नई दिल्ली, 21 अप्रैल, (शोभना जैन/वीएनआई) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस सप्ताह 'पहले भारत नॉर्डिक शिखर सम्मेलन' मे हिस्सा लेने से साफ जाहिर है कि काफी दिनो से बिसरा दिये गये और पिछले कुछ वर्षो से नकारत्मक कारणो से ज्यादा चर्चित रहे भारत नॉर्डिक देशो के रिश्तो के सहयोगी पक्ष को एक बार फिर प्राथमिकता एजेंडे पर लाया जा रहा है.
इस सप्ताह भारत स्वीडन सहयोग से स्टॉकहोम मे आयोजित इस शिखर सम्मेलन मे स्वीडन, डेनमार्क,नॉर्वे,आइसलैंड, फिनलैंड ने हिस्सा लिया, जिस में दोनो ने नये जोश से आपसी भागीदारी बढते हुए इनोवेशन , स्मार्ट सिटीज़, नवीकरणीय ऊर्जा, व्यापार, विकास, वैश्विक सुरक्षा, निवेश और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रो मे मिल कर काम करने पर सहमति व्यक्त की. अनुमान है कि उपरोक्त क्षेत्रो मे इस साझीदारी के साथ डिजीटल क्षेत्र मे अग्रणी माने जाने वाले इन देशो के सहयोग से भारत के स्किल इंडिया, क्लीन इंडिया, क्लीन टेक्नॉलोजी जैसे डिजिटल कार्यक्रमों को भी नयी गति मिल सकेगी. उत्तरी यूरोप के उच्च आय वाले इन देशो के साथ कुल मिला कर अब तक लगभग 5.3 अरब डॉलर का व्यापार होता है और इन देशो के साथ भारत मे कुल मिला कर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 2.5 अरब ्डॉलर का है जिस के निश्चित तौर पर इस से निवेश बढने और विशेष तौर पर युवाओ के लिये रोजगार के अवसर भी बढ सकने की उम्मीद जताई गई है.
दरअसल 1990 के दशक के बाद से तत्कालीन वाजपेयी और मनमोहन सिंह सरकारो के लिये नॉर्डिक देशो के साथ संबंध प्राथमिकता के नही रहे. पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद से नॉर्डिक देशो के निरश्स्त्रीकरण पर अपनाये गये रवैये को ले कर ये संबंध काफी खराब हो गये. इन देशो का तर्क था कि वह भारत तथा विकासशील देशो को वे जो विकास सहायता देते है उसे परमाणु हथियार बनाने पर इस्तेमाल नही की जाये और अन्ततः दूरियाँ बढती गयी और भारत ने इनसे ली जाने वाली विकास सहायता लेनी बंद कर दी. यह यह कहना भी गलत नही होगा कि उस अध्याय के बाद पिछले काफी वर्षो से भारत व इन देशो के रिश्ते सहयोगी से ज्यादा गलत कारणो से चर्चा मे रहे है. स्वीडन से मिली बोफोर्स तोपो की खरीद से जुड़ा ्भ्रष्टाचार विवाद अब तक थमने का नाम नही ले रहा है. वर्ष 1995 मे बंगाल के पुरूलिया मे हथियार गिराने के दोषी पाये गये डेनमार्क के एक नागरिक किम डेवी के भारत को सौपे लेकर भारत और डेनमॉर्क के रिश्तो मे तनाव आया और अभी हाल के वर्षो मे नॉर्वे मे भारतीय दंपति ्पर अपने बच्चे ्का सही तरह से पालन पोषण नही करने के आरोपो के बाद उनका बच्चा नॉर्वे सरकार द्वारा अपने संरक्षण मे लिये जाने ्के मामले मे दोनो देशो की सरकारे आमने सामने दिखी. प्रेक्षको का मानना है कि ्भ्रष्टाचार, आतंकवाद और मानवाधिकारो को ले कर यूरोप सहित इन देशो के दोहरे माप दंडो को ले कर अविश्वास तो बना ही, लेकिन अब स्थतियॉ बदल रही है
दरअसल नॉर्डिक देश मुक्त व्यापार रहते हुए ्सामाजिक कल्याण वाले राष्ट्र की धारणा को साकार करने का बेहतरीन उदाहरण है और इस संतुलन से इन देशो का आर्थिक विकास भी तेजी से हुआ. वोल्वो, नोकिया जैसी कंपनियॉ इन्ही देशो की है. इ्सी अवधारणा के चलते इन देशो की ्सामाजिक आर्थिक प्रगति भी गौर करने लायक है. इन सभी देशो मे औसत आयु 80 वर्ष है एक और गौर करने वाली बात... शिक्षा, स्वास्थ्य, लैंगिक समानता जैसे क्षेत्र मे न/न केवल मे ये विश्व के सर्वाधिक विकसित देशो की सूची मे है बल्कि विश्व प्रसन्नता सूची मे