भारत स्थित जर्मनी के राजदूत वाल्टर जे लिंडनर ने पिछलें दिनों, गर्मियों के भारतीयों के पसंदीदा पेय "आम के पन्नें" की चुस्कियॉ लेते हुयें कहा " भारत के डीएनए की तलाश का उन का कार्य सिर्फ कुछ दिनों के लियें नहीं था बल्कि यह तलाश पूरी जिंदगी भर का काम हैं"एक राजनयिक की एक परंपरागत छवि से हट कर लंबें बालों को पोनी टेल में समेटें, कोट के उपर गलें में गमझा नुमा कपड़ा डालें ये राजदूत अक्सर भारत के अलग अलग ईलाकों, चाहें वो दिल्ली की फूल मंडी की संकरी गलियॉ हो, ऋषिकेश का आश्रम हो, वाराणसी का गंगा घाट हो या, दक्षिण भारत के अद्भुत स्थापत्य वालें मंदिर ्की बारीकियों को देख तें परखतें या फिर भारत के पूर्वोत्तर के किसी शांत कोनें में प्र्कृति से एकाकार हो्तें रहते हैं यानि ये हैं जर्मन के हिंदी प्रेमी राजदूत,जिन्हों ने तीन वर्ष पूर्व राष्ट्रपति कोविंद को " महामहिम राष्ट्रपति जी " संबोधित करते हुयें हिंदी मे अपने पद के परिचय पत्र पेश किये, कुल मिला कर अलग सी पहचान वालें राजदूत . उन्हों ने पिछलें दिनों भारतीय महिला पत्रकारों की एसोशियेशन "इंडियन वुमेन प्रेस कोर" आईडब्ल्युपीसी के सदस्याओं से विभिन्न मुद्दों पर बातचीत में ्डिप्लोमेसी की जटिलताओं, रूस युक्रेन युद्ध के उलझे समीकरणों के बीच जर्मन और योरोपीय संघ द्वारा भारत के रूख को समझना और भारत जर्मन रिश्ते, जैसें विभिन्न मुद्दों के साथ ही अपनी 'भारत दर्शन' के पहलुओं को साझा किया. युक्रेन युद्ध पर उन्होंने फिर कहा कि जर्मनी, यूक्रेन संघर्ष पर भारत के रूख का सम्मान करता है और उसने कभी भी इस मसले पर भारत की आलोचना करने की कोशिश नहीं की. उन्होंने कहा कि हर देश को अपने हितों को दृष्टिगत रखतें अपना रूख तय करने का अधिकार है, साथ ही उन्हों ने कहा " युक्रेन युद्ध को ले कर भारत की भूमिका को ले कर शुरू में हमें लगता था कि भारत को संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों की निंदा करनी चाहियें लेकिन भारत के इस रूख से हमारे और भारत के रिश्तों में कोई फर्क नहीं आया, ्बल्कि पुतिन के रूख ने दुनिया कि एक बार फिर बताया हैं कि विश्व को लोकतंत्र जैसे बुनिय़ादी मूल्यों की खातिर नयें सहयोगी चाहियें.
गौरतलब हैं कि आगामी 26-27जून को जर्मनी में , अमरीका, इंगलेंड, जर्मनी, फ्रांस सहित विकसित, राष्ट्रों का अहम जी 7 शिखर सम्मेलन होने जा रहा हैं, जिस में भारत को भी निमंत्रित किया गया हैं. प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी इस सम्मेलन में बतौर विशेष अतिथि हिस्सा लेंगें. रूस-यू्क्रेन युद्ध के तीन माह से अधिक समय से जारी रहनें के मद्दें नजर इस शिखर सम्मेलन की खासी अहमियत हैं,खास तौर पर इस लियें कि इस संघर्ष में जर्मन, पिछलें काफी समय से योरोपीय यूनियन की तरफ से रूस का खुल कर कड़ी अलोचना करनेऔर उस के खिलाफ इन देशों के साथ मिल कर प्रतिबंध और कड़ें करनें को ले कर एक मजबूत आवाज बन कर सामनें ाया हैं. संघ के सभी 27सदस्य देशों ने रूस की आर्थ व्यवस्था को गहरी चोट पहुंचाने वालें कदम बतौर इस वर्ष के अंत तक रूस से लेने वाले तेल मे 90प्रतिशत कटौती की घोषणा की हैं. बहरहाल एक तरफ जहा समझा जा रहा हैं कि अगर रूस का तब तक ्युक्रेन के खिलाफ ऐसी ही आक्रामक रूख बना रहा तो उस के खिलाफ योरोपीय संघ की तरफ से आर्थिक प्रतिबंध और कड़ें कियें जा सकतें है. , ऐसे में राजदूत का हाल ही में दिया गया यह बयान भी अहम हैं " प्रतिबंध कभी भी इस तरह के मसलों का हल नही हो सकता हैं , लेकिन पुतिन जैसी हस्तियों को रोकने के लियें यह जरूरी हैं, ्निश्चय ही यह एक खतरनाक सिद्धांत स्थति हैं कि कोई भी देश अपने पड़ोसी की संप्रभुता पर हमला करें गौरतलब हैं कि भारत तटस्थ रवैया अपनातें हुयें अविलंब युद्ध रोकनें और बातचीत करनें पर जोर देता रहा हैं.
राजदूत का मानना हैं कि इस शिखर बैठक में इस युद्ध को ले कर दुनिया भर में अर्थ व्यवस्था पर पड़नें वालें दुष्प्रभाव पर तो चर्चा होगी लेकिन भारत द्वारा रूस से तेल खरीद जारी रखनें और हाल ही में भारत सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगानें जैसें मुद्दों पर चर्चा नही होगी. भारत जर्मन रिश्तों की चर्चा करतें हुयें उन्होंने कहा कि जर्मन के नयें चांसलर ओलोफ शोल्ज़ का सोच भी यही हैं कि दोनों देश मिल कर कैसे आगें बढ सकतें हैं. भारत जर्मन रिश्तें दोनों के इसी साझें सोच से आगें बढ रहे हैं. भारत और जर्मन का द्विपक्षीय मुद्दों पर आपसी बढती समझदारी, क्षेत्रीय अंतर राष्ट्रीय मुद्दों पर कमोबेश आपसी सहमति के साथ ही एक दूसरें के दृष्टिकोण को सम्मान देने और गहरी होती रणनीतिक साझीदारे रिश्तों में सकारात्मकता का स्पष्ट संकेत हैं.
बहरहाल एक बार फिर राजदूत लिंडनर की भारत यात्रा की और बढें तो,लिंडनर ने २० बरस की उम्र मे पीठ पर बेग लादें एक हिप्पी भारत दर्शन शुरू हुआ जो अब अपने देश के विदेश सचिव, भारत सहित विभिन्न देशों मे राजदूत बने रहने के बाद एक बार यायावर की भूमिका की पुरानी भूमिक की तरफ लौट रहे हैं. भारत यात्रा के अपने अनुभव सझा करतें हुयें वे कहते हैं "भारत विभिन्नताओं वाला देश हैं, बिहार, अंडमान, उड़ीसा सब का अलग खान पान नजरिया, संगीत, सोच सब अलग अलग लेकिन फिर भी सब साथ साथ. वे बताते हैं कि वे एक बार फिर सिर्फ यायावर की भूमिका के लियें तैयार हो रहे हैं. अगलें माह वे सेवा निवृत हो रहे हैं. हैं.अपना सोच बताते हैं " राज नयिकों की भूमिका विशेष तौर पर सोशल मीडिया के जमानें में बदल रही हैं. राजनयिको को आम आदमी के नजदीक जाना होगा, उन्हें समझना होगा. वे मानते हैं चालिस ्वर्ष पूर्व जब वे भारत आयें थे तो भारत के डी एन ए की उन की जो तलाश शुरू हुई थी, वह सेवा निवृति के रूप में भी जारी रहेगी . राजदूत बताते हैं" पहलें वो एक युवा हिप्प्पी के रूप में भारत आये थे, इस भूमि पर उन की यात्रा का अगला पड़ाव राजनयिक के रूप में हुआ अब भी उन की तलाश जारी रहेगी. अलबत्ता अब जब वे भारत आयेंगे" राजदूत महोदय" वाला विशेषणन की उन के साथ नहीं होगा, लेकिन उन की यह तलाश,यात्रा, बदस्तूर जारी रहेगी. समाप्त