इस शहर मे मिलते है अजनबी मानसिक रोगियो को दत्तक परिवार

By Shobhna Jain | Posted on 2nd Jul 2016 | देश
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जील, बेलजियम,2 जुलाई(अनुपमा जैन/वीएनआई)सुन्न पड़्ती जा रही संवेदनाओ के इस दौर में राहत देने वाली एक खबर... सदियो से यह शहर अपने यहा दूर दूर दे आये अजनबी मानसिक रोगियो को बसेरा देता रहा है.इन अजनबी मानसिक रोगियो को यहा 'दत्तक परिवार' मिलते है जो उन्हे स्नेह देते है,उन्हे अपनाते है अपने घरो मे अपने साथ रखते है, उनका ख्याल रखते है. ऐसे कई रोगी तो इन परिवारो के साथ 50-50 वर्षो से रहते चले आये है. कई परिवारो मे तो माता पिता की मृत्यु के बाद उनके बच्चो ने इन अजनबी मानसिक रोगियो की देखभाल जारी रखी.. भले ही यह खबर आज अजीब सी लगे लेकिन यह हकीकत है कि बेल्जियम के खूबसूरत छोटे से शहर जील मे मध्ययुगीन एक चर्च है जो डिम्फना देवी को समर्पित है.मान्यता है कि डिम्फना देवी के पास मानसिक बीमारियॉ दूर करने की 'शफा' थी. इसी लिये योरोप भार से आज भी श्रद्धालु इस शहर मे चर्च के दर्शन के लिये आते है और अनेक मानसिक रोगी यही के हो जातेहै.इसी शहर मे दूर दूर से अनजाने, अजनबी मानसि्क रोगी पिछले 700 बरस से आते रहे है, यहा के लोग न/न् केवल उन्हे अपने यहा रख कर उनका ख्याल्र रखते है बल्कि उन्हे अपने घरो मे रख कर उनकी देखभाल करते है. और सबसे बड़ी बात कि यहा आये ये सभी मानसिक रोगी नही कहलाते बल्कि 'मेहमान' कहलाते है. फिलहाल इस शहर मे लगभ्ग 250 'मेहमानो' का बसेरा इन 'शुभ चिंतको' के यहा है. दरसल यह जील का यह चलन है लेकिन यह सिर्फ एक प्र्था या पंरपरा ही नही है बल्कि सरकार भी इस कार्यक्रम को सहायता देती है.इन मेहमानो ्के यहा आने पर सीधे इन शुभ चिंतको के घरो मे नही भेजा जाता है बल्कि इस कार्यक्रम को चलाने वाले मानसिक रोगो के अस्पताल मे पहले भेजा जाता है वहा उनके इलाज के साथ साथ इन शुभचिंतको के घरो मे रहने को भेजा जाता है और अस्पताल के अधिकारी ही यह तय करते है कि किस मेहमान को किस शुभ चिंतक के दत्तक घर मे भेजा जाये . वैसे आम तौर पर मेहमान और दत्तक परिवार अक्सर आपस मे घुल मिल जाते है लेकिन बाज दफा ऐसे उदाहरण भी मिलते है जबकि शुभ चिंतक परिवार और मेहमान दोनो मे से किसी ने एक दूसरे के साथ बुरा सलूक किया वैसे वहा एक कानून यह भी है कि अगर कोई मेहमान परिवार मे रह कर कोई अपराध करता है तो गलती परिवार की मानी जाती है, लेकिन साथ ही ऐसे भी उदाहरण भी है जब कोई मेहमान नियंत्रण से बाहर हो जाता है तो उसे जंजीर से कैद कर लिया गया हो या नजर कैद तक कर दिया गया हो. मान्यता है देवी डिमफना सातवी सदी की आयरिश राजकुमारी थी जो अपनी माता की मृत्यु के बाद अपने पिता के क्रोध से बचते हुए जील आ गयी और यहा उसने अपना जीवन मानसिक रोगियो केलिये समर्पित कर दिया और उ्नके हाथ मे ऐसी शफा थी कि मानसिक रोगी उसकी सेवा से ठीक भी हो जाते थे इसी मान्यता के चलते योरोप भर से श्रद्धालु इस चर्च के दर्शनार्थ आते है. अनेक परिवार ैसे है जो एक के बाद एक कितने ही मानसिक रोगियो को एक् के बाद एक रखते रहे है . ऐसे अनेक परिवार है जो अपने परिवारो अपने परिवार मे लगातार कई रोगी रख चुके है, उनका कहना है कि इनके 'दीवनेपन' से अक्सर् वे निबट लेते है कुछ तो पूरी तरह से उनके अपने बन जाते है और पूरी तरह से घुल मिल जाते है. आखिर जील मे सदियो से यह पंरपरा कैसे निर्बाध रूप से चली आ रही है, जबकि जील निवासियो द्वारा इन अजनबी मेहमानो को इन दत्तक घरो मे रखना अक्सर चर्चा का विषय रहा है और सदियो से इस प्रथा को ले कर अलग अलग मत रहे है यहा के लोगो का कहना है कि यह उनकी विरासत है जिसे आगे बढाना उनका फर्ज है और उन्हे इस पंरपरा पर गर्व है. बेल्जियम सरकार प्रत्येक शुभ चिंतक परिवार को प्रत्येक मेहमान केलिये लगभग 45 डॉलर प्रति दिन के हिसाब से मेहमानो के भरन पोषण के लिये देती है लेकिन यह भी सच है कि धीरे धीरे इन शुभ चिंतक परिवारो के संख्या सिमट् रही है लेकिन फिर भी ऐसे जील निवासी अब भी काफी है जो इस पंरपरा को आगे ले जाना फर्ज मानते है.वी एन आई

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