नई दिल्ली, 17 अप्रैल, (शोभना जैन/वीएनआई) भारत से बढती दूरियों के बीच, चीन के करीब जा चुका माल्दीव अब पाकिस्तान से नजदीकियॉ बढा रहा है जो निश्चय ही हिंद महासागर क्षेत्र मे भारत की अहम भूमिका के लिये चिंता के संकेत है.
माल्दीव मे लागू आपातकाल के बाद उसने राष्ट्र्पति अब्दुल्ला यामीन के विशेष प्रतिनिधि के रूप मे मित्र देशो को गत फरवरी मे'चीन' जैसे मित्र देश साथ साथ अपने विदेश मंत्री मोहम्मद असीम को पाकिस्तान तो भेजा ही था और अब पिछले दिनो ही पाक सेनाध्यक्ष जनरल कमर बाजवा भी माल्दीव दौरे पर गये.दोनो देशो के बीच बढते सैन्य सहयोग के अलावा यह यात्रा खास तौर पर इस लिये भी अहम है क्योंकि आपातकाल और मानवाधिकारो के हनन को ले कर अंतर राष्ट्रीय जगत में अलग थलग पड़ते जा रहे माल्दीव के ्साथ जनरल बाजवा ने इस दौरे में इकोनोमिक आर्थिक जोन मे दोनो देशो के बीच संयुक्त गश्त के फैसले का भी एलान कर दिया गया. निश्चित तौर पर इस यात्रा ्से न/न केवल पाकिस्तान ने यामीन की सरकार को परोक्ष रूप से सही मान लेने का संकेत दिया है बल्कि एलान से जाहिर है कि चीन ,माल्दीव और पाकिस्तान के बीच मिलीभगत ्बढ रही है और इस मिलीभगत के मायने भरतीय समुद्री सीमा से सटे क्षेत्र मे भारत की मजबूत पकड पर असर पड़ने का अंदेशा स्वाभाविक है.
दरअसल भारत के आसपास हिंदमहासागर में ये नजदीकीयॉ भारत के लिये चिंता की बात हैं. वर्ष २०१६ मे माल्दीव ने भारत के साथ सैन्य सहयोग समझौता किया.इस क्षेत्र मे वह अपने विशाल समुद्री क्षेत्र की निगरानी केलिये भारत के साथ समुद्र तटीय रडार प्रणाली भी स्थापित करने वाला था इस के तहत भारत उसे इस काम के लिये कुछ हेलीकॉप्टर भी दिये जिस मे से एक उस ने हाल ही मे लौटा दिया. जनरल बाजवा के माल्दीव दौरे सहित यह ्तमाम घटनाक्रम चीन और पाकिस्तान के साथ बढती नजदीकियो की कड़ी का ही रूपहै,खास कर ऐसे मे जबकि पाकिस्तान और चीन के बीच गठबंधन विशेष तौर पर सैन्य गठ्बंधन तो जग जाहिर है ही. इस से यह भी संकेत है कि इंडिया फर्स्ट का जाप करने वाला माल्दीव संकेत दे रहा है कि अब उसे भारत की ज्यादा परवाह नही है. जनरल बाजवा पाकिस्तान मे एक कद्दावर हस्ती है, एक ऐसा सैन्य प्रमुख जो सिविल प्रशासन पर् हावी है और अमरीका के मुकाबले चीन से नजदी्कियों को तरजीह दे रहा है.न/न केवल चीन के साथ युआन मे व्यपार करने के फैसले मे उन की प्रमुख भूमिका रही बल्कि पाकिस्तान ने हाल ही मे चीन को वहा एक नौ सैन्य अडडा बनाने की मंजूरी दी.जनरल बाजवा पिछले चार सालो मे माल्दीव की यात्रा करने वाले पहले राष्ट्राध्यक्ष है.
