केंद्रीय विद्यालयों के छात्रो के सम्मुख जर्मन भाषा पढने का विकल्प फिर से खुला

By Shobhna Jain | Posted on 8th Oct 2015 | देश
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नई दिल्ली 09 अक्टुबर (अनुपमा जैन, वीएनआई) केंद्रीय विद्यालयों के छात्रो के सम्मुख अब एक बार फिर से जर्मन भाषा पढने का विकल्प होगा.पिछले साल जर्मन को त्रिभाषा फॉर्मूले के तहत पढ़ाए जाने पर विवाद के बाद इसे केंद्रीय विद्यालय के पाठ्यक्रम से हटा दिया गया था.भारत् तथा जर्मनी के बीच यह मुद्दा एक बड़ा कूटनीतिक विवाद बन गया था.जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल ने पिछले वर्ष जी 20 ब्रिस्बन शिखर बैठक मे प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ विशेष तौर पर यह मुद्दा उठाया था. अब जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल के हाल के भारत दौरे में जिन 18 सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर हुए हैं, उनमें जर्मन को अतिरिक्त विदेशी भाषा के तौर पर स्कूलों में पढ़ाना भी शामिल है. इस समझौते के तहत केन्द्रीय विद्यालय संगठन और जर्मनी का मेक्स्म्युलर संस्थान भारत मे जर्मनी भाषा कोपढायेगा जबकि जर्मनी मे भारतीय भाषाओ को बढावा दिया जायेगा केंद्रीय विद्यालयों में 2011 से जर्मन भाषा पढ़ाई जा रही थी लेकिन पिछले वर्ष जर्मन भाषा के स्थान पर संस्कृत को लाया गया. व्यापार जगत के सूत्रो के अनुसार अब मोदी-मर्केल के बीच इस नई सहमति से भारतीय युवाओं के लिए जर्मन भाषा सीखने के मौक़े बढ़ेंगे और वे जर्मनी में रोज़गार के अधिक अवसर मिल सकेंगे, जबकि जर्मनी मे भारतीय भाषओं के कद्रदानो को भारतीय भाषाओ को जानने का मौका मिलेगा सूत्रो के अनुसार भारतीय इंजीनियरिंग और आईटी कंपनियों के लिए जर्मनी एक बड़ा बाज़ार है. लेकिन भाषा उनकी एक बड़ी समस्या है.क़रीब 1500 जर्मन कंपनियां भारत में मौजूद हैं जिन्हें हिंदी और जर्मन दोनों भाषा बोलने वाले लोग अक्सर नहीं मिलते. गौरतलब है कि दोनों देशों के बीच 17 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार होता है. जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत दुनिया की सबसे बड़ी उभरती हुई अर्थव्यस्था मे से एक है. जर्मनी यूरोप में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. विशेषज्ञ मानते हैं कि इस कदम से व्यापारिक रिश्ते इससे कई गुना बढ़ सकते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने इसी सप्ताह दोनो देशो के बीच प्रगाढ राजनैतिक रिश्तो कीचर्चा करते हुए कहा था कि भारत के आर्थिक विकास में जर्मनी की एक अहम भूमिका है. सूत्रो के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मेक इन इंडिया' के सपने को पूरा करने के लिए जर्मनी से कई समझौते किए गए हैं, इस पर अमल हुआ तो जर्मनी अगले कुछ सालों में कई अरब डॉलर भारत में निवेश कर सकता है. इन दिनों वैश्विक कूटनीति में भारत और जर्मनी का रूख और हितो मे भी समानता है . दोनों देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग कर रहे हैं और इसमें सदस्यता चाहते हैं. जी-4 के मंच पर दोनों इस मुद्दे पर तालमेल बनाए हुए हैं. चांसलर मर्केल का यह भारत दौरा अनेक मायनो मे दोनो देशोके बीच बढती प्रगाढता का प्रतीक है, इसके अलावा जिन अन्य 17 समझौतों पर भारत और जर्मनी ने हस्ताक्षर किये हैं, वे पारस्परिक संबंधों में अहम भूमिका निभायेंगे. वीएनआई

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