नई दिल्ली 26 अप्रैल (शोभना जैन/वीएनआई) भयावह कोरोना महामारी से एक तरफ जहा दुनिया के सभी देश अपने- अपने स्तर के साथ वैश्विक एकजुटता से निबटने के लिये जूझ रहे हैं वहीं दुनिया भर में इस बीमारी के फैलने और इस से निबटने को ले कर चीन की भूमिका को ले कर अनेक तरह की चिंतायें खड़ी हुई हैं। अनेक उलझे से सवाल हैं।।।चीन अगर शुरूआत में ही इस बीमारी को ले कर लीपा पोती नही करता तो दुनिया समय रहतें इस संकट का प्रभावी तरह से सामना करने का प्रयास करती? "चीन की और झुकाव" की वजह से विश्व स्वास्थय संगठन ड्ब्ल्यु एच ओं ने इस बीमारी की भयावह से समय रहते दुनिया को आगाह नही किया जिस की वजह से दुनिया में बेशुमार मौतें हो रही हैं और फिर इस बीमारी से निबटने में ्चीन द्वारा भेजे जा रहे काफी सुरक्षा उपकरण की घटिया क्वालिटी को ले कर चीन की तरफ जिस तरह से उंगलियॉ उठी। सवालों और ्चिंताओं यह सिलसिला यही थमता नही हैं। अमरीका, जापान, इटली, फ्रांस जैसे विकसित देशों कोरोना संकट से जरजराती अर्थ व्यवस्था का फायदा लेते हुए चीन द्वारा उन की कंपनियों को हथियानें की कौशिश।।।
बहरहाल इस माहौल में भारत पर भी चीन की इन गतिविधियों की परछाईया पड़ी हैं और भारत एक बार फिर अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए कभी सहज तो अभी असहज रिश्तों वालें इस पड़ोसी देश के साथ रिश्तों में संतुलन साधनें की कौशिश कर रहा हैं। वैसे भारत चीन राजनयिक संबंधों की 70 वीं वर्ष गांठ के इस वर्ष में आपसी रिश्तों पर कोरोना की छाया हैं।दुनिया के अनेक देशों की तरह भारत की जनता के बड़े वर्ग के बीच भी चीन की "गैर जिम्मेदराना," "निहित स्वार्थ" और "संदेहास्पद" वाली भावना को ले कर सुगबुगाहट हैं।्लेकिन यहा बात भारत चीन संबंधों के व्यापक रिश्तों, सीमा विवाद, सीमा पर घुसपैठ, व्यापार आदि तमाम मुद्दों की नही बल्कि विशेष तौर पर सिर्फ कोरोना दौर में रिश्तों की ही बात करें तो निश्चय ही चीन कोरोना को ले कर अपनी गैर जिम्मेदाराना निहित स्वार्थी व्यवहार को ले कर दुनिया भर में अलग थलग पड़ता जा रहा है,्यह उस के लिये भी , उस की अर्थ व्यवस्था के लिये सही नही नही हैं।
हाल ही में हुए घटनाक्रम की चर्चा करे तो चीन की "अवसरवादी मंशा" को भॉपते हुए भारत ने अपनी घरेलू कंपनियों को किसी भी विदेशी कंपनी के अधिग्रहण या यूं कहें कि हड़पने से बचाने के लिये दुनिया की अनेक विकसित अर्थ व्यवस्थाओं की तरह अपने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एफ डी आई नियमों मे "प्रक्रियागत बदलाव" करते हुए फैसला किया कि भारत के साथ जमीनी सीमा साझा करने वाले देशों की किसी भी कंपनी या व्यक्ति को भारत में किसी भी सेक्टर में निवेश से पहले सरकार की मंजूरी लेनी होगी।भारत सरकार ने कोविड-19 महामारी की वजह से भारतीय कंपनियों का 'अवसरवादी तरीके से अधिग्रणहण' को रोकने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से जुड़ी नीतियों की समीक्षा के बाद यह रक्षात्मक फैसला किया इस फैसले से चीन जैसे देशों से होने वाले विदेशी निवेश पर असर पड़ता। भारत की नई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति से चीन बुरी तरह तिलमिला गया। चीन ने इस बदलाव पर तीखी प्रतिक्रिया के साथ इसे भेदभावकारी करार देते हुए विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ के नियमों के भी खिलाफ बता डाला। भारत ने सधी हुई प्रतिक्रिया में साफ तौर पर यही पक्ष रहा कि किसी भी देश को भारत की नयी एफ डी आई नीति के नियमों को ले कर चिंता नहीं होनी चाहियें।चीन की इस प्रतिक्रिया से संकेत तो यही गया कि आतंकवाद, पाकिस्तान और साझा सीमाओं पर आमने-सामने खड़े पड़ोसी देशों में एफडीआइ को लेकर भी टकराव हो सकता है।इस फैसलें से तिलमिलायें चीन भारत में चीनी दूतावास की प्रवक्ता जी रोंग ने कहा कि भारत की तरफ से एफडीआइ नीति में बदलाव का चीन की कंपनियों पर पड़ने वाला प्रभाव एकदम साफ है।उन की झल्लाहट भारी दलील थी कि चीन समेत भारत से सीमा साझा करने वाले देशों की कंपनियों के लिए निवेश करना मुश्किल हो गया है। ्चीन ने यह तक कहा कि पिछले वर्ष दिसंबर तक चीन की कंपनियों ने भारत में 800 करोड़ डॉलर यानी करीब 60,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है जो भारत में निवेश करने वाले किसी भी पड़ोसी देश से ज्यादा है। चीन की कंपनियों ने भारत की मोबाइल, घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, ऑटोमोबाइल व ढांचागत क्षेत्र को विकसित करने में अहम योगदान दिया। ये कंपनियां भारत में रोजगार दे रही हैं और ऐसे अवसर पैदा कर कर रही हैं जो दोनो देशों के हित में हैं। बहरहाल भारत ने चीन के इस तमाम ऑक़ड़ेबाजी के जबाव में सधी सधाई प्रतिक्रिया में अपना बात साफ तौर पर चीन को बता दी।
