प्रिय पाठकों, श्री लंका के हाल के दौरें में वहा की परिस्थति के विभिन्न पहलुओं के बारें मे आज से हम लेखों की एक श्रखंला शुरू करेंगे. उस श्रखंला का पहला लेख वहा के विदेश मंत्री अली साबरी की दो भागों के इंटरव्यू के साथ.आशा है आपको यह श्रखंला अच्छी लगेगी
कोलोंबो, 16 जुलाई, (वीएनआई/ शोभना जैन) श्रीलंका पर चीन की गहराती छाया का भारत के सुरक्षा हितों पर पड़नें वालें प्रभाव को ले कर भारत की चिंताओं पर श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने भारत को आश्वस्त किया हैं कि श्रीलंका भारत के वैध सुरक्षा हितों पर कोई आंच नहीं आने देगा और किसी भी रिश्तें को उसे नुकसान पहुंचाने की इजाजत नहीं देगा. उन्होंने कहा "श्रीलंका भारत की चिंताओं को ले कर अति सतर्कता बरतता रहेगा, वह भारत को इस बाबत वचन भी देता रहा है, और इस दिशा में कदम भी उठाता रहा है, साथ ही उन्होंने कहा कि श्रीलंका सभी देशों के साथ मित्रता रखना चाहता हैं. उस की विदेश नीति बहुपक्षीय हैं, एक निष्पक्ष देश की हैं लेकिन भारत उस के लिये किसी पारिवारिक रिश्तें की तरह हैं, भारत उस की विदेश नीति का केन्द्रीय बिन्दु हैं. उन्होंने कहा " जिस तरह से श्रीलंका पिछले वर्ष आर्थिक बदहाली दिवालियापन के कगार पर पहुं गया था, उस वक्त विशेष तौर पर भारत की आर्थिक सहायता उस के लिये "लाईफ लाईन' साबित हुई इसलिए उनका कहना हैं कि ये रिश्ते सामान्य नहीं , बल्कि बेहद अहम हैं और भारत उस की विदेश नीति का केन्द्रीय बिन्दु हैं.
विदेश मंत्री अली श्रीलंका दौरे पर यहां आयी इंडियन वुमेन प्रेस कोर - आई डब्ल्यू पी सी की महिला पत्रकारों के शिष्टमंडल से बात कर रहे थें. जिस में उन्होंने भारत श्रीलंका संबंध, श्रीलंका की आर्थिक बदहाली के बाद पटरी पर लाने का आर्थिक रोडमैप, हाल के वर्षों में चीन के श्री लंका पर बढ़तें प्रभाव की वजह से भारत की बढ़ती चिंतायें,श्री लंका का हम्बनटोटा बंदरगाह को ले कर उपजी भारत की चिंताये, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रभावी भूमिका को लेकर श्रीलंका की अपेक्षा आदि. हम्बन्टो्टा बंदरगाह भारत की समुद्रीय सीमा के बिल्कु्ल निकट है ,बंदरगाह निर्माण के लियें चीन द्वारा दिया गया भारी ऋण समय से नहीं चुकानें की वजह से श्रीलंका को यह बंदरगाह चीन को 99 वर्ष की लीज पर देना पड़ा हैं, जिसे भारतीय सहित अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ ऋण की आड़ में श्रीलंका पर फंदा कसनें की डिप्लोमेसी मान रहे है.ऐसे में इस बंदरगाह को ले कर भारत की चिंतायें लगातार बढ रही हैं. इसी तरह इसी बंदरगाह पर पिछले वर्ष चीन के जासूसी पोत वुआन ऑग 5 के पड़ाव पर भारत ने श्री लंका से गहरी आपत्ति जताई थी.चीन जिस तरह से क्षेत्र में अपना नौ सैन्य प्रभाव बढाना चाहता हैं वह भारत के सुरक्षा हितों के लियें बड़ा खतरा हैं. निश्चय ही इस तरह के कदमों से भारत की सुरक्षा चिंतायें बढ़ती हैं .यह बंदरगाह चीन की विवादास्पद " वन बेल्ट वन रोड इनिशिएटिव " का अहम हिस्सा माना जाता हैं. श्री अली ने भारत की इन चिंताओं के संदर्भ में पूछे गये सवाल के जवाब मे कहा कि यह बंदरगाह सैन्य बंदरगाह नहीं हैं , यहां से पूरी तरह से व्यावसायिक गतिविधियां ही संचालित होती है. लेकिन इस बात का पूरा ख्याल रखा जायेगा कि व्यवासायिक गतिविधियों की आड़ में कोई एजेंडा नहीं चला पाये
