बीना बांरा, मध्यप्रदेश,20 जुलाई(अनुपमा जैन,वीएनआई) तपस्वी दर्शनिक संत आचार्य विद्यासागर ने बढती समाजिक असहिणुता व कटुता पर चिंता जताते हुए कहा है आज के दौर मे विशेष कर महावीर के 'अनेकांत' का सिद्धांत और अधिक् प्रासंगिक है इस के पालन से हम न केवल विविधता मे एकता की भारतीय संस्कृति को सही मायने मे आगे बढा सकेंगे,अपनी जीवन शैली को सुगम बना सकेंगे बल्कि यह विश्व शांति का गुरू मंत्र है उन्होने कहा ' अनेकांत का अर्थ ही है- सह-अस्तित्व, सहिष्णुता, अनुग्रह की स्थिति,यानि अनेकांत प्रत्येक वस्तु को भिन्न्-भिन्न दृष्टिकोण से देखना और स्वीकार करना है।उन्होने कहा' अनेकांत का सिद्धान्त बताता है कि जब शरीर की छह अरब कोषिकाएं होते हुए पूरे सिस्टम को बनाए रखती हैं तो फिर विश्व की सात अरब जनता एक साथ क्यों नहीं रह सकती।'
दिंगबर जैन् मुनि आचार्य विद्यासागर आज मुनि साधना और घोर तपस्या रत अपने 47वें दीक्षा दिवस पर मुनिजनो, आर्यिकाओ, साधु संतो और बड़ी तादाद मे श्राधलुओ को संबोधित कर रहे थे,इस अवसर पर आज देश विदेश मे अनेक समा्रोह हो रहे है जिसमे बड़ी तादाद मे श्रद्धालु धर्म लाभ ले रहे है .आचार्य् श्री ने केवल २२ वर्ष की आयु में अपने गुरू आचार्य ज्ञानसागर से तपस्वी जीवन की दीक्षा ग्रहण की थी और एक विरले दृष्टांत स्वरूप उनके गुरू ने उनके आचार्य-पद संभालते ही उन्ही से सल्लेखना ग्रहण की .
समारोह मे आज आचार्य् श्री ने कहा दरअसल अनेकांत का सिद्धांत अपना कर न केवल अपनी मानसिक शांति व उदार भावना से अपनी जीवन शैली को आसान बना सकते है, सामाजिक सहिणुता के लिये ही जरूरी नही है बल्कि यह साक्षात गुरू है जिसके पालन से हर पल हमारा जीवन सुगम् बनता है और ऐसा समाज ,राष्ट्र सही मायने मे मिल् कर साथ आगे बढता है. यह विश्व शांति का यह एक मंत्र है इस सिद्धांत मे विश्वास करने वाला किसी प्रसंग मे एक ही विचार को स्वीकार किये जाने मे विश्वास नही कर सकते है, और सामंजस्य स्थापित करना उनका लक्ष्य बन जाता है'
उन्होने कहा कि अनेकांत का सिद्धांत जिन लोगो की समझ मे आ जाता है सहज रुप से उनका चिंतन संतुलित बन जाता है.'उल्लेखनीय है कि आचारय श्री के संघ मे अति उच्च शिक्षित विद्वान, प्रोफेशनल, इंजीनियर आदि संसार त्याग साधु जीवन स्वीकार कर घोर साधना व शास्त्र अध्य्यन मे रत है. आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। आपने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। विभिन्न शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है। उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने कालजयी महाकाव्य मूक माटी की रचना की है। विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।
जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ। आपके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। आपकी माता श्रीमती थी जो बाद में आर्यिका समयामती बनी। वी एन आई