नई दिल्ली, 13 दिसंबर, (शोभनाजैन/वीएन आई) कुछ दस्तावेजी पन्नें...13 दिसंबर 2001, जाड़े के बावजूद दोपहर खुशनुमा सी लग रही थी,वक्त,लगभग बारह बजे,वो दिन आज भी स्मृतियों में ठहरा सा हुआ हैं....यू.एन.आई की संवाददाता के नाते मैं ब्रिटेन के तत्कालीन उच्चायुक्त को इंटरव्यू कर आफिस लौट रही थी,आफिस में यह स्टोरी फाईल कर के अगली डयूटी संसद भवन में रिपोर्टिंग करने की थी.सब कुछ ठीक ठाक सा लग रहा था. मेरी गाड़ी संसद भवन के ठीक सामने राजपथ रेडलाईट पर जब रूकी तो माहौल शांत सा था लेकिन कुछ ठक- ठक की आवाज़ें सुनाई दी.
उत्सुकता वश कुछ जानने की कोशिश की तो अचानक हड़बड़ी सी में लाल बत्ती हरी हो गयी. सौ कदम आगे रेल भवन के मोड़ तक आते आते देखा,शांत सा दिखने वाला माहौल बदल चुका था, सुरक्षाबलों की तेज भाग दौड़ शुरू हो चुकी थी. क्या हुआ? क्या हुआ ?सुरक्षा कर्मियों के एलर्ट व चेहरों पर छायी चिंताओं में मेरे ये सवाल अनसुने थे बस गाड़ी आगे बढा लेने के लिये सुरक्षा बलों के हाथ तेजी से लगातार हिल रहे थे.सवालों से झल्लायें एक सुरक्षा कर्मी तेजी से हाथ हिलाते हुए कार फौरन भगा लेने का निर्देश देते हुए बोले "अरे मैडम,पार्लियामेंट में गोली चल रही हैं गाड़ी भगाओ " खबर फाईल करने की हड़बड़ी में तीन चार मिनट में जब आफिस पहुंचीं तो, पता चला कि आखिर हो क्या रहा हैं.
उस दिन धीरे धीरे तस्वीर साफ होती जा रही थी. कैसी खतरनाक साजिश...किस तरह लोकतंत्र के मंदिर पर हुये जघन्य हमलें में संसद भवन के एलर्ट सुरक्षा कर्मियों ने संसद भवन के दरवाजों को अंदर से बंद कर उस वक्त वहां मौजूद नेताओं सहित मौजूद सभी को महफूज किया और आंतकियों की एक भयावह साजिश को काफी हद तक विफल कर दिया..किस तरह भवन के बाहर इन में से तैनात कुछ अन्य सुरक्षा कर्मियों ने वहा तैनात अन्य सुरक्षा बलों के साथ मिल कर गोलियों की बौछारों का सामना कर अपने प्राणों का बलिदान दे कर आंतकियों की साजिश को नाकाम किया.वे तमाम चेहरे कभी धूमिल नहीं हों...नमन...पत्रकारिता की पारी के दस्तावेजी पन्नों में से एक ,अहम पन्ना यह भी। वीएनआई