नई दिल्ली (शोभना जैन वीएनआई) 28 जून केन्या में सरकार के खिलाफ विवास्पद वित्त विधेयक को ले कर पिछले एक सप्ताह से चल रहे अब तक के सबसे भीषण, उग्र प्रदशनों और हिंसा के लगातर और उग्र रूप लेते देख राष्ट्रपति विलियम रुटो ने आखिर कल रात देश में करों में बढोतरी ्संबंधी विवादास्पद वित्त विधेयक पर हस्ताक्षर ना कर के उसे ठंडें बस्तें में डालनें की घो्षणा कर ्दी और, कहा कि वे देश के युवाओं और प्रदर्शनकारियों से इस समस्या का हल निकालने के लिये संवाद का रास्ता अपनायेंगे, लेकिन एक तरफ आम जनता की लगातार बढतीआर्थिक बदहाली, उस के और बेकाबू होने की आशंका तो दूसरी तरफ घाटा कम करने और कर्ज उतारने के लिये इस विधेयक के जरिये वित्तीय संसाधन जुटाने का दबाव, इन दोनों धुरों के बीच आंदोलन क्या रूप लेगा इसे ले कर स्थति फिलहाल अनिश्चित ही नजर आती हैं, सवाल हैं कि विधेयक की वापसी ही पूर्ण समाधान नही हैं, ईस के साथ सरकर को जनता को भरोसे में ले कर स्थतियों के अनुरूप कदम उठाने से ही रास्ता बनेगा. सरकार का कहना हैं कि इस कर बढोतरी से उसे कर्ज उतारने में मदद मिलती. गौरतलब हैं कि केन्या को चीन अंतर राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बेंक सहित अनेक देशों/ संस्थानों ने भारी तादाद में कर्ज दिया हैं और चीन का कर्ज उतारने का भारी दबाव तो हैं .आई एम एफ सरकार से लगातार कह रहा हैं कि वह घाटा कम करे. वैसे संसद में यह विधेयक 195-106 के मुकाबलें पारित हो चुका हैं, अब राष्ट्रपति ने इसे अगर ठंडें बस्ते में दालने की घोषणा कर दी है तो इस संवैधानिक पेंच से कैसे निबटा जायें. इस वित्त विधेयक के जरिये सरकार 2.7अरब डॉ लर के संसाधन जु्टाना चाहती हैं .
भारत ने वहा की अराजक स्थति को देखते हुयें अपने नाग रिको को पूरा एहतियात बरतने की एडवाईजरी जारी की हैं. केन्या में लगभग 20,000 भारतीय हैं. दो दिन पूर ही प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन में भी घुसने की कौशिश की. हिंसा , आगजनी में अब तक 23 लोग मारे जा चुके है और सेंकड़ो घायल हो चुके हैं, ऐसे आरोप ्हैं कि सुरक्षा बलों के बल प्रयोग से भी अनेक नागरिक हताहत हुये हैं. मीडिया रिपोर्टो के अनुसार देश के 47कॉउटी में से 35 मे प्रदर्शन हो रहे है यहा तक कि रूटों के ग़ृह नगर मे भी प्रदर्शन हो रहे है
. स्थति ऐसी बनती जा रही हैं कि प्रदर्शनकारी सरकार की नीतियों से इस कदर नाराज हैं कि वह रूटों सहित सरकार के अनेक नेताओं और वरिष्ठ अधिकारियों को हटाने पर जोर डाल रहे हैं जिस से रूटो की दो वर्ष पुरानी सरकार का टीके रहना ही खतरे में पड़ता जा रहा. अफ्रीकी मामलों के एक जानकार के अनुसार रूटों को जनता के चिंतायें समझनी होगी और देश की आर्थिक बदहाली पर लगाम लगाने के लिये जनता को भरोसे मे ले कर जल्द से जल्द कदम उठाने होंगे.
विवादास्पद विधेयक सबसे पहले मई 2024 में संसद में पेश किया गया था. इस मे ब्रेड पर 16 फीसदी टैक्स और खाने के तेल पर 25 फीसदी ड्यूटी लगाने का प्रस्ताव था. अनाज, चीनी और घर के नियमित खान पान तो मंहग्ग होता ही और ईलाज वगैरह जैसे जरूरी खर्च भी बढते इसके अलावा, पैसे निकालने पर टैक्स बढ़ाने और गाड़ी की क़ीमत पर ढाई फ़ीसदी का सालाना ओनरशिप टैक्स लगाने की बात भी थी. लोगों के विरोध के बाद सरकार ने कुछ प्रावधानों में फेरबदल किए. मगर अधिकतर विवास्पद प्रावधन ज्यों कि त्यों रहे जिस से लोग आर्थिक बदहाली और बढने को ले कर आशंकित , फिक्र्मंद हो रहे थे.
सरकार का तर्क था कि उसको अंतरराष्ट्रीय बैंकों का क़र्ज़ चुकाना है. सरकार की कमाई से ज़्यादा खर्च है. जिसके चलते बजट घाटे में चल रहा है. घाटा तभी कम होगा जब कमाई बढ़े. इसको बढ़ाने के लिए सरकार नए टैक्स लगाने की तैयारी कर रही है. .
.वैसे एक जानकार के अनुसार रुटो ने 2022 का चुनाव ग़रीबी के मुद्दे पर जीता था. उनका जीवन भी ग़रीबी में बीता है. वो बचपन में नंगे पैर स्कूल जाते थे.15 बरस की उम्र में पहली बार जूते पहने थे. इन्हीं कहानियों से रुटो पॉपुलर हुए. लोगों को लगा था कि वे ग़रीबी दूर करेंगे. मगर राष्ट्रपति बनने के बाद उनका चरित्र बदल गया.
बहरहाल संसद में बिल पास हो चुका है.राष्ट्रपति उसे अब ठंडें बस्तें में डालने का एलान कर चुके हैं. राष्ट्रपति या तो 14 दिनों के अंदर साइन करेंगे या बिल में संशोधन के लिए संसद को वापस भेज सकते हैं. रुटो ने सात दिनों तक उग्र और हिंसक प्रदर्शनों के बाद आखिर कार जनता से बात करने की पेशकश तो की है. मगर विधेयक में संशोधन की गुंज़ाइश कम ही है. तो सवाल फिर वही, क्या यह स्थति रातों रात इतनी भयावह हो गई बहरहाल ऐसे संवेदनशील मामलो में शासको को नीतियॉ बनाते समय दूरगामी दृष्टि रखते हुयें जनता को समय रहते भरोसें मे लेना चाहिये