विदेश में भारतीय दूतावासः घर से दूर एक और घर

By Shobhna Jain | Posted on 9th Oct 2020 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली,9 अक्टूबर ( वीएनआई) स्थान... पाकिस्तान में इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग ...पाकिस्तान में जबरन शादी का जाल  बिछा कर फंसा कर लाई गई एक भारतीय युवती उजमा अहमद, दुष्टों के चंगुल से किसी तरह से बचती बचाती घबरायी, सहमी मदद पाने की गुहार में किसी तरह इस्लामाबाद स्थित भारतीय दूतावास में तत्कालीन उप उच्चायुक्त जे पी सिंह के कार्यालय जा पहुंची.उस की हकीकत पता करने के बाद दूतावास ने उसे शरण दी और काफी जद्दोजहद के बाद  उसे स्वदेश में उस के घर पहुंचाया. तीन वर्ष पूर्व की यह घटना, सुषमा जी और सिंह के साथ परिजनों के बीच घर वापसी से संतोष वाले  भावों के साथ मुस्कराहट भरा उस  युवती का चेहरा आज भी यादों  में हैं. इस स्मरण के साथ ही याद आयी तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की वह टिप्पणी जिस में उन्होंने विदेशों में ्स्थित भारतीय दूतावासों के बारे में  कहा था " विदेशों में प्रवासी भारतीयों के लियें भारतीय दूतावास अपने  घरों से दूर उनके अपने  ही घर होते हैं."पिछले लगभाग दो दशकों से अंतर राष्ट्रीय विषयों पर लिखने के दौरान विदेश सेवा के ऐसे  अनेक  मानवीय, कर्मठ, देश हित में लगें  चेहरों, उन की अनथक सेवा की कार्य पद्धति को नजदीक से देखने का ्मौका मिला. निश्चय ही इन के कार्यों ने  दुनिया भर में भारत की एक प्रखर पहचान बनाई,डिप्लोमेसी की जटिलताओं के  बीच  राष्ट्रीय हितों को  शिद्दत से उठाया,जिस से विश्व बिरादरी में भारत की एक सशक्त पहचान बनी, और  बरसों बरस से यह सिलसिला और भी गतिशीलता  आगे परवान चढ रहा  हैं."भारतीय विदेश सेवा आई एफ एस के ७४ वें स्थापना दिवस पर  सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी  से चर्चा के दौरान इन की कार्य पद्धति नजदीक से देखने से जुड़ी कितनी ही घटनायें स्मरण हो आयी.अधिकारी का  कहना हैं"वास्तव में यह सेवा वैश्विक मंचों पर भारत के अग्रणी सैनिक के रूप में कार्य करती है. यह देश की रक्षा की पहली पंक्ति है, विश्व में भारतीय हितों का माध्यम होने के साथ र विदेश में देश के आर्थिक हितों का साधन है. यही नहीं यह सेवा भारत की जीवंत संस्कृति और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए भारतीय प्रवक्ता है." कोरोना के कारण बदली दुनिया के इस दौर में भारतीय विदेश सेवा ने अपने कार्यों से पूरी दुनिया को यह संदेश गया है कि भारत का अपना मानवतावादी दृष्टिकोण अटल है इससे दुनिया के सामने एक सॉफ्ट पॉवर  बनकर उभरा है, जो शक्ति नहीं, बल्कि शांति और जगत के कल्याण के जरिए विश्वगुरू बनने की ओर अग्रसर है और इस में  भारतीय विदेश सेवा का अतुल्नीय योगदान हैं.

दरसल यह सेवा विदेशों के मुसीबतजदां,  लोगों के लियें अन्य भारतीय एजेंसियों के साथ मिल कर एक चेन सी बन कर उन की मानवीय और अन्य मदद करने में भी अग्रणी भूमिका निभाने कर भारत की' वसुधैव कुटुबंकम" की भावना से साक्षात्कार कराने में  एक बेहद अहम भूमिका निभाती हैं, जिस से  देशों के बीच रिश्तों के तार मजबूत होते हैं और नयें रिश्तें जुड़ते हैं.रिश्तों में जटिलता आने पर उन्हें कूटनीतिक कौशल से सुलझानें  में इन की भूमिका और भी अहम होती हैं.  इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर भारतीय विदेश सेवा को शुभकामनाएं देते हुए लिखा है कि 'विदेश सेवा के अधिकारियों द्वारा विश्व स्तर पर राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाना सराहनीय है. वंदे भारत मिशन और कोविड से संबंधित अन्य प्रयासों के दौरान हमारे नागरिकों एवं अन्य देशों के लिए इस सेवा की मदद उल्लेखनीय है' इस मौके पर  आई एफ एस रहें तथा राजग की पिछली सरकार में विदेश सचिव रहे और वर्तमान में भारत के विदेश मंत्री का पदभार संभाल रहे डा. एस जयशंकर ने ट्वीट कर  शुभकामनाएं देते हुए कहा " हम हमेशा बढ़े हैं, वर्तमान चुनौतियां हमें और भी अधिक मजबूत बनाती हैं. कोविड समय में आपके समर्पण और परिश्रम की विशेष रूप से सराहना की जाती है। जिस तरह से आपने वर्चुअल डिप्लोमेसी को अपने अनुकूल बनाया वह सराहनीय है।'

 विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने भी ट्वीट कर विदेश सेवा के अधिकारियों के शानदार कार्यों के लिए उन्हें बधाई दी.

