंने अपने हाई प्रोफाइल बिजनेस कॅरियर को अलविदा एक रेस्टोरेंट खोला।
 
रोहिणी शिकागो के इलिनॉय में एक प्रसिद्ध रेस्टोरेंट 'वर्मिलियन' की मालकिन हैं। यहां भारतीय और लैटिन अमेरिकी व्यंजनों के मेलजोल से बेहद स्वादिष्ट डिश तैयार होती हैं।  उन के इन खानों मे जीरा, धनिया, दही और गरम मसाले, नारियल  जैसे पदार्थों और मसालों का इस्तेमाल काफी  होता है जो भारतीय और लेटिन अमरीकी खानो दोनो का मूल होता है . उन की एक निरामिष डिश को यूएस टुडे ने बेस्ट डिश इन द वर्ल्ड का खिताब तब दिया, जब इस रेस्टोरेंट को खोले हुए महज दो सप्ताह हुए थे। एस्कॉयर और बॉन एपेटाइट जैसी पत्रिकाओं्ने भी  वर्मिलियन को ‘बेस्ट रेस्टोरेंट्स’ की सूची में रखा। उन का कहना है क़ी भारतीय खान-पान के प्रति प्यार ने ही उन्हें रेस्टोरेंट व्यवसाय में जाने को प्रेरित किया, जिसके पीछे भारतीय व्यंजनों का एंबेसेडर बनने का उद्देश्य भी निहित था। डे कहती हैं, ‘‘मैंने कंसल्टेंट के तौर पर 15 साल काम किया, जिसमें बाहर खाना अनिवार्य था और जो महंगा भी था। तभी मुझे लगा कि इस क्षेत्र में काफी संभावनाएं हैं। दरअसल, जापानी, कोरियाई और वियतनामी व्यंजनों के प्रति लोगों में उत्सुकता पैदा हो गई थी। इससे मुझमें कुछ ऐसा भाव पैदा हुआ कि मैं भारतीय खान-पान के प्रति वही उत्सुकता पैदा करूंगी।’’
 
 
वर्मिलियन की शुरुआत कर डे ने भारतीय और लैटिन अमेरिकी खान-पान का  एक फ्यूजन तैयार किया. यह दो संस्कृतियों के मिलन के बारे में भी बताता है, जो पुर्तगाली, फारसी, मूरी और स्पैनिश आबादी के इन दोनों क्षेत्रों में फैलने से पैदा हुई है। वह कहती हैं, ‘‘मैं कुछ ऐसा करना चाहती थी, जिससे लोगों में उत्साह  बढ़े, हमारे व्यंजनों का फ्यूजन अनूठा था और लोग इसके बारे में पूछते थे। हमने खुद को  अलग साबित किया।’ आज डे न सिर्फ वर्मिलियन  चलाती हैं, बल्कि अनेक अमेरिकी विश्वविद्यालयों में एंटरप्रेन्योर-इन-रेजीडेंस की भूमिका में अपने कारोबार के हुनर के बारे में विद्यार्थियों के साथ अनुभव भी साझा करती हैं। डे मानती हैं कि इस क्षेत्र में काम अधिक है, जबकि वेतन बहुत कम। किचन में अत्यधिक प्रतस्पिर्द्धा और निरंतर श्रम है, जबकि ग्लैमर न के बराबर है। लेकिन अगर विद्यार्थियों को इस क्षेत्र में रुचि है, लगन है तो उन्हे इस काम मे जुट जाना चाहिये और डे उन्हें इस काम में पूरी तरह डूब जाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं 
 
डे न्यू यॉर्क सिटी स्थित एक गैर-मुनाफे वाले कलिनरी आर्ट्स ऑर्गेनाइजेशन जेम्स बीयर्ड फाउंडेशन के वीमेन इन कलिनरी लीडरशिप प्रोग्राम की सह-संस्थापिका के तौर पर भी काम करती हैं। इसकी वह ट्रस्टी भी हैं। यह पहल एक ऐसा जरिया है, जिसके द्वारा डे रेस्टोरेंट उद्योग में महिला नेतृत्व बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं। वह कहती हैं, ‘‘मैं वर्षों से इस पर बात कर रही हूं कि अमेरिकी सीनेट में 21 फीसदी या शीर्ष 100 सीईओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) में तीन फीसदी होने से काम नहीं चलने वाला। हमारी इंडस्ट्री में तो आंकड़े और भी बदतर हैं, और हम ठोस काम के जरिये इस स्थिति को बदलना चाहते हैं।’ किचन, बोर्डरूम और क्लासरूम में लगातार कुछ नया करने वाली डे का प्रमुख लक्ष्य सिर्फ यह नहीं है कि औरत बोले और उसे सुना जाए, बल्कि वह चाहती हैं कि महिलाएं नेतृत्व करें और मालकिन बनें। वह कहती हैं, ‘‘मैं बुनियादी रूप से यह मानती हूं कि सशक्तीकरण तभी आता है, जब आप किसी उपक्रम की मालकिन हों।’ वह कहती हैं, ‘‘आने वाले दिनों में वे इसे अमेरिका के दूसरे इलाकों के साथ भारत तथा पूरी दुनिया में फैलाना  चाहती है. वीएनआई (साभार  स्पैन पत्रिका)

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