नई दिल्ली, 5 दिसंबर ( शोभनाजैन/वीएनआई) अपने जीवन के सफ़र के बारे में चर्चा करते हुए अम्मा जयललिता ने कभी कहा था, मेरी ज़िंदगी का एक तिहाई हिस्से पर मेरी माँ का प्रभाव रहा. ज़िंदगी के दूसरी तिहाई हिस्से पर एमजीआर का. मेरी ज़िंदगी का सिर्फ़ एक तिहाई हिस्सा ही मेरा है. मुझे इसी में बहुत सारी ज़िम्मेदारियों और कर्तव्यों को पूरा करना है.
अपने समर्थको के लिये "पुरातची तलाईवी ('क्रांतिकारी नेता'रही जयललिता ने जिंदगी के इसी तीसरे हिस्से की जिम्मेवारी निभाते निभाते आज दुनिया से विदा ले ली और इस विदा के साथ ही तमिलनाडु की एक ही व्यक्ति पर केन्द्रित लोकप्रिय राजनीति के एक अध्याय का सम्भवतः अंत हो गया.तमिलनाडु की राजनीति में वे एमजीआर की छवि के सहारे आगे बढी लेकिन धीरे धीरे उनकी खुद की छवि और भी बड़ी हो गई और अपनी मेहनत और संघर्ष से खुद के नाम और छवि को स्थापित किया, तमिलनाडु की सड़को पर् आज /न केवल उनके समर्थको बल्कि अन्य लोगो का क्रंदन इसी लोकप्रियता का उदाहरण है.उनकी राजनीति का तौर तरीका, तो भृष्टाचार को लेकर उन पर अनेक आरोपो के बावजूद उनके विरोधियो का भी मानना था कि वे एक जुझारू नेता थी. तमिलनाडु की राजनीति मे सत्ता एक बार द्रमुक और फिर अन्ना द्रमुक के बीच बंटे प्रदेश मे 25 मार्च 1989 में तमिलनाडु के विधानसभा में जो हुआ, उसने लोगों में जयललिता के प्रति सुहानुभूति और बढ़ा दिया.
उस दिन सत्ता पक्ष यानी डीएमके के सदस्यों और अन्ना द्रमुक के सदस्यों के बीच सदन में ही हाथापाई हुई और जयललिता के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती की गई. अपनी फटी साड़ी के साथ जयललिता विधानसभा से बाहर आईं और लोगों ने सत्ता पक्ष को इस घटना के लिए खूब कोसा.
यही वो दिन था जब जयललिता ने सदन से निकलते हुए कहा था कि अब वे मुख्यमंत्री बन कर सदन में लौटेंगी वर्ना नहीं. साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद हुए चुनावों में जयललिता ने कांग्रेस से चुनावी समझौता किया और 234 में से 225 सीटें जीत लीं. वे मुख्यमंत्री बन कर ही सदन मे लौटी .सही मायने मे जयललिता तमिलनाडु की सम्भवत ऐसी आख़िरी नेता हैं, जिनके साथ उनके समर्थक किसी भी हद तक जाकर खड़े रहते हैं. लेकिन, उनकी सबसे बड़ी कमी हैं कि जयललिता ने कभी अपनी पार्टी में दूसरी या तीसरी पंक्ति के किसी नेता को खड़ा नहीं होने दिया शायद यही वजह है कि अन्ना द्रमुक मे नये नेतृत्व को लेकर आज सवाल ही सवाल है.
राजनीति में आने से पहले वे एक लोकप्रिय अभिनेत्री थीं और उन्होंने तमिल, तेलुगू, कन्नड की फिल्मों के अलावाएक हिंदी फिल्म में भी काम किया है।
जयललिता का जन्म एक तमिल परिवार में 24 फरवरी, 1948 में हुआ था और वे पुरानी मैसूर स्टेट (जो कि अब कर्नाटक का हिस्सा है) के मांडया जिले के पांडवपुरा तालुक के मेलुरकोट गांव में पैदा हुई थीं। उनके दादा तत्कालीन मैसूर राज्य में एक सर्जन थे और उनके परिवार के बहुत से लोगों के नाम के साथ जय (विजेता) का उपसर्ग लगाया जाता है जो कि परिवार का मैसूर के महाराजा जयचामराज वाडियार के साथ संबंध को दर्शाता है। कुशाग्र छात्रा रही जयललिता शुरू से ही जे जयललिता एक कामयाब वकील बनना चाहती थीं. लेकिन, किस्मत ने उन्हें पहले फिल्मों और फिर राजनीति में धकेल दिया.
