"एससीओं" की पेचीदगियों के बीच भारत चीन के मिलते हाथ

By Shobhna Jain | Posted on 15th Jun 2019 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली, 15 जून, (शोभना जैन/वीएनआई) किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में कल ही सम्पन्न हुई बहुचर्चित शंघाई सहयोग परिषद एस सी ओं की 19वीं शिखर बैठक पर वर्तमान वैश्विक घटनाक्रम  को लेकर जहा अमरीका सहित दुनिया भर की नजरें रही, वही इस बैठक के इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग के बीच चर्चित द्विपक्षीय मुलाकात पर भी न/न केवल भारत ,चीन बल्कि अमरीका रूस सहित अनेक बड़े देशों की नजरे लगी थी. इन दोनों शिखर नेताओं के बीच  मुलाकात के द्विपक्षीय पहलू तो अहम था  ही लेकिन इस के अलावा इस का वैश्विक पक्ष भी अहम था.

एससीओं की  शिखर बैठक ऐसे वक्त हुई जबकि एक तरफ  तो इस मंच से  बहुपक्षीय सहयोग ्पर जोर दिया जा रहा हैं तो जमीनी हकीकत यह हैं क्षेत्रीय सहयोग की मूल भावना को चुनौती देती अनेक समस्याये हैं. अमरीका चीन के बीच चल रहे "घमासान व्यापार युद्ध" के परिणामों को ले कर विश्व व्यापी  चिंतायें है,भारत भी इसे ले कर चिंतित हैं.ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमरीका द्वारा भारत सहित दुनिया भर के देशों से ईरानी तेल नही खरीदने पर पाबंदी लगा देने से तमाम देशों के समक्ष  उर्जा संकट उत्पन्न हो गया हैं जिस की लपटों ने  दुनिया भर  के देशों  को ले लिया हैं(इस बैठक में ईरान भी प्रयवेक्षक बतौर मौजूद था) अफगानिस्तान  में शांति स्थापना भी क्षेत्रीय चिंता का मुद्दा हैं. पीएम मोदी ने सम्‍मेलन में कहा भी कि  अफगानिस्‍तान में शांति जरूरी है और इसके लिए भारत अफगानिस्‍तान के साथ खड़ा है और फिर आतंकवाद  का मुद्दा तो विश्व व्यापी चिंता का मुद्दा बना ही हुआ हैं.रूस और चीन एस सी ओं ग्रुप के दो ताकतवर सदस्य हैं. इस क्षेत्रीय सहयोग ग्रुप का अहम सदस्य होने के साथ भारत अपनी निष्पक्ष  सहयोगी की छवि का संदेश भी देना हैं ,उस का संदेश है कि वह  महा शक्तियों की इस खेमेबंदी से दूर   इस क्षेत्र के देशों के साथ आपसी सहयोग की भावना से सभी के साथ आगे बढना चाहता हैं,सावधानी से कदम उठाने के बावजूद  इस प्रयास में वह कितना सफल हो पायेगा यह समय ही बता पायेगा. खास तौर पर ऐसे में जबकि अनेक ऐसे मसलें हैं जो चुनौती भरे हैं. मसलन  ्भारत को छोड़ कर एस सी ओं के ्सभी सदस्य देश चीन की विस्तारवादी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशियेटिव बी आर आई के समर्थक है. भारत  चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के पाक के कब्जे वाले कश्मीर से गुजरने की वजह से इसे अपनी संप्रभुता में अतिक्रमण मानते हुए इस का विरोध कर रहा हैं,ऐसे में भारत के अब तक के पक्ष पर  इस मंच से बात आगे कैसे बढती हैं, यह देखना होगा.  सम्मेलन में आतंकवाद चिंता का मुख्य मुद्दा है, वही भारत के खिलाफ निरंतर आतंकी गतिविधियॉ चलाने वाले पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान भी इस सम्मेलन में मौजूद रहे.मोदी ने जहा इस दौरान उन से इसी वजह से दूरी बनायें रखी और उस के खास सहयोगी चीन से भी द्वि्पक्षीय मुलाकात के दौरान दो टूक शब्दों मे कहा कि पहले पाकिस्तान  आतंकवाद रोके तभी उस के साथ बातचीत होगी. सम्मेलन में भी पी एम मोदी ने पाकिस्तान का नाम लिये बिना आतंकवाद से सभी मानवतावादी ताकतों से एक जुटता से निबटने की अपील की. बहरहाल तय हैं कि इस क्षेत्रीय सहयोग समूह में अलग अलग खेमे भी हैं, परस्पर हित के अलग अलग मुद्दे हैं, चिंताये हैं लेकिन क्षेत्रीय सहयोग की भावना से सब एक मंच पर भी हैं और इस भावना को ले कर यह क्षेत्रीय समूह कैसे आगे बढेगा, इस पर निगाहे रहेगी. 

