नई दिल्ली, 28 अप्रैल, (शोभना जैन/वीएनआई) अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप द्वारा इस सप्ताह ईरान से तेल ख़रीदने पर भारत समेत आठ देशों को दी गई छूट आगे न बढ़ाने के "अल्टीमेटम" से भारत एक पेचीदा संकट में घिर गया हैं. भारत ने हालांकि टृंप के अल्टीमेटम के बाद संकेत दिया कि वह ईरान से तेल नही खरीदेगा लेकिन फिलहाल उस ने साफ तौर पर इस आशय की साफ घोषणा भी नही की है, अलबत्ता कहा हैं कि धीरे धीरे वह ईरान से तेल खरीदना बिल्कुल बंद "जीरो" कर देगा हालांकि साथ ही उस ने यह भी कहा कि आगामी दो मई को इस छूट की समाप्ति के बाद की स्थति से निबटने के लिये वह समुचित तौर पर तैयार हैं. गौरतलब है कि भारत अपनी जरूरत का ८० प्रतिशत तेल आयात करता हैं, जिस में १० फीसदी तेल ईरान से आयात करता है.
ईरान से सबसे ज़्यादा तेल ख़रीदने वालों में चीन के बाद भारत दूसरे नंबर पर है,ऐसे में जब कि भारत के तेल के एक अन्य प्रमुख आयातक वेनेजुएला पर भी अमरीकी आर्थिक प्रतिबंधों के चलते भारत का वेनेजुएला से तेल का आयात भी (लगभग ६.७ प्रतिशत) कम होता जा रहा हैं और अमरीका यहा भी ईरान की तरह ही विश्व समुदाय से वेनेजुअला से तेल नही खरीदने का दबाव बनाने या यूं कहे कि धमकी दे रहा है. स्थति चिंताजनक हैं. इस नयी स्थति मे एक और अहम बात गौर करने लायक हैं कि पिछले तीन वर्षों में ईरान से भारत के लिये तेल आयात 36.7% ्बढा हैं, जो कि सउदी के बाद भारत का खनिज तेल का सब से बड़ा आयातक हैं. ऐसे में भारत इस स्थति से कैसे उबरेगा, उस के पास क्या विकल्प हैं ? खास तौर पर जब कि अमरीका अपने घरेलू कारणों से भारत सहित इन तमाम देशों को ईरान से किनारा करने का अल्टीमेटम दे रहा हैं,जब कि वह बखूबी जानता हैं कि अमरीका की ही तरह ईरान भी भारत का मित्र देश हैं,उन के साथ उस के सामरिक रिश्ते हैं और हकीकत यही हैं कि दोनों के साथ खास रिश्तों के अलग- अलग पहलू है.
वास्तव मे ईरान के परमाणु कार्यक्रम से क्षुब्ध अमरीका ने नंवबर २०१८ में 180 दिनों की ये छूट भारत, चीन, इटली, ग्रीस, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान और तुर्की को दी थी, अब इसकी समय सीमा 2 मई को ख़त्म हो रही है. तुर्की और चीन जैसे देशों ने जहा अमरीका के इस "इकतरफा" फैसले का खुल कर विरोध किया है. वही भारत ने सतर्कता बरतते हुए भविष्य में इस पेचीदा स्थति से निकलने के लिये फिलहाल बीच का रास्ता निकालने की राह बचा रखी हैं ताकि समस्या का निराकरण ऐसे हो कि उस के हित भी बने रहे, उर्जा सुरक्षा की स्थति भी ठीक बनी रहे.एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सरकार अपने ऊर्जा और आर्थिक सुरक्षा से जुड़े हितों की रक्षा के लिए अमरीका समेत अपने सहयोगी देशों के साथ काम करती रहेगी.
दरअसल ईरान के परमाणु कार्यक्रम से क्षुब्ध अमरीका ने नंवबर २०१८ में 180 दिनों की ये छूट भारत, चीन, इटली, ग्रीस, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान और तुर्की को दी थी लेकिन इसकी समय सीमा 2 मई को ख़त्म हो रही है.दरअसल भारत के लिये यह पे्चीदा, चिंताजनक स्थति है.इस से जुड़े न/न केवल आर्थिक पहलू है, सामरिक और भू-राजनैतिक पहलू हैं. ईरान के जरिये अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिये एक रास्ता बनता हैं.ईरान में बन रहे चाबहार बंदरगाह परियोजना से जहा भारत ने भारी निवेश किया हैं, उस से मध्य एशिया के लिये वैकलपिक मार्ग बनेगा.यहा यहा जानना भी अहम हैं कि ट्रंप प्रशासन पाक के आतंकी मसूद अजहर के मामले में भारत के समर्थन कर रहे हैं और पाकिस्तान पर भी आतंकवाद से प्रभावी ढंग से निबटने के लिए उस पर दबाव डाल रहे हैं, साथ ही इस छूट को वापस वे भारत द्वारा संचालित ईरान के चाहबहार-प्रोजेक्ट में भी कोई अड़ंगा नहीं लगा रहे.
दरअसल अमरीका के इस कदम का भारत की अर्थ व्यवस्था पर असर पड़ना स्वाभाविक हैं,इस से तेल की कीमतें बढेंगी, मंहगाई बढेगी, सवाल हैं भारत इस स्थति से निकलने के लिये क्या विकल्प हैं. ईरान के साथ तेल के रिश्तें के साथ, भारत के अहम सामरिक रिश्ते हैं पारंपरिक मैत्रीपूर्ण संबंध हैं, उन रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा.इसलिए भारत के लिए ईरान से संबंध बनाए रखना ज़रूरी है और भारत बनाए रखेगा. तेल की इसमें एक भूमिका जरूर हैं . इन् रिश्तों के व्यापक पहलू हैं . चीन के सीपेक के काउंटर के तौर पर भारत ने वहां चाबहार पोर्ट को विकसित किया है.हालांकि राहत की बात यह हैं कि चाबहार इस छूट से अलग रखा गया हैं. आज की स्थति में ईरान और भारत के बीच संबंधों में खटास आना तो संभव ही नहीं है. इसलिए व्यापार होता रहेगा, उसमें कुछ मुश्किलें ज़रूर आएंगी यहा यह जानना जरूरी हैं कि टृंप के इस एलान की खबर यह ख़बर आते ही अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमतें 3.33 फीसदी बढ़ गईं.साथ ही भारत में शेयर बाज़ार के दोनों सूचकांक सेंसेक्स और निफ़्टी में साल की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई.कच्चे तेल की
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