बस कंडक्टर की बेटी साक्षी: नाम है कभी भी हार नही मानने वाले जज्बे का

By Shobhna Jain | Posted on 18th Aug 2016 | देश
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रियो द जनेरो/नईदिल्ली,18 अगस्त (वीएनआई)भारत को रियो ओलंपिक मे पहला पदक दिलवाने वाली साक्षी नाम है उस जज्बे का जो कभी भी हार नही मानता है और अन्तत लक्ष्य को हासिल् कर ही दम लेता है.तीन सितम्बर 1992 को जन्मी साक्षी के पिता सुखबीर मलिक दिल्ली परिवहन निगम मे कंडक्टर हैं तथा उनकी मां भी सरकारी कर्मचारी हैं. माता पिता की प्रेरणा से साक्षी को 12 साल की उम्र से ही कुश्ती में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी. स्थानीय लोग अक्सर उनका विरोध करते रहते थे. इस सफर में साक्षी के माता-पिता के अलावा उनके स्कूल और कॉलेज ने उनकी बहुत मदद की.साक्षी की विजय से पूरे देश मे अभी तक ओलंपिक मे भारत को एक भी पदक नही मिलने से छाई निराशा छंटने लगी है हरियाणा सरकार ने साक्षी मलिक के रियो ओलंपिक में पहला पदक जीतने के बाद 2.5 करोड़ रुपये के इनाम की घोषणा की है. इसके साथ ही सरकार ने उन्हें सरकारी नौकरी देने का भी ऐलान किया है. भारत को रियो ओलंपिक 2016 में पहला मेडल दिलाने वाल साक्षी मलिक ने कहा कि यह उनके 12 साल की तपस्या का परिणाम है. क्वार्टर फाइनल में हारने के बाद साक्षी ने मेडल की उम्मीद छोड़ दी थी. उनके कोच ने उन्हें समझाया कि अभी भी उनके पास मेडल जीतने का अवसर है. अगर वह छह मुकाबले जीत जाती हैं तो मेडल पक्का हो जायेगा. साक्षी ने अपने आप को एकबार फिर मानसिक रूप से तैयार किया और लगातार जीतते हुए भारत के लिए कांस्य पदक हासिल कर ली. इस जीत की खुशी में साक्षी के पैत्रिक आवास के पास जमकर आतिशबाजी हुई और रंग गुलाल उड़ाये गये. इतिहास रचने के पीछे भारतीय महिला पहलवान साक्षी मलिक अपने पिता सुखवीर सिंह और मां का बड़ा योगदान मानती हैं. हालांकि मां पहले नहीं चाहती थी कि उनकी बेटी खेल पर इतना ज्यादा ध्‍यान दे. मां का मानना था कि जो बच्चे खेल पर ज्यादा ध्‍यान देते हैं उनकी पढ़ाई पिछड़ जाती है. लेकिन साक्षी ने इस मिथक को तोड़ा और पढ़ाई में भी 70 प्रतिशत नंबरों के साथ अव्वल रही. साक्षी बताती हैं कि उन्होंने कुश्ती लड़ने की प्रेरणा अपने दादाजी से ली, जो अपने समय में पहलवान थे. साक्षी के पिता सुखवीर मलिक बताते हैं कि हमारे घर के बाहर रात से ही पटाखे और रंग गुलाल खेला जा रहा है. रात से ही घर के अंदर-बाहर लोग इकट्ठा हो गये. आज के बाद देशवासियों के लिए साक्षी अनजान नहीं रहेगा. सुखवीर मलिक का कहना है कि जब साक्षी पैदा हुई तो मेरी पत्नी की जॉब लग गई. हमनें साक्षी को उसके दादा दादी के पास रहने भेज दिया. वह सात साल की होने तक अपने दादा दादी के पास रही. जब गांव के लोग मेरे पिता जी से मिलने आते थे तो पहलवान जी राम-राम कहते थे. तभी से उसने ठान लिया कि वो दादा की तरह पहलवान बनेगी. फिर हमने रोहतक के छोटू राम स्टेडियम में उसको ट्रेनिंग दिलाई. साक्षी की मां कहती हैं कि मैं कभी नहीं चाहती थी कि बेटी पहलवान बने. समाज में अक्सर यही कहा जाता रहा कि पहलवानों में बुद्धि कम होती है, पढ़ाई में पिछड़ गई तो कॅरिअर कहां जाएगा. लेकिन खेल में 6 से 7 घंटे प्रैक्टिस करने के बाद भी साक्षी ने पढ़ाई में 70 फीसदी मार्क्स लेकर इस मिथक को तोड़ दिया. उसके कमरे में आज गोल्ड, सिल्वर व ब्रांज मेडल का ढेर लगा है. पहली बार 15 साल पहले साक्षी को उनकी मां खिलाड़ी बनाने के लिए छोटूराम स्टेडियम लेकर गई थी. वहां साक्षी ने अपने लिए खुद कुश्‍ती का चुनाव किया था. साक्षी ने 2010 में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था. साल 2014 में उन्होंने सीनियर लेवल पर डेव शुल्ज अंतर्राष्ट्रीय रेसलिंग टूर्नमेंट में अमेरिका की जेनिफर पेज को हराकर 60 किग्रा में गोल्‍ड मेडल जीता.साल 2014 में हुए ग्लासगो कॉमनवेल्थ खेलों में 58 किग्रा वर्ग में साक्षी ने रजत पदक जीता था. साक्षी ने इसके बाद साल 2015 में दोहा में हुई सीनियर एशियन रेसलिंग चैंपियनशिप में 60 किग्रा में कांस्य पदक जीता था. और इस वर्ष 6. जुलाई 2016 में उन्होंने स्पेनिश ग्रैंड प्रिक्स में कांस्य पदक जीतकर उन्होंने रियो ओलिंपिक के लिए तैयार होने का बिगुल बजा दिया.वी एन आई

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