नई दिल्ली, 02 जून, (शोभना जैन/वीएनआई) मोदी सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर जहां सरकार के काम काज का लेखा जोखा लिया जा रहा है वहां विदेश नीति के विशलेषण के तहत मोदी सरकार की 'नेबरहुड पॉलिसी फर्स्ट' यानि आस पास पड़ोसी देशों के साथ रिश्तें भी सवालों के दायरे में है.
पाकिस्तान,नेपाल,बंगलादेश,म्यांमार,श्रीलंका,अफगानिस्तान, भूटान, माले के साथ- साथ चीन के साथ रिश्तों मे क्या नजदीकियॉ बढी या दूरियॉ?.प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चार वर्ष पूर्व दक्षेस देशों के राष्ट्राध्यक्षों को सरकार के शपथ ग्रहण समारोह मे बुला कर जिस 'नेबरहुड पॉलिसी फर्स्ट' की शुरूआत की थी, वह समय की कसौटी पर कितनी खरी उतरी? खास तौर पर ऐसे मे जबकि चीन इस क्षेत्र मे अपना दबदबा बढाते हुए भारत के पड़ोसी देशों के साथ लगातार अपनी नजदीकियॉ बढा रहा है और एक बड़ी आर्थिक शक्ति के ना्ते वहां इन देशों की आर्थिक प्रगति मे सहयोग दे कर अपना वर्चस्व बढा रहा है.भारत जो इस क्षेत्र की बड़ी शक्ति है, वह भी इन देशो के विकास मे आर्थिक सहयोग देने के साथ साथ पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को प्राथमिकता देते हुये "सबसे पहले पड़ोसी की नीति" अपना रहा है. इस माहौल मे उस के इन देशों के साथ रिश्ते कैसे है?, विशेष तौर पर कुछ देशों के साथ परि्स्थतियाँ भारत के लिये चिंताजनक है, ये कुछ सवाल उभरते है, और फिर निकट पड़ोसी पाकिस्तान की बात करें तो उस के साथ एक कदम आगे और दो कदम पीछे वाले रिश्तों के समीकरणों के चलते इस अवधि में एक बार फिर भारत के पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुलझने से ज्यादा उलझते ज्यादा नजर आ रहे है. भारत की तमाम पहल के बावजूद रिश्तों मे ्गाँठ न/न केवल बनी रही बल्कि बार बार और कसती गई. कुल मिला कहें तो सवाल उठता है कि सरकार की पाकिस्तान नीति पर क्या पुनर्विचार होना चाहिये?
प्रधानमंत्री मोदी इन चार सालों मे माले को छोड़ कर सभी देशों के साथ कई मर्तबा आपसी समझ बूझ बढाने और आपसी रिश्तो को मजबूत करने के एजेंडा के साथ कई बार इन देशो की यात्रा भी कर चुके है, पाकिस्तान ही एक मात्र ऐसा देश है जिस की उन्होनें द्विपक्षीय यात्रा नही की है अलबत्ता वे रिश्तों मे जमी बर्फ को पिघलाने के एजेंडा से वे वहा की एक अत्यंत संक्षिप्त यात्रा कर चुके है हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी की रूस के साथ साथ पड़ोसी चीन और बंगलादेश के राष्ट्राध्यक्षों के साथ हुए अनौपचारिक शिखर सम्मेलन को इन देशों के नेतायों बीच अनौपचारिक माहौल मे आपसी समझ बूझ बढाने की मंशा से सफल माना गया. नेपाल के साथ काफी समय से चल रहे शकशुबहे के माहौल से निकलने के दौर मे प्रधान मंत्री मोदी की गत माह की नेपाल यात्रा,जिसे धार्मिक डिप्लोमेसी भी कहा गया, भरोसा बहाल करने की दृष्टि से सफल मानी गई, चीन के साथ नेपाल के लगातार बढते आर्थिक रिश्तो के बाद ऐसा लग रहा है कि नेपाल के साथ प्रारंभिक अति प्रगाढ रिश्तों का दौर भले ही नही ्हो लेकिन रिश्ते सामान्य होने की तरफ बढ रहे है भूटान और अफगानिस्ता्न के साथ रिश्ते जहा सहज रहे वही चीन और माले के बीच बढती नजदीकियों विशेष तौर पर चीन द्वारा वहा भारी आर्थिक सहायता और निवेश की आड़ मे वहा अपना दबदबा बनाये जाने और माले द्वारा भारत ्से दूरियॉ बनाये जाने के बाद दोनो परंपरागत प्रगाढों वाले देशो के बीच दूरियॉ आई हालांकि वो शुरूआती तल्खियॉ अब नही है लेकिन माले के साथ रिश्तों मे दूरियॉ बनी हुई है.
मोदी सरकार की पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने की तमाम पहल के बावजूद पाकिस्तान के अमैत्रीपूर्ण आचरण की वजह से मोदी सरकार की पाकिस्तान नीति प्रश्न चिन्ह बन गई और सवालों के घेरे मे रही है. उस के साथ उलझते रिश्तो के बाद और भारत की रिश्ते सामान्य बनाने की तमाम पहल के बाद अब हाल ही में उस की तरफ से शांति के पैगाम की खबरें आ रही है इसी सप्ताह दोनो देशों के डीजीएमओ के बीच हुई बातचीत मे २००३ मे लागू युद्ध विराम को पूरी तरह से लागू करने पर सहमति हुई. गौरतलब है कि इस वर्ष के पहले तीन माह में जम्मू कश्मीर मे वास्तविक नियंत्रण रेखा और अंतराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान द्वारा युद्ध विराम का सब से ज्यादा उल्लंघन के मामले हुए. सीमा पार के आतंकवाद, कुलदीप जाधव, सिंधु जल समझौता और फिर हाल ही में गिलगित ,बालिस्तान जैसे पाक कब्जे वाले कश्मीर के प्रदेशो को अधिक स्वायत्तता देने और धीरे धीरे उन्हे अपना पॉचवा सूबा घोषित करने की साजिश हालांकि पाकिस्तान की ना पाक मंशा ही साबित करते है. यहां यह भी देखना होगा कि ऐसे मे जबकि अगले माह पाकिस्तान में चुनाव होने वाले है,ऐसे में शांति का यह पैगाम क्या रंग लाता है?... इस का जबाव तो भविष्य के गर्भ में ही छिपा हुआ है.भारत साफ तौर पर कहा है कि बंदूको की आवाजों के बीच वार्ता नही हो सकती है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा है कि एक तरफ सीमापार जब जनाजे उठ रहे हो तो वार्ता कैसे हो सकती है. बहरहाल अगर युद्ध विराम सफल रहता है तो निश्चय ही दोनो देशो के रिश्तों के लिये यह अच्छा होगा. .
बांग्लादेश देश और श्रीलंका के साथ भी इस दौरान संबंध सहज रहे हालांकि बंगलादेश के साथ रोहिंग्या मुद्दे को ले कर दोनो देशों के बीच असहमति के मुद्दे रहे, बंगलादेश का आरोप था कि भारत इस मुद्द्दे पर खुल कर उस का साथ नही दे रहा है, या यूं कहे उस का आरोप था कि वह म्यांमार का साथ दे रहा है लेकिन इसी माह विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बंगलादेश यात्रा के दौरान खुल कर रोहींग्या शरणार्थियों की म्यांआर वापसी और वहां उनके रहने के लिये सुरक्षित माहौल दिये जाने की घो्षणा का बंगलादेश ने स्वागत किया है. चीन के साथ रिश्ते भी डॉकलोम के बावजूद सहज बनाने के प्रयास जारी रहे. इसी क्रम मे प्रधानमंत्री मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ आपसी रिश्तो की डिप्लोमेसी से संबंध सहज बनाने का प्रयास किया. सीमा पर शांति बनाये रखने के लिये दोनो देशो की सेनाओ के बीच सामरिक दिशा निर्देश भी तय हुये लेकिन परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह 'एनएसजी' मे भारत की सदस्यता को ले कर् तथा आतंकी हाफिज सईद को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा आतंकी घोषित किये जाने को ले कर चीन की अडंगेबाजी, 'बीआरआई' परियोजना जैसे मुद्दो पर चीन के विरोधी तेवर बने रहे. साभार - लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)
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