इसी क्रम मे देखें तो "चीन के झुकाव" की वजह से विश्व स्वास्थय संगठन द्वारा कोरोना की भयावहता दुनिया भर को समय से नहीं देने और इसे काफी देर से महामारी घोषित करवाने की खबरों को ले कर संगठन और चीन की भूमिका को ले कर अमरीका, तैवान जैसे अनेक देशों के तेवर तीखे रहें। अमरीका ने इसे ले कर संगठन का सब से बड़ा सहायता देने वाले देश होने के बावजूद न/न केवल संगठन को दी जाने वाली 5।80लाख डॉलर की सहायता रोक दी ्बल्कि अब कहा हैं कि वह कभी भी इस सहायता को बहाल नही करेगा। कोरोना वायरस महामारी के चीन में पहली बार सामने आने के बाद बीमारी के ‘गंभीर रूप से कुप्रबंधन और इसे छिपाने’ में उसकी भूमिका सवालों के घेरे में हैं ही।भारत ने इस मामलें में भी सतर्कता पूर्ण प्रतिक्रिया में इस पूरे विवाद से अपने को दूर रखते हुए कहा कि इस वक्त उस का पूरा ध्यान कोरोना संकट से निबटने पर हैं। इन सवालों पर कि क्या भारत कोरोना की जॉच के लिये किसी निष्प्क्श जॉच के पक्ष में हैं, भारत का यही कहना हैं कि इस वक्त की सब से बड़ी प्राथमिकता कोरोना से निबटने की हैं।
निश्चय ही चीन अगर दुनिया भर से कोरोना महमारी की खबर को ले कर अगर पारदर्शिता बरतता तो लगता तो यही हैं कि तबाही का यह आलम नही होता जो अब हो रहा हैं। दुनिया के साथ भारत में भी चीन के खराब क्वालिटी के अनेक सुरक्षा उपकरणों को ले कर चिंता के बादल हैं।्कोरोना की फौरी जॉच के लिये चीन से मंगाई गई रेपिड टेस्टिंग किट की क्वालिटी खराब पाये जाने पर हालांकि चीन ने शुरूआत में दोष अपने मत्थे लेक्ने की बजाय कह दिया कि भारत की भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद आई सी एम आर और राष्ट्रीय वायरलोजी संस्थान से मंजूरी के बाद ही ये किट भारत को सप्लाई किये गये। बहरहाल मामलें के तूल पकड़ने के बाद ये किट्स भेजने वाली चीन की उत्पादक कंपनियों ने कहा कि वह भारतीय अधिकारियों के साथ मिल कर इन की जॉच में सहयोग देगा। गौरतलब हैं कि आई सी एम आर ने इन किटस में खराबी पाये जाने के बाद इन की जॉच होने तक इन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी।इस मामलें में भारत में चिंता होना स्वाभाविक हैं, लेकिन भारत ने इस बारे में आधिकारिक तौर पर अभी कुछ नही कहा हैं । भारत ने कहा कि इन किट्स के बारें में अभी छान बीन चल रही हैं।भारत ने पिछले सप्ताह ऐसे 65 लाख किट्स चीन से आयात किये थे।चीन से इसी बीच अन्य मेडीकल सप्लाई जारी हैं ।विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव के अनुसार चीन के पांच शहरों से करीब दो दर्जन विमान 400 टन मेडिकल सप्लाई लेकर भारत पहुंच चुके हैं। अब अगले कुछ दिनों में 20 और विमान ये सब लेकर आएंगे।इस बीच भारत अमरीका,साउथ कोरिया सहित अनेक देशों से सुरक्षा उप्करण और जॉच किटस ले रहा हैं, प्रयोगशालाओं में साझें शोध कार्यों में शामिल हो रहा हैं। अपने स्तर पर भारत की प्रयोगशालाओं में ऐसे जॉच किटों के निर्माण की तक्नीक खोजने के साथ ही इस बीमारी का ईलाज ढूढनें के लिये शोध जारी हैं। इस के साथ ही पड़ोसी देशों सहित अनेक देशों को जरूरी दवाईयॉ, जॉच किट्स और सुरक्षा उप्करण और चिकित्सा दल भेज रहा हैं,दक्षेस जैसे पड़ोसी देशों के संगठन के साथ ही विश्व के नेताओं के साथ इस वैश्विक संकट से प्रभावी ढंग से निबटने के लिये निरंतर संपर्क में हैं।
बहरहाल, भारत कभी सहज और कभी असहज रिश्तों वालें अपने इस पड़ोसी देश के साथ अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए रिश्तों मे संतुलन साधने में लगा हैं।चीन कोरोना संकट काल में भी पाकिस्तान के साथ मिल कर कश्मीर को ले कर प्रलाप कर चुका हैं। देखना होगा कि भारत चीन के बीच राजनयिक रिश्तों की ७० वीं वर्ष गांठ पर चीन की गतिविधियॉ कैसी रहेगी,विशेष तौर पर कोरोना की छाया का भारत चीन के रिश्तों पर कैसा असर पड़ेगा।
No comments found. Be a first comment here!