GST: आर्थिक संघवाद की दिशा में पहला कदम

By Shobhna Jain | Posted on 26th Apr 2017 | देश
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केंद्र में बीजेपी की सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बहुप्रतीक्षित गुड्ज ऐंड सर्विसेज टैक्स यानी GST को संसद से पारित कराने में ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की है। केंद्र सरकार के इस सफल प्रयास की बदौलत अब अप्रत्यक्ष करों के मामले में देश में ‘एक राष्ट्र एक कर’ की अवधारणा को मूर्त रूप दिया जाना संभव हो सका है। अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में सुधार के लिहाज से अगर GST को देखा जाए तो यह सरकार द्वारा उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। रोजगार के अवसर, व्यापार में सुगमता और निवेश की दृष्टि से GST के फायदे भविष्य में स्पष्ट तौर पर दिखने लगेंगे। इससे होने वाले फायदों और बदलावों पर बात करने से पहले भारतीय कर प्रणाली के परंपरागत चिंतन व दर्शन पर विचार करना होगा।

पिछले दिनों मैंने राज्यसभा में अपने भाषण के दौरान भी जिक्र किया था और इस लेख के माध्यम से भी कुछ ऐसे तथ्यों को रखना चाहता हूं जो भारतीय अर्थचिंतन और कर प्रणाली के मूल को प्रदर्शित करते हैं। कर प्रणाली के संबंध में महाभारत के शांतिपर्व का भीष्म-युधिष्ठिर संवाद उल्लेखनीय है। शांतिपर्व के अध्याय 88 में भीष्म कहते हैं कि जैसे मधुमक्खी फूलों से धीरे-धीरे मधु इकट्ठा करती है, उसी प्रकार राजा को भी अपने राज्य से धीरे-धीरे कर संग्रहण करना चाहिए। अर्थात, कर वही अच्छा है जो राज्य की जनता को तकलीफ न दे और उसपर जरूरत से अधिक भार न पड़े।

GST पर बात करते समय हमें यह गौर करना होगा कि हम देश को एक राजनीतिक संघ के रूप में तो देखते आए हैं लेकिन आर्थिक संघ बनाने की दिशा में ठोस काम अबतक नहीं हुआ था। GST आने के बाद जब पूरे देश में समान अप्रत्यक्ष कर प्रणाली लागू हो रही है तो हम देश को आर्थिक यूनियन के तौर पर विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ा चुके हैं। साधारण मान्यता है कि जब अप्रत्यक्ष कर लगाया जाता है तो समान रूप से उसका बोझ देश के सभी अमीर और गरीब पर पड़ता है। ऐसे में करों के ऊपर कर के अधिभार से देश की गरीब और आम जनता ज्यादा प्रभावित होती है। लिहाजा इससे होने वाली दिक्कतें गरीब तबके को ही ज्यादा परेशान करती हैं।

हमें गौर करना होगा कि हमारे देश में क्षेत्रीय स्तर पर, भौगोलिक स्तर पर, आर्थिक स्तर पर और सामाजिक स्तर पर असमानता और विविधता की स्थिति है। ऐसे में अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में सुधार की जरूरत को महसूस किया जा रहा था। इस समस्या पर ध्यान देते हुए बीजेपी सरकार ने संघवाद के ढांचागत आधार को मजबूत करते हुए विधानमंडलों और संसद के माध्यम से एक प्रतिनिधि संस्था GST काउंसिल की रचना के माध्यम से इस कार्य को मूर्त रूप देने का काम किया है। संघीय ढांचे में लोकतांत्रिक प्रणाली से सहमति और न्यूनतम साझेदारी की नीति पर चलते हुए GST काउंसिल का निर्माण किया गया। इससे उन विषयों पर कर सुधार से जुड़े प्रगति कार्य को आगे बढ़ाया जाएगा जो अनिवार्य हों। इसी के आधार पर इस कांउसिल ने चार स्तरों पर अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को वर्गीकृत किया है।

देश में औद्योगिक वातावरण को सुदृढ़ बनाने के लिए चाहे कारोबार में सुगमता अर्थात ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का प्रश्न हो या आधारभूत संरचना का बेहतरी के साथ इस्तेमाल कैसे हो, इस विषय पर समाधान देने की दिशा में GST एक कारगर उपाय के रूप में साबित होगा। अप्रत्यक्ष कर प्रणाली समान नहीं होने के कारण अलग-अलग राज्यों में करों में असमानता की वजह से एक व्यापारिक असंतुलन की स्थिति भी पैदा हुई है जिसका समाधान GST से प्राप्त किया जा सकेगा।

उदाहरण के तौर पर देखें तो अगर कश्मीर से कोई मालवाहक ट्रक कन्याकुमारी तक जाता है तो रास्ते में उसे कर असामनता के अनेक बैरियर झेलने पड़ते हैं। लेकिन GST लागू होने के बाद हम व्यापारिक दृष्टि से पैदा होने वाली बाधाओं को काफी हद तक कम करते हुए एक निर्बाध व्यापारिक माहौल दे पाने में सफलता हासिल कर सकेंगे। देश में रोजगार के अवसरों में कमी की बात अकसर लोग करते हैं लेकिन ये कमी कैसे पूरी हो, जब इस विषय पर हम ध्यान देते हैं तो व्यापारिक सुगमता का प्रश्न साफ तौर पर कारक के रूप में नजर आता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर हम देश में निर्बाध और सुगम व्यापारिक माहौल दे पाने में कामयाब होते हैं तो रोजगार के अवसर स्वत: पैदा होने लगेंगे।

हालांकि इस दिशा में प्रयास किया जाता है तो कुछ लोग इसे गलत तथ्यों के साथ तोड़-मरोड़ कर पेश करने लगते हैं। लेकिन भारतीय अर्थचिंतन के मूल में जाने पर हमें ज्ञात होता है कि व्यापारिक सुगमता को लेकर भारत की दृष्टि बेहद सकारात्मक रही है। महाभारत के शांतिपर्व में इस बात का जिक्र है कि राज्य को व्यापारियों की रक्षा और उनके हितों का ख्याल पुत्र की भांति रखना चाहिए। अगर स्वतंत्र भारत के शुरूआती चार दशकों का इतिहास देखें तो हम पायेंगे कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार की समाजवादी एवं साम्यवादी आर्थिक नीतियों ने एक बंद अर्थव्यवस्था विकसित की थी, जहां परमिट और लाइसेंस की प्रणाली हमारी आर्थिक सुगमता में बाधक की तरह काम करती रही। वे नीतियों इस देश की मूल अर्थ चिंतन के अनुरूप नहीं थीं जिसका नतीजा यह हुआ कि सार्वजनिक वस्तुओं के वितरण एवं अवसरों की उपलब्धता आदि की स्थिति बेहद लचर होती गयी। जीडीपी विकास की दर भी बेहद औसत दर्जे की बनी रही। ऐसे में आर्थिक सुधारों की शुरूआत के बाद से अबतक अप्रत्यक्ष करों में सुधार से जुड़ा यह कार्य नहीं हो सका था जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पूरा किया है।

आज जब बीजेपी की सरकार ने GST के माध्यम से समान अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को विकसित किया है तो इससे न सिर्फ देश की आम और गरीब जनता लाभान्वित होगी बल्कि व्यापार क्षेत्र में भी तेजी आएगी। व्यापारिक दृष्टि से कारोबार में आसानी होने से जब रोजगार के अवसर पैदा होंगे तो इसका लाभ देश की गरीब जनता को ही सर्वाधिक मिलेगा। कर असमानता को गैर-वाजिब प्रॉफिट के लिए इस्तेमाल करने वालों पर लगाम लगेगी और देश के विविध क्षेत्रों के विकास को बल मिलेगा। कहने को तो GST महज एक कर सुधार की प्रक्रिया है मगर इसके दूरगामी और बहुआयामी परिणाम सकारात्मक होंगे। पारदर्शिता और स्वस्थ प्रतिस्पर्धायुक्त वातावरण देकर देश में विकास की धारा को तेज करने के लिए GST एक कारगर उपकरण के रूप में साबित होगा।

स्वामी विवेकानंद ने वर्ष 1893 में अपने एक शिष्य अलासिंगा को लिखे एक पत्र में सामाजिक सुधारों को मूर्त रूप देने और असमानता को समाप्त करने के लिए आर्थिक स्वतंत्रता को बेहद अनिवार्य तत्व बताया है। उस पत्र के अनुसार आर्थिक स्वतंत्रता और प्रतिस्पर्धा से सामाजिक उत्थान स्वत: होता है। आज के संदर्भ में अगर स्वामी विवेकानंद द्वारा कही गयी उन बातों को देखें तो GST के माध्यम से आर्थिक संपन्नता और स्वतंत्रता के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में वर्तमान सरकार ने ठोस कदम बढ़ाया है।


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