उन्होंने कहा कि भारत श्रीलंका के रिश्ते अविभाज्य हैं, अलबत्ता किसी भी देश या यूं कहें कि किसी भी परिवार की तरह दोनों देश भी चुनौतियों के दौर से गुजरें है लेकिन अन्ततः समय की क़सौटी पर ये रिश्तें खरें उतरे हैं.उन्होंने कहा कि दोनों देशों के रिश्तें किसी भी देश के रिश्तों जैसे सामान्य नहीं कहें जा सकतें हैं दोनों देश साझी सभ्यता, संस्कृति, धार्मिक समाजिक आधार पर जुड़े हैं, साथ ही दोनों देश आर्थिक और सुरक्षा हितों से जुड़े हैं तभी उन का कहना हैं कि ये रिश्तें एक बड़े परिवार के सस्य के रिश्ते जैसे हैं और.ये संबंध पारदर्शिता पूर्ण हैं.
श्रीलंका की पिछले वर्ष की आर्थिक बदहाली से उबरनें में और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के प्रयासों में भारत के योगदान की भूरि भूरि प्रशंसा करत हुयें उन्होंने कहा कि श्रीलंका जब पिछलें वर्ष दिवालियापन के कगार पर था, ऐसे में भारत ही था जिसने श्रीलंका कि 3.9 अरब डॉलर का ऋण दिया और यहीं आधार था जिस से जिससे श्री लंका अपनी आर्थिक बहाली शुरू कर सका अन्यथा अगर मुद्रास्फीति की यही स्थति रहती हैं तो श्री लंका तबाही के कगार पर पहुंच जाता.खाद्य मुद्रास्फीति उस वक्त 95 प्रतिशत और सामान्य मुद्रास्फीति 80 प्रतिशत तक पहुंच चुकी थी लेकिन भारत सहित अंतरराष्ट्रीय मुद्रा फंड, एशियायी विकास बेंक़ जैसे अंतर रा्ष्ट्रटीय वित्तीय समूहों की मदद से और राष्ट्रपति विक्रमसिंघे के नेतृत्व सरकार द्वारा लियें गये कड़ें साहसिक, फैसलों के साथ ही देशवासियों की अदम्य इच्छा शक्ति और जुझारूपन की बदौलत आज मुद्रास्फीति 12 प्रतिशत ही रह गयी जब कि इस दर को पाने का लक्ष्य अक्टूबर रखा गया था. उन्होंने कहा कुछ समय पहले जब वे वित्त मंत्री थी तो भारत में आर्थिक सुधारों के जनक डॉ मनमोहन सिंह इस दौर में उनके आदर्श रहें. ये सवाल उन के दिल में बना रहता था कि जह डॉ सिंह इतनी बड़ी आबादी वाले भारत में आर्थिक सुधार सफलता पूर्वक कर सकते हैं तो श्रीलंका क्यों नही. उन्होंने कहा कि श्रीलंका विमान सेवा सहित अपने अनेक क्षेत्र निजीकरण के लिये खोल रहा है,ऐसे में वह चाहता हैं कि भारत सहित अनेक देश वहा निवेश करें. उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद हैं कि तमाम कदमों से अगले वर्ष से मुद्रास्फीति पर काबू पा लिया जायेगा और विकास दर शुरू हो जायेगी.विदेश मंत्री ने कहा निश्चय ही श्रीलंका ने उन गलतियों से सबक सिखेगा , जिस के चलतें श्री लंका को पिछले कुछ वर्षों मे बुरे दौर से गुजरना पड़ा. जारी.......
No comments found. Be a first comment here!