भारत, चीन और नेपाल की गुत्थी

By Shobhna Jain | Posted on 30th Jun 2018 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली, 30 जून, (वीएनआई/शोभना जैन), चीन के प्रति अपेक्षाकृत नरम रूख रखने वाले नेपाल के प्रधान मंत्री के पी शर्मा ओली ने पिछले सप्ताह चीन की अहम यात्रा से लौटने के बाद कहा कि वह भारत और चीन दोनों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना चाहता है और कहा कि नेपाल  लघु कालिक लाभ के लिये दोनो देशों के साथ ताश का खेल नही खेलना चाहता है। निश्चय ही भारत  के साथ 'रोटी बेटी के रिश्तों वाले नेपाल' के साथ पिछले कुछ समय से हमारी दूरियॉ बढी हैं, ऐसे में चीन के साथ नजदीकियॉ बढा रहे नेपाल के प्रधानमंत्री का यह बयान महत्वपूर्ण है. सवाल है कि आखिर आज के संदर्भ में  नेपाल के भारत और चीन के साथ  त्रिकोणीय रिश्तों की गुत्थी आखिर क्या रूप ले रही हैं?.सच्चाई यही है कि नेपाल भारत के मुकाबले चीन की तरफ बढ रहा हैं,दूसरी और भारत चीन के साथ अपने रिश्तों को नये सिरे से परिभाषित करने का प्रयास कर रहा है ्साथ ही  भारत तीन वर्ष पूर्व नेपाल के साथ रिश्तों मे आई तीखी खटास के बाद रिश्तों को फिर से पटरी पर लाने का प्रयास कर रहा हैं, तो ऐसे में यह त्रिकोंण आखिर कैसा बनेगा....?

ओली के अनुसार उनकी सरकार देश के विकास के लिए प्रतिबद्ध है और यह तभी संभव होगा, जब भारत और चीन दोनों से नेपाल के दोस्ताना रिश्ते बने रहें। चीन की इस यात्रा मे जहां उन्होने अपने देश में रेल संरचना को विकसित करने सहित आधारभूत ढॉचा विकसित करने को ले कर कई अहम समझौते हुए लेकिन इस के साथ ही नेपाल ने  चीन की विवादास्पद 'वन बेल्ट-वन रोड'्परियोजना परभारत की आपत्ति के बावजूद सहमति जाहिर की, जिस पर भारत मे सवाल उठने स्वाभाविक थे. ओली ने दोनो देशो के साथ रिश्तों मे संतुलन पर जोर देते हुए कहा कि नेपाल ने जो विदेश और वैश्विक नीतियां बनाई हैं, वह न तो किसी देश के खिलाफ और न ही किसी भी प्रकार से वैश्विक शांति को खतरा पहुंचाने वाली हैं,ओली ने यह भी कहा कि चीन ने सभी तरह की जरूरी मदद उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है, इससे दोनों देशों के बीच विकास के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियां भी बढ़ेंगी।

दरअसल नेपाल मे आधारभूत ढॉचे का विकास, उस की जरूरत है. नेपाल के लिये जहां यह उस की आर्थिक गतिविधियॉ बढायेगा वही चीन के लिये यह दोहरा फायदेमंद सौदा है, एक तो उसे हिमालय की घाटी मे बसे नेपाल का भरोसा हासिल होगा साथ ही हिमालय क्षेत्र मे इस ढॉचे के विकास से उस के सामरिक हित भी सधेंगे खास कर ऐसे मे जबकि भारत और नेपाल के बीच प्रगाढ रिश्ते कायम होने के बावजूद भारत इस क्षेत्र में इस तेजी से आधारभूतढॉचा विकसित करने में सहयोग नही कर पाया और अनेक परियोजनाये समय से पूरा नही पर पाया यानि जिस आक्रामकता से चीन ने अपना प्रसार बढने के लिये परियोजनाये तेजी से लागू की, नयी परियोजनाये हासिल की, जिस से दोनो के बीच व्यापार और ट्रांजिट बढा और ऐसे मे आयानेपाल के खिलाफ आर्थिक नाकेबंदी  का दौर जिस से न/न केवल सरकारो के बीच बल्कि जनता के बीच भी  आपसी भरोसा और कम हुआ

