कोरोना संकट काल में पूरी संयम साधना से श्रुत पंचमी पर्व सम्पन्न

By Shobhna Jain | Posted on 27th May 2020 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली, 27 मई (वीएनआई), कोरोना संकट की वजह से लॉकडाउन के चलतें, आज दुनिया भर के दिगंबर जैन धर्मावंलबियों ने घरों में ही रह कर पूजा अर्चना और जिनवाणी, शास्त्र पूजन और आचार्यों के प्रवचन सुन कर भक्ति भाव से श्रुत पंचमी पर्व मनाया और दुनिया को जल्द से जल्द इस महामारी की आपदा से मुक्त किये जाने की प्राथनायें की. जैन धर्मावलम्बियों में इस पर्व की बहुत महत्ता हैं.आज ही के दिन जिन आगम का पहला शास्त्र "षडखंडागम" लिपिबद्ध हुआ, तभी से ही भारत में श्रुत पंचमी को पर्व के रूप में मनाया जाने लगा. 

दरअसल,चौबीसवें जैन ती्र्थकर महावीर  स्वामी के निर्वाण के बाद धीरे-धीरे उनके अनुया्यियों के लियें उनके  दिव्य उपदेशों को यथावत  मौखिक रूप से याद करना  एक  बड़ी चुनौती सा बन गया . एक समय तक तो भगवान के उपदेशों को परंपरागत तरीके से एक आचार्य से दूसरे आचार्य के जरियें श्रद्धालुओं तक मिलतें रहे लेकिन दिनों दिन जब यह मौखिक ्ज्ञान क्षीण होने लगा  और उन दिव्य उपदेशों का थोड़ा अंश ही बचा, तब  भगवान महावीर के निर्वाण के  लगभग ६८३ वर्ष बाद यानि 2000 वर्ष पूर्व  जैन ज्ञानी आचार्य धरसेन ने अपने नवशिष्यों मुनि पुष्पदन्त और  मुनि भूतबलि को आदेश दिया की महावीर स्वामी की दिव्य वाणी को लेखन के माध्यम से संरक्षित किया जाए. तब आचार्य पुष्पदंत ,एवं आचार्य भूतबलि ने 'षटखंडागम शास्त्र' की रचना की थी, यानि जिन आगम का पहला शास्त्र लिपिबद्ध हुआ. जैन विद्वानों के अनुसार आज ही के दिन जैन धर्म के प्रमुख मंत्र 'णमोकार मंत्र' का भी लिखित उल्लेख हुआ था. इस दिन जैनधर्मावलम्बी  पवित्र जैन ग्रंथ जिनवाणी का  पूजन और वाचन करते हैं.दिगंबर जैन परंपरा के अनुसार प्रति वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी तिथि को श्रुत पंचमी पर्व मनाया जाता है.जैन मुनियों के अनुसार श्रुत पंचमी पर्व ज्ञान की आराधना का महान पर्व है, जो जैन  श्रद्धालुओं को वीतरागी संतों की वाणी सुनने, आराधना करने और प्रभावना बांटने का संदेश देता है, वे इस दिन मां जिनवाणी की पूजा अर्चना करते हैं. लॉक डाउन से पूर्व पिछले वर्ष तक ्यह पर्व बहुत धूम धाम से मनाया जाता था. मंदिरों में आचार्यों के प्रवचन, पालकी यात्रा , सामूहिक पूजन  तथा शोभा यात्रा निकाली जाती रही थी.ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले इस श्रुत पंचमी के दिन बड़ी संख्यां में जैन धर्मावलंबी शोभा यात्रा में जैन धर्म के प्राचीन ग्रंथ रखकर गाजे-बाजे के साथ मां जिनवाणी तथा धार्मिक शास्त्रों की शोभायात्रा निकालते थे.

तपस्वी दार्शनिक जैन आचार्य १०८ श्री विद्या सागर जी महाराज ने इस पर्व पर सभी श्रद्धालुओं से घर में ही रह कर शस्त्र पूजन और स्वाध्याय करने और जरूरतमंदों की मदद करने की बात कही. आचार्यश्री इस समय मध्यप्रदेश के इंदोर नगर में ससंघ विराजमान हैं, तथा पूरा समय एकांत घोर तप साधना, स्वाध्याय में रत हैं.आज देश भर में आचार्यों,मुनियों, आर्यिकाओं व साधु संतों ने इस संकट काल में घरों में ही रह कर  पूजा अर्चना, स्वाध्याय, मनन, ध्यान करनें और जरूरत मंदों की मदद करने उपदेश दिया. इस अवसर पर जैन तीर्थ बिजोलि्या, राजस्थान में निर्यापक मुनि सुधा सागर जी महाराज, खुरई,उत्तर प्रदेश में मुनि अभय सागर जी महाराज व हस्तिनापुर उत्तर प्रदेश  स्थित जम्बू द्वीप में विदुषी गणिनी प्रमुख ज्ञान मति माता जी के सानिध्य में मंदिर परिसरों में पूजा अर्चना और जिन वाणी पूजन हुआ और  श्रद्धेय विद्वत जनों ने दुनिया को जल्द से जल्द इस संकट से मुक्त किये जाने की प्रार्थानायें की. हस्तिनापुर मंदिर में श्रुताभिषेक महाअर्चना समारोह हुआ, जिस में साध्वी श्री चंदना मति माता जी और संघ के  श्रद्धेय साधु संतों ने हिस्सा लिया. देश भर के विभिन्न स्थानों में विराजित आचार्यो, मुनि, आर्यिकाओं ्ने भी इस अवसर पर श्र्द्धालुओं को  इस संकट काल में संयमपूर्वक जिनेन्द्र देव की भक्ति करने का आहवान किया साधना से  से श्रुताभिषेक महा अर्चना समारोह हुआ.

 जैन शास्त्रों में दी गई इस पर्व की कथा के अनुसार  जैन प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से लेकर अंतिम और 24वें तीर्थंकर वर्धमान जिनेंद्र यानी महावीर स्वामी से होते हुए ये ज्ञान आचार्य धरसेन तक पहुंचा. आचार्य धरसेन ने मुनिद्वय ्पुष्पदंत और भूतबलि मुनियों को बुला कर उन्हें मंत्र दीक्षा दी. इन दोनों मुनियों ने मंत्रों की शुद्धि के लिए देवी का आह्वान किया. इसके बाद जिनेंद्र की वाणी को लिखना शुरू किया. यह प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं. जैन धर्म के सबसे प्रमुख मंत्र 'णमोकार मंत्र' भी इन्होंने ही पुस्तक में लिपिबद्ध किया है. इस तरह 6 खंडो का यह ग्रंथ तैयार  हुआ जो जीवस्थान क्षुद्रक बंध, बंध स्वामित्व ,वेदनाखंड, वर्गणाखंड और महाबंध हैं. इन ज्ञान सूत्रों को जिनवाणी भी कहा जाता हैं.भूतबलि आचार्य ने इ्न षट्खण्डागम सूत्रों को ग्रंथ रूप में बद्ध किया और ज्येष्ठ सुदी पंचमी के दिन चतुर्विध संघ सहित कृतिकर्मपूर्वक महापूजा की. उसी दिन से यह पंचमी श्रुतपंचमी नाम से प्रसिद्ध हो गयी। तब से लेकर लोग श्रुतपंचमी के दिन श्रुत की पूजा करते आ रहे हैं.वी एन आई


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