नयी दिल्ली 16-11-2018,सुनील कुमार ,वी एन आई
हिंदी फिल्मों में जब कभी कव्वाली का जिक्र होता है संगीतकार रोशन का नाम सबसे पहले लिया जाता है। हालांकि रोशन ने फिल्मों में हर तरह के गीतों को संगीतबद्ध किया है लेकिन कव्वालियों को संगीतबद्ध करने में उन्हें महारत हासिल थी।
वर्ष 1960 में प्रदर्शित सुपरहिट फिल्म 'बरसात की रात' में यूं तो सभी गीत लोकप्रिय हुए लेकिन रोशन के संगीत निर्देशन में मन्ना डे और आशा भोंसले की आवाज में साहिर लुधियानवी रचित कव्वाली ..ना तो कारंवा की तलाश ..और ..मोहम्मद रफी की आवाज में ..ये इश्क इश्क है ..आज भी श्रोताओं के दिलों में अपनी अमिट छाप छोड़े हुए है।
वर्ष 1963 में प्रदर्शित फिल्म ..दिल ही तो है ..में आशा भोंसले और मन्ना डे की युगल आवाज में रोशन की संगीतबद्ध कव्वाली.. निगाहें मिलाने को जी चाहता है.. आज जब कभी भी फिजाओं में गूंजता है तब उसे सुनकर श्रोता अभिभूत हो जाते हैं।
तत्कालीन पश्चिमी पंजाब के गुजरावालां शहर (अब पाकिस्तान में) एक ठेकेदार के घर में 14 जुलाई 1917 को जन्मे रोशन का ध्यान बचपन से ही अपने पिता के पेशे की और न होकर संगीत की ओर था। उन्होंने संगीत सीखा ,मुंबई पहुंचे ,खूब संघर्ष किया ,संघर्ष का दौर देर तक चला
रोशन के संगीतबद्ध गीतों को सबसे ज्यादा मुकेश ने अपनी आवाज दी थी। गीतकार साहिर लुधियानवी के साथ रोशन की जोड़ी खूब जमी। इन दोनों की जोड़ी के गीत-संगीत ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। इन गीतों में.. ना तो कारंवा की तलाश है.., जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात.., लागा चुनरी में दाग.., जो बात तुझमें है.., जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा.., दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें.. जैसे मधुर नगमे शामिल हैं।
उन्होंने गीतकार आनंद बक्शी ,इंदीवर को पहला ब्रेक दिया !उनकी धुनों में लोक संगीत का मिश्रण झलकता था !
रोशन को वर्ष 1963 मे प्रदर्शित फिल्म ताजमहल के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। हिन्दी सिने जगत को अपने बेमिसाल संगीत से सराबोर करने वाले यह महान संगीतकार रोशन 16 नवंबर 1967 को सदा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गए।
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