गौरतलब है कि ओली ने  अपने इस नये कार्यकाल में चीन के प्रति अपने झुकाव के बावजूद नेपाल की पंरपरा को जारी रखते हुए प्रधान मंत्री के रूप मे पहला दौरा भारत का ही किया और उस के बाद अपनी दूसरी विदेश यात्रा  चीन  की. वर्ष 2015 की नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी के  बाद भारत नेपाल रिश्तों मे आई तीखी खटास के बाद रिश्तों को ्सामान्य बनाने के प्रयास बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  ने पिछले माह ही  नेपाल की यात्रा की, जिस में  दोनो देशों के बीच प्राचीन सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्तों पर ज़ोर दिया गया. इस दौरे की शुरुआत उन्होंने दक्षिणी नेपाल के जनकपुर क़स्बे से की थी. नेपाल में बिताए लगभग तीस घंटों में नरेंद्र मोदी यहां के मुख्य मंदिरों में भी गए.उन्होंने दोनो देशों की जनता के बीच करीबी बढाने के लिये  जनकपुर और अयोध्या के बीच बस सेवा भी शुरू की. ऐसे में सवाल है कि क्या इस तरह की कोशिशों से नेपाल के साथ भारत के संबंधों ्को फिर से पटरी पर लायाजा सकेगा? खास कर ऐसे में जब कि नेपाल चीन रिश्तों में चीन फेक्टर खास अहम होता जा रहा हैं


आख़िर नेपाल के साथ भारत के रिश्ते ख़राब कैसे हो गए,और नेपाल तेजी से चीन की तरफ कैसे झुक गया?. हालांकि भौगोलिक दृष्टि से नेपाल चीन के मुकाबले भारत से ज्यादा जुड़ा हुआ है और सामाजिक  सांस्कृतिक नजरिये से भी दोनो देश गहराई से जुड़े हुए है. खुली सीमा होने की वजह से बड़ी तादाद में नेपाली भारत में काम करते हैं इसी तरह से तराई के अलावा काठमॉडू सहित अन्य स्थानों मे भारतीय  वहा आर्थिक गतिविधियों से जुड़े हुए है.दरअसल आर्थिक नाकेबंदी के दौरान नेपाल की जनता काफी त्रस्त रही जिस का पूरा लाभ चीन ने उठाया. उस वक्त नेपाल ने 20 दिन बाद बदहाली झेलने के बाद पेट्रोल लेने के लिए चीन की तरफ हाथ बढ़ाया था. उस समय ओली की ही सरकार थी और आज भी वह पीएम हैं. वह चीन के लिए अच्छा अवसर था और उसने खूब मदद की.चीन आज भी  मदद कर रहा है. विशेषज्ञ मानते है कि यह वह मौका था जबकि  नेपाल को विचार करना पड़ा है कि फिर वैसी नौबत आए तो एक विकल्प होना चाहिए. ट्रेड और ट्रांजिट के लिये उस ने चीन को भी विकल्प बतौर चुना. स्थति और भी विषम हो गई जबकि भारत विरोधी तत्वों ने जनता की परेशानियों का लाभ उठा कर भारत विरोधी भावनायें भड़काई

