रूहानी शांति और माहौल मे गूंजता "ओ दूर के मुसाफिर हमको भी साथ ले ले, हम रह गये अकेले"

By Shobhna Jain | Posted on 29th Nov 2015 | मनोरंजन
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नयी दिल्ली,29 नवंबर (सुनील कुमार/वीएनआई) ऑडीटोरियम "ओ दूर के मुसाफिर हमको भी साथ लेले , हम रह गए अकेले "मोहम्मद रफी के सदाबहार गाने से गूंज रहा है, हॉल मे अजीब सी चुप्पी पसरी है,एक रूहानी सी शांति,लग रहा था सभी संगीत प्रेमी श्रोता गाने के गायक और 'संगीत की आत्मा' मोहम्मद रफी से यह इल्तजा कर रहे है. राजधानी मे हाल ही मे एक नयी तरह की संगीत संध्या संगीत उपासको की तरफ से सुनने को मिली, जहा संगीत ने सारी स्मृतियॉ मानो सजीव कर दी हो. नयी तरह की संगीत संध्या इसलिये कि यहा वीणावादिनी सरस्वती और मॉ लक्षमी एक ही शरीर् मे प्रवेश कर गई.इन गानो को पेश किया था पेशे और व्यवसाय से बिल्डर ,डेवलपर के साथ साथ संगीत के उपासक ,मोहम्मद रफ़ी के 'पुजारी ',गायक सुरेश रहेजा ने, जिम्होने नौशाद और रफ़ी साहिब की जोड़ी वाले नग्मों को पेश किया और एक रूहानी समॉ बॉध दिया.ऑडिटोरियम की बैकग्राउंड में हर गाने के साथ गाने से जुडी स्लाइड एक अलग माहौल ,पेश कर रही थीं नौशाद ,रफ़ी की जोड़ी के सारे रंग हॉल में बिखर रहे थे .सतरंगी गानो की लड़ी मे कभी उदास रंग थे ,कभी चहकते रंग और कभी खिलखिलाते रंगो वाले गीत . सुरेश के गानो मे एक उपासक की साधना देखने को मिली. गाना चाहे 'ओ दूर के मुसाफिर','ऐ दुनिया के रखवाले' रहा हो या 'आज पुरानी राहों सेकोई मुझे आवाज न दे', या फिर'मुझे दुनिया वालों शराबी न समझो' की मस्ती, या फिर 'याद में तेरी जाग जाग कर' की तड़प, मानो दोनो अद्वितीय संगीतज्ञो की जोड़ी ्के सारे भाव फिर से सजीव कर दिये हो सुरेश जी का स्टेज पर साथ दिया युवा गायिका झनक ने,स्टेज पर सुरेशजी व् झनक गा रहे थे ,हॉल में बैठा हर दर्शक अपने आपको गाने से रोक नहीं पा रहा था ,साथ ही दर्शकों के कदम सुर ताल के साथ थिरक रहे थे शायद सही ही कहा जाता है अच्छे संगीत की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती. ·सुरेश रहेजा आज संगीत की दुनिया का एक जाना पहचाना नाम है ,सच है लोगों लिए वे कंक्रीट के मकान बनाते हैं पर खुद मौसिकी की इमारत में सुकून से रहते हैं दिल्ली ,मुंबई के संगीत प्रेमी अक्सर उनके कार्यक्रमो में उनके गीतों का लुत्फ़ उठाते रहते हैं । सुरेश जी ,आशा भोंसले ,अलका याग्निक ,श्रेया घोषाल व् अन्य जानी मानी गायिकाओं के साथ फ़िल्मी गाने गा चुके हैं.संगीत कार्यक्रम खत्म हो गया है मै वापस लौट रहा हूं. रफी के इंतकाल पर नौशाद की कही कुछ लाईने याद आ रही है कहता है कोई दिल गया, दिलबर चला गया,साहिल पुकारता है,समंदर चला गया। लेकिन जो बात सच है, वो कहता नहीं कोई,दुनिया से मौसकी का,पयम्बर चला गया॥ पर सुरेश रहेजा जैसे संगीत उपासक रफ़ी साहिब की यादों को हमेशा ज़िंदा रखेंगे. सोच रहा हूं कोई भी चीज़ आपको हिट करती है आपको तकलीफ देती है ,पर संगीत जब आपको हिट करता है तो आपको आनंद देता है. वीएनआई

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