चीन इन देशो मे मदद और कर्ज के नाम पर अपना जाल बिछा रहा है. माल्दीव मे भी उस ने वहा आधारभूत ढॉचा विकसित करने के लिये बड़े ढेके हासिल किये.माल्दीव की बाहरी मदद का 70 फीसदी हिस्सा अकेले चीन देता है और फिर बेल्ट एंड रोड इनिशियेटिव बी आर आई के बहाने माल्दीव सहित दक्षिण एशियायी देशो को लाभ मिलने की आड़ मे अपना जाल फैला चुका है. चीन पहले से ही अपना सैन्य बेस मालदीव में बनाने की जुगाड मे है, एक ऐसे वक्त में जब वो ्पाकिस्तान के ग्वादर, श्रीलंका के हमम्टोला में भी बेस बनाने की तरफ बढ़ रहा है. जिबूती में वो पहले ही बेस बना चुके हैं.उसे एक पूरा द्वीप सामरिक उद्देश्यों के लिए दे दिया इससे सारे अरब सागर और हिंद महासागर में उनका प्रभाव होगा. जिस पर भारत की चिंता ्स्वाभाविक है.चीन के माल्दीव से गहरे ्सामरिक हित जुड़े है और अपने विस्तारवादी मंसूबे के लिये चीन माल्दीव का जम कर इस्तेमाल कर रहा है, और इसी कड़ी मे उस ने पाकिस्तान को भी इस त्रिकोण मे शामिल किया है.
निश्चय ही मालदीव मे जारी राजनीतिक अस्थिरता का हिंदमहासागर क्षेत्र और भारत पर प्रभाव पड़ता है लेकिन इस समय भारत के लिये वो स्थतियॉ नही है जब कि भारत के लोकतांत्रिक छवि वाले पड़ोसी की वजह से ही तत्कालीन राष्ट्रपति गयूम ने भारत सरकार से अपनी लोकतांत्रिक सरकार बचाने के लिये मदद मॉगी और ३ नवंबर १९८८ को निर्वाचित गयूम सरकार का तख्ता पलट को बचाने के लिये तत्कालीन राजीव गॉ्धी ्सरकार ने 'ऑपरेशन केक्टस' के जरिये अपने १७०० सैनिक वहा भेजे थे. राजनैतिक अस्थिरता से गुजर रहे माल्दीव की स्थति पर सतर्क नजर रखने के साथ ही इस बार भारत ने वहा के विपक्ष द्वारा सीधे दखल की अपील के बावजूद सीधे दखल की तमाम संभावनाओ को सिरे से खारिज कर दिया. माल्दीव की आर्थिक और राजनैतिक स्थिति धीरे धीरे खस्ता हाल हो रही है, इस्लामी जिहादियो की समस्या से देश मे अशांति बढ रही है,यहा तक कि पर्यटन पर भी बुरा असर पड़ रहा है,वहा कट्टरपंथ तेजी से जोर पकड़ रहा है सीरिया के गृह युद्ध तक में मालदीव से लड़ाके गए। यहा यह बात भी समझना अहम होगा कि माल्दीव और पाकिस्तान दोनो ही इस्लामी राष्ट्र है.
अपने देश मे स्थतियॉ धीरे धीरे राष्ट्रपति यामीन के हाथो से बेकाबू होती जा रही है. हालत है कि अगले साल आम चुनावो के सिर पर आने से घबराये यामीन अपना ओहदा बचाने के लिये एक के बाद एक ऐसे अतिवदी कदम उठा रहे है जिस से वे न/न केवल अपने देश मे लोकतंत्र का गला घोट कर अपनी ही जनता को आशंकित कर रहे है, और इससे वहा जनाक्रोश बढ रहा है साथ ही चीन जैसे देशो को छोड कर ब्रिटेन, अमरीका सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी उन की आलोचना कर रहा है .यहा यह बात भी ध्यान देनी वाली है कि पाकिस्तान में दक्षेस सम्मेलन का भारत द्वारा बहिष्कार करने के ऐलान पर मालदीव ही एकमात्र ऐसा देश था जिसने इस आह्वान पर अनिच्छा जताई थी. लगभग दस साल पहले चीन ने हिंद महासागर में समुद्री दस्युओ से निबटने के अभियानों की दलील देकर नौसेना जहाजों को भेजना शुरू किया और वहा सैन्य जमावड़ा जमा लिया. माल्दीव सामरिक दृष्टिकोण से भारत के लिए खासा महत्पूर्ण है। मालदीव के पानी के समुद्री रास्तों से भारत, चीन और जापान को एनर्जी सप्लाई की जाती है।सुरक्षा और रक्षा क्षेत्र के लिहाज से भी भारत के लिए मालदीव अहम है। है ऐसे मे तीनो के बीच बढती नजदीकियॉ भारत के लिये चिंता की बात तो है ही। साभार- लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)
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