गौरतलब हैं कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के एक निर्णय द्वारा वर्ष 1946 में अस्तित्व में आई इस सेवा का सफर स्वतंत्र भारत के साथ शुरू हुआ, जो आज नए भारत के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है.  

एक पूर्व राजनयिक के अनुसार" विदेश में भारत और भारतीयों के हित को ध्यान में रखकर बनाई गई इस सेवा का कौशल, लचीलापन, नवाचार और समर्पण की भावना वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान स्पष्ट हो गई है।
 कोरोना के कारण विश्व के तमाम देशों में लगाए गए लॉकडाउन की वजह से बहुत से भारतीय विदेश में फंसे हुए थे और परेशान हो रहे थे। जिसको देखते हुए भारत सरकार ने अपने नागरिकों को वापस लाने का फैसला किया और एक अभियान की शुरुआत की। जिसे वंदे भारत मिशन नाम दिया गया। सात मई से शुरू हुए इस अभियान के तहत खाड़ी देशों और पड़ोसी देशों के साथ-साथ अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर के लिए विशेष विमान भेजे गए।

इस मिशन के तहत सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन कराते हुए 16 लाख से ज्यादा भारतीयों को अब तक वापस लाया जा चुका है। यह अभियान 200 भारतीय मिशन और विदेशों में स्थित पदों तथा देश में स्थित मंत्रालय में विभिन्न पदों पर कार्य कर रहे भारतीय विदेश सेवा के 1000 अधिकारियों की मेहनत के कारण सफल हो पाया। इस अभियान ने भारत की सबसे बड़ी कूटनीतिक पूंजी यानी भारतीय डायस्पोरा में भारत के प्रति निष्ठा का भाव मजबूत किया है.ऐसे ही कितने अभियान विदेश मंत्रालय द्वारा चलाये गये इसी तरह से ऑपरेशन समुद्र सेतु में भी भारतीय विदेश सेवा का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 8 मई को नौसेना द्वारा चलाए गए इस अभियान का उद्देश्य कोरोना के कारण श्रीलंका, मालदीव, ईरान में फंसे हमवतनों की वापसी थी भारतीय नौसेना के पोत जलाश्व (प्लेटफॉर्म डॉक), ऐरावत, शार्दुल और मगर (लैंडिंग शिप टैंक) ने इस अभियान में भाग लिया जो 55 दिन तक चला और समुद्र में 23 हजार किलोमीटर से अधिक दूरी तय कर 4 हजार भारतीयों को वापस लाया गया। नौसेना और भारतीय विदेश सेवा के अधिकारियों द्वारा व्यापक योजना के साथ उठाए गए कदमों का नतीजा रहा कि यह अभियान भी पूरी तरह से सफल हुआ।

इन अभियानों से जुड़ें एक अन्य अधिकारी के अनुसार "कोरोना के कारण जब दुनिया में लॉकडाउन लग गया, तब विश्व भर के भारतीय राजनयिक मिशन खुले रहे। किसी देश में वह आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति खरीद रहे थे, तो कहीं वैक्सीन प्रदाताओं के साथ बातचीत कर रहे थे। यही नहीं भारतीय विदेश सेवा के अधिकारियों और उनकी टीमों ने 150 से अधिक देशों को कोरोना के उपचार में सहायक हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवाएं प्रदान की हैं। भारतीय विदेश सेवा की इस मेडिकल कूटनीति ने पूरे विश्व को यह संदेश दिया है कि भारत वैश्विक स्वास्थ्य को वैश्विक मानवाधिकार के रूप में देखता है। यही नहीं मेडिकल कूटनीति के जरिए भारत सार्क देशों को एक बार फिर एक मंच पर साथ लाने में सफल रहा.स्टिंग भारत की तरफ से 'सार्क कोविड-19 इमरजेंसी फंड' में सार्क क्षेत्र के देशों को  २३ लाख अमेरिकी डॉलर की राशि की आवश्यक दवाओं, चिकित्सा उपभोग्य सामग्रियों, कोविड सुरक्षा और टे किट तथा अन्य उपकरणों की आपूर्ति उपलब्ध कराई गई। सार्क के मंच से भारत ने दक्षिण एशियाई देशों को यह संदेश भी दिया कि वह हमेशा की तरह “पड़ोसी प्रथम” की नीति पर ही चल रहा है।यह अपने उच्चतम रैंक वाली महिलाओं के साथ समान अवसर नियोक्ता भी है. अभी तक तीन प्रखर महिलायें विदेश सचिव के पद को ्सुशोभित कर चुकी हैं.
विदेश सेवा और दूतावास की अहमियत समझने का एक  और दिलचस्प उदाहरण...दूतावासों द्वारा विदेशों मे अप्रवासी भारतीयों की मदद को ले कर सुषमा स्वराज  जी से जब एक व्यक्ति ने मजाक के अंदाज में कहा" मैं मंगल ग्रह पर फंसा हुआ हैं, क्या आप मदद दिलवायेंगी" हाजिर जबाव सुषमा जी ने कहा"अगर हमारा कोई भारतीय किसी भी ग्रह पर फंसा हुआ हैं तो भी वहा  भारतीय दूतावास आपकी मदद करेगा"...वी एन आई


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