नई दिल्ली, 26 अप्रैल (वीएनआई) "सर्व धर्म सम भाव" वाली भारतीय संस्कृति में ये दिन पूजा पाठ, मनन और चिंतन के हैं. एक तरफ जहा भारत सहित दुनिया भर में मुस्लिम धर्मावंलबी रमजान के पाक दिनों में ईबादत कर रहे हैं वहीं हिंदू और जैन धर्मावंलबियों में आज अक्षय तृतीया का पावन पर्व मनाया जा रहा हैं.जैन धर्म कीमान्यताओं के अनुसार इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था. जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर श्री आदिनाथ भगवान ने सत्य व अहिंसा का प्रचार करने एवं अपने कर्म बंधनों को तोड़ने के लिए संसार के भौतिक एवं पारिवारिक सुखों का त्याग कर जैन वैराग्य अंगीकार कर लिया.कथा हैं क़ी सत्य और अहिंसा के प्रचार करते-करते आदिनाथ प्रभु हस्तिनापुर गजपुर पधारे जहाँ इनके पौत्र सोमयश का शासन था. भगवान आदिनाथ के आगमन का समाचार सुनकर सम्पूर्ण नगर दर्शनार्थ उमड़ पड़ा. सोमप्रभु के पुत्र राजकुमार श्रेयांस कुमार ने प्रभु को देखकर पहचान लिया और तत्काल शुद्ध आहार के रूप में प्रभु को गन्ने का रस दिया, जिससे आदिनाथ ने व्रत का पारायण किया. गन्ने के रस को इक्षुरस भी कहते हैं इस कारण यह दिन इक्षु तृतीया एवं अक्षय तृतीया के नाम से विख्यात हो गया.भगवान श्री आदिनाथ ने लगभग 400 दिवस की तपस्या के पश्चात पारायण किया था. यह लंबी तपस्या एक वर्ष से अधिक समय की थी अत: जैन धर्म में इसे वर्षीतप से संबोधित किया जाता है.
हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं. शास्त्रों के अनुसार इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है.इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं. प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं. वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं.
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