दोनों ही क्षेत्रों में उनका सफर आसान नहीं रहा है. जयललिता 140 फिल्में करने, 8 बार विधानसभा का चुनाव लड़ने और एक बार राज्यसभा के लिए मनोनीत होने के अलावा पांच बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनी .उन्हें राज्य की दूसरी महिला मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हैं।
उनकी माँ वेदवल्ली ने तमिल सिनेमा में काम करना शुरू कर दिया और अपना नाम बदल कर संध्या रख लिया. उन्होंने दक्षिण भारत में उस दौर के लगभग सभी सुपरस्टारों, मसलन, शिवाजी गणेशन, जयशंकर, राज कुमार, एनटीआर यानी एन टी रामाराव और एम जी रामचंद्रन यानी एमजीआर के साथ काम किया.एम.जी. रामचंद्रन के साथ 1982 में राजनीतिक शुरुआत करते हुए उन्होंने अन्ना द्रमुक की सदस्यता ग्रहण की और 1983 में पार्टी की प्रचार प्रमुख बन गईं और विधायक भी, उन्होंने पहला चुनाव तिरुचेंदूर सीट से जीता, बाद में अंग्रेजी में उनकी वाक क्षमता को देखते हुए रामचंद्रन ने उन्हें 1984 में राज्यसभा भेजा.1965 से 1972 के दौर में उन्होंने अधिकतर फिल्में एमजी रामचंद्रन के साथ की।[3] फिल्मी करियर के बाद उन्होने एम॰जी॰ रामचंद्रन के साथ 1982 में राजनीतिक करियर की शुरुआत की
साल 1988 में एम जी रामचंद्रन के निधन के बाद अन्ना द्रमुक दो हिस्सों में बंट गया. एक हिस्से का नेतृत्व एमजीआर की पत्नी जानकी कर रहीं थी तो दूसरे का.राजनैतिक सीढियॉ तेजी से चढ रही जयललिता को लगने लगा कि वे एमजीआर की राजनीतिक उत्तराधिकारी है.
लेकिन, उस वक़्त तमिलनाडु विधानसभा के अध्यक्ष पी एच पांडियन ने जयललिता के गुट के 6 सदस्यों को अयोग्य क़रार दिया. जानकी रामचंद्रन तमिलनाडु की पहली महिला मुख्यमंत्री बन गईं.लेकिन जयललिता भी 24 जून, 1991 से 12 मई तक राज्य की पहली निर्वाचित मुख्यमंत्री और राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री रहीं। प्रशासन मे भी वे धीरे धीरे अपनी पहचान बना रही थी
वर्ष 1992 में उनकी सरकार ने बालिकाओं की रक्षा के लिए 'क्रैडल बेबी स्कीम' शुरू की ताकि अनाथ और बेसहारा बच्चियों को खुशहाल जीवन मिल सके। इसी बर्ष राज्य में ऐसे पुलिस थाने खोले गए जहां केवल महिलाएं ही तैनात होती थीं और अब आम आदमे केलिये बेहद सस्ते खाने वाली अम्मा केंटीन जैसे लोक प्रिय कदमो से वह अपनीअलग पहचान बनाती गयी।
1996 में उनकी पार्टी चुनावों में हार गई और वे खुद भी चुनाव हार गईं। सरकार विरोधी जनभावना और उनके मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों ने उनकी लुटिया डुबो दी। पर 2001 में फिर एक बार मुख्यमंत्री बनने में सफल हुईं। भ्रष्टाचार के मामलों और कोर्ट से सजा होने के बावजूद वे अपनी पार्टी को चुनावों में जिताने में कामयाब रहीं।
उन्होंने गैर चुने हुए मुख्यमंत्री केतौर पर कुर्सी संभाल ली, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया और उन्हें अपनी कुर्सी अपने विश्वस्त मंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम को सौंपना पड़ी और उनके विरोधियो का कहना था कि वे खड़ाऊं राज चला रही है लेकिन उनकी पहचान का आलम यह था किपन्नीरसेल्वम कभी भी जयललिता की मुख्यमंत्रीकीकुर्सी पर नही बैठे और उनक्क फोटो रख कर ही प्रशासन चलाया .सही मायने मे जयललिता तमिलनाडु की सम्भवत ऐसी आख़िरी नेता हैं, जिनके साथ उनके समर्थक किसी भी हद तक जाकर खड़े रहते हैं.वी एन आई
Click here to Reply or Forward