प्रधानमत्री मोदी ने हालांकि कहा कि भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी' में नेपाल सबसे पहले आता है लेकिन चीन और नेपाल के बीच बढती नजदीकियॉ को इसी बात से समझा जा सकता है कि ओली की चीन यात्रा के दौरान उन्होने चीन के साथ 2.4 अरब डॉलर के आठ अहम समझौते किये, जिस मे आधारभूत ढॉचे के विकास के साथ साथ जल संसाधन परियोजनाये और जल विद्द्युत परियोजनाये जैसी परियोजनायें शामिल है, जिस की नेपाल को बहुत जरूरत थी.इस के साथ ही ओली ने  हिमालय क्षेत्र में चीन के साथ काठमॉडू को तिब्बत से जोड़ने वाले सामरिक रेल लिंक बनाये जाने की परियोजना पर भी हस्ताक्षर किये है जिसे सामरिक दृष्टि से नेपाल और तिब्बत को जोड़ने के लिये बहुत संवेदन्शील माना जा रहा है.यहा यह जानना भी दिलचस्प हैं कि सम्भवत भारत पर अपने पड़ोसी देशो के साथ 'बिग ब्रदर' का रवैया अपनाने के आरोपो के परोक्ष संदर्भ में चीन के राष्ट्रपति ने कहा "चीन नेपाल की स्वतंत्रता, प्रभुसत्ता और क्षेत्रीय अखंडता बनाये रखने के प्रयासो को समर्थन देता रहेगा' इस तरह की टिप्पणियॉ न/न केवल उन दोनों बीच भरोसा बढाने के मकसद से की गई बल्कि मकसद भारत से दूरियॉ बढवाने की गरज से ज्यादा हुई. इसी संदर्भ मे यह भी खास है कि नेपाल के भारत के साथ मैत्री पूर्ण संबंधों के बावजूद नेपाल ने चीन की महत्वाकांक्षी बीआरआई परियोजना में उस का साथ दिया हालांकि भारत इस परियोजना के पाक अधिकृत कश्मीर से गुजरने की वजह से इसे अपने देश की संप्रभुता के खिलाफ बता कर इस से जुड़ने से इंकार कर चुका है.

चीन ने जिस तरह से हिमालय क्षेत्र में विमान परिवहन, सड़क मार्ग और  दूरसंचार का जाल बिछाने का प्रस्ताव किया है और नेपाल इस समय कनेक्टी नेट वर्क पर सब से ज्याद जोर दे रहा है, ऐसे में ये प्रस्ताव उस के लिये बहुत अहम है. सामरिक दृष्टि से अहम इस ' कनेकटीविटी' के साथ साथ यह बात भी है कि चीन नेपाल के साथ आर्थिक रिश्ते तेजी से बढा रहा है और नेपाल को अपने आर्थिक विकास की बहुत जरूरत है. पिछले कुछ वर्षॉ मे नेपाल और चीन के बीच व्यापार नाटकीय रूप से बढा है. सात करोड़ 92 लाख और 60 लाख अरब डॉलर के साथ  चीन नेपाल का सबसे बड़ा निवेशक है. पिछले साल की दूसरी छमाही में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मे चीन की हिस्सेदारी 58 प्रतिशत थी जो कि भारत के 3 करोड़ 63 लाख 30 हजार डॉलर से निवेश के मुकाबले दुगनी थी. 

दरअसल इन तमाम हालात में भारत को नेपाल के साथ अपने रिश्तें को नये सिरे से परिभाषित करना होगा खास कर ऐसे मे जब कि दोनो के बीच प्राचीन सांस्कृतिक और सामाजिक रिश्तो की कड़ी का मजबूत पुल है ऐसे मे एक बार  भारत को नेपाल के साथ फिर से  भरोसा ्बहाल करना होगा. द्विपक्षीय सहयोग से चलने वाली विकास परियोजनाये समय से पूरी करनी होगी, रो बेटी के रिश्ते को मजबूत करने के लिये जनता के बीच रिश्ते मजबूत करने होंगे खास पर  ऐसे मेंजब कि ओली का कहना हैकि वह भारत और चीन दोनो के ही साथ रिश्तों में संतुलन बनाना चाहता है,तभी इस त्रिकोण की गुत्थी सुलझ सकेगी. साभार- लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)


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