काठमांडू,16 जून(अनुपमाजैन/वीएनआई)नेपाल के इस छोटे से स्कूल मे 12-13 साल के बच्चो के साथ लहराती सफेद दाढी वाले 68 वर्षीय दादाजी भी स्कूल यूनीफॉर्म पहन कर् पूरे मनोयोग से पढते है.हा्थ मे छड़ी लेकर स्कूल आने वाले दादा जी को बच्चे उन्हे 'बाबा' बुलाते है स्कूल की आधी छुट्टी मे. बाबा अपने सहपाठियो के साथ बैठ कर पोपले दॉतो से रूखा सूखा खाना पोपले दॉतो से खाते है, उनके साथ खेलते है, और छुट्टी हो जाने पर बस्ता ऊठा कर इन बच्चो के साथ गपियाते हुए घर लौटते है.
यहा से लगभग 250 किलो मीटर दूर सिंगजा के छोटे से कस्बे मे रहने श्री कमी एक जीर्ण- शीर्ण घर मे रहते है.दादाजी दुर्गा कामी गरीबी की वजह से पढाई पूरी नही पर पाये.सपना था शिक्षक बने और फिर शिक्षा दूसरो मे बांट सके, लेकिन तब उनका यह सपना पूरा नही हो सका.जिंदगी की आपा धापी, घर परिवार का पेट पालने जैसी जिम्मेवारियो मे सपना दब गया लेकिन मरा नही.बु्ढापे तक आते आती जिंदगी की भाग दौड़ यूं ही चलती रही. छह बछ्चे हुए, आठ नाती पोते. पत्नि के मरने के बाद जिंदगी और भी खाली सी हो गई.मन मे कही दबी पढने की इछ्छा फिर कौंधने लगी.इन्हे बैचेनी भरे वाले दिनो मे उन्हे उनके स्कूल श्री कला भैरब हायर सेकन्ड्री स्कूल की मास्टरजी श्री डी आर कोइराला को उनके बारे मेपता चला.उन्होने दादा जी को स्कूल् पढने के लिये आने को कहा. मास्टर जी ने उन्हे स्कूल की वर्दी-सलेटी पेंट, सफेद कमीज, नीली धारी दार टाई और कोी किताबे वगैरह दी. फिर क्या था उनका सपना कुलॉचे भरने लगा.रात से ही सुबह स्कूल जाने कऐंजार शुरू हो जाता है दादा जी कहते है ' जब मै स्कूल आता हूं तो बेफिक्र हो कर सिर्फ पढाई ही करना चाहता हूं.यहा सारी फिक्र, चिंताये हवा हो जाती है.अब तो सपना है कि मरते दम तक सिर्फ पढता और पढता हे रहूं."श्री कोइराला कहते है कि अपने पिता की उम्र के श्री कामी को पढने से उन्हे बहुत ही संतोष मिलता है, साथ के सहपाठी भी कहते है ' बाबा अभी तो पढाई मे कुछ पी्छे है, लेकिन उनकी जो लगन है वे जल्द ही पढआई मे अव्वल होंगे.वी एन आई