बहरहाल द्विपक्षीय रूप से देखे तो  दोनों शिखर नेताओं के बीच यह मुलाकात काफी गर्म जोशी भरे माहौल में हुई.दोनों नेता पिछले पांच साल में 10 बार से ज्यादा मिल चुके हैं।डिप्लोमेसी जिस में बातचीत से ज्यादा अहम " ्बॉडी लेंग्वेज " मानी जाती हैं. दोनो नेता खासी गर्मजोशी से गले मिलते दिखे.इसी क्रम में  पी एम मोदी ने डिप्लोमेसी की औपचारिकता से हटते हुए चीनी राष्ट्पति को जन्म दिन की शुभकामनायें दी और  प्रधान मंत्री चुने जाने पर शी के बधाई संदेश और बैठक में उन्हे पुन;बधाई देने पर आभार जताया. प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत के बाद मोदी ने ट्वीट किया, ''राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ अत्यंत फलदायी मुलाकात की। हमारी बातचीत में भारत-चीन संबंध पूरे विस्तार से शामिल थे। हम अपने बीच आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को सुधारने में मिलकर काम करते रहेंगे"लेकिन इस बातचीत की  सबसे खास बात यह रही कि आर्थिक रिश्तों सहित सभी क्षेत्रों मे रिश्तों को मजबूत करने पर बल देते हुए दोनों ने संबंधों मे तनाव का बिंदु रहे सीमा विवाद को जल्द हल करने के किये सीमा वार्ता  में भी तेजी लाने  की इच्छा जताई ताकि "सीमा विवाद का निष्पक्ष, तर्कसंगत और दोनो देशों को स्वीकार्य हल" निकाला जा सके. सीमा विवाद पर दोनों देशों के बीच पिछली वार्ता गत नवंबर में हुई थी. ईक्कीसवें दौर की यह वार्ता चीन के चेंगदु शहर मे हुई थी जिस मे इस वार्ता में भारत के प्रतिनिधि, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाह्कार अजीत डोभल ने हिस्स्सा लिया. इस शिखर बैठक में  भी डोभल सीमा वार्ता में भारत के विशेष प्रतिनिधि बतौर मौजूद थे.
 
इस मुलाकात में मोदी ने  शी से कहा, ''वुहान में हमारी मुलाकात के बाद हमने अपने सबंधों में नयी रफ्तार और स्थिरता देखी है। दोनों पक्षों में रणनीतिक संवाद में तेज प्रगति हुई है, जिसकी वजह से दोनों एक दूसरे की चिंताओं और हितों को लेकर अधिक संवेदनशील हुए हैं। और उसके बाद से सहयोग बढ़ाने के नये क्षेत्र बने हैं। शी ने  भी कहा कि दोनों देशों को एक दूसरे को खतरा नही मानते हुए दोनों को एक दूसरे के लिये अवसर बतौर देखना चाहिये.

 पी एम मोदी और  शी की 2018 में वुहान में हुई मुलाकात को 73 दिन तक चले डोकलाम गतिरोध की वजह से तनावपूर्ण हुए रिश्तों में सहजता लाने का श्रेय दिया जाता है। वुहान वार्ता के बाद दोनों देशों ने सैन्य संबंधों समेत विभिन्न क्षेत्रों में रिश्तों को सुधारने के प्रयास तेज कर दिये थे।पिछले कुछ समय से खास तौर पर वुहान शिखर बैठक के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में  सहजता आई हैं.मसूद अजहर जैसे मामले जो काफी वक्त से लंबित पड़े थे,उस पर चीन के  रूख बदलना भी ्संबंधों को सहजता की और ले गया.  सीमा विवाद को हल किये जाने की दिशा में वार्ता किये जाने के साथ ही  दोनों देशों के बीच आर्थिक व्यापारिक रिश्ते द्विपक्षीय रिश्तों का मजबूत आधार बना है. पिछले वर्ष दोनों देशों  के बीच ९५ अरब डॉलर का व्यापार हुआ जिसे इस वर्ष १०० अरब डॉलर करने का लक्ष्य हैं. मिलते हाथ और बढते कदमों के क्रम में शी ने  वुहान के बाद अब   अगली अनौपचारिक शिखर बैठक  में भारत आने का  पी एम मोदी कानयौता स्वीकार कर लिया है जो रिश्तों मे कुछ और सहजता आने का संकेत हैं.ऐसे संकेत हैं कि यह बैठक इस वर्ष नवंबर में  पी एम के संसदीय क्षेत्र वाराणासी में हो सकती हैं. समाप्त


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