विक्रमादित्य ने कहा अभिव्यक्ति की आजादी को रोकना बेतुका, डरावना है

By Shobhna Jain | Posted on 5th Aug 2017 | मनोरंजन
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नई दिल्ली, 5 अगस्त (वीएनआई/आईएएनएस)| बॉलीवुड फिल्मकार विक्रमादित्य मोटवानी का कहना है कि भारतीय फिल्मकार बेतुके और डरावने समय में रह रहे हैं और उन्हें कहा जा रहा है कि वे कैसे नहीं जानते हैं कि फिल्म बनाने से संबंधित वास्तव में क्या नियम हैं? वह विवादित फिल्म 'उड़ता पंजाब' का निर्माण करने वाली 'फैंटम फिल्म्स' बैनर के संस्थापकों में से एक हैं। 

मोटवानी ने बताया, मैं विचारों को जाहिर करने से रोकने को लेकर चिंतित हूं..यह उस बारे में ज्यादा नहीं है कि आप क्या बना सकते हैं और क्या नहीं बना सकते हैं, क्योंकि आप नहीं जानते कि क्या नियम-कायदे हैं। मैं पर्दे पर धूम्रपान और शराब के सेवन जैसे दृश्यों को दिखाने से संबंधित नियम जानता हूं, लेकिन बाकी समय, मुझे नहीं पता कि क्या नियम है? उन्होंने कहा, आप सेक्सुअल कहानियां नहीं ले सकते, आप राजनीतिक कहानियां नहीं बता सकते..यह बहुत अस्पष्ट हैं। यह एक अस्पष्ट बॉक्स है और जो डरावना है। यह सेंसरशिप को एक डरावने स्तर पर स्थापित करता है। यह डर की बात करता है।

हिंदी फिल्म उद्योग की कहानियों का केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के साथ टकराव अक्सर होता रहता है, यह आम बात हो गई है। चाहे वह 'उड़ता पंजाब', 'हरामखोर' हो या हालिया फिल्में 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का', 'इंदु सरकार' और अब 'बाबूमोशाय बंदूकबाज' हो। उन्होंने कहा कि कभी वे शब्दों को लेकर, तो कभी राजनीति या स्थान को मुद्दा बनाते हैं या कभी वे अधिक महिला केंद्रित फिल्म होने और अश्लील भाषा को लेकर मुद्दा बना देते हैं और फिल्म पास करने से मना कर देते हैं। उन्होंने कहा कि 'उड़ता पंजाब' के रिलीज होने के बाद कोई विवाद नहीं हुआ, लोगों ने शांति के साथ फिल्म देखी। 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का' के बिना कांट-छांट आने पर भी सबकुछ अच्छा रहा। कोई भी खड़ा होकर यह नहीं कर रहा, "ये क्या वाहियात पिक्चर है।"

फिल्मकार ने कहा कि इसलिए ये सभी चीजें उन्हें गुस्सा दिलाती हैं। फिल्मकार का कहना है कि वर्तमान परिदृश्य एक दिन ऐसा समय लाएगा, जब फिल्मकार शुरू से ही सेल्फ सेंसर्ड (खुद से सेंसर करना) कहानियां बनाना शुरू कर देंगे।  मोटवानी के मुताबिक, फिल्म निर्माण का मुख्य मकसद अभिव्यक्ति होनी चाहिए और दुनिया के लिए इसे एक विंडो होना चाहिए।  उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्पष्ट स्वतंत्रता नहीं हैं, जो यह कहने की अनुमति दे कि हम जो चाहते हैं, वह एक संवैधानिक समस्या है..न कि यह फिल्म निर्माण की समस्या ज्यादा है।  मोटवानी ने कहा कि ये पुराने ब्रिटिश कानून है और इन्हें फिल्म बिरादरी ने रखा है क्योंकि ये सरकार के लिए सुविधाजनक है।  भारत में फिल्मों का सेंसरशिप सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1952 द्वारा कार्यान्वित है। जाने-माने फिल्मकार श्याम बेनेगल की अगुवाई वाली पैनल द्वारा बनाई गई सेंशरशिप प्रक्रिया को सुधारने की सिफारिशें पिछले साल सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को सौंपी गई, लेकिन उसके कार्यान्वयन का इंतजार जारी है।  मोटवानी ने जियो मामी द्वारा पिछले हफ्ते आयोजित 'वर्ड टू स्क्रीन, पब्लिशर्स बूटकैंप' के दौरान आईएएनएस से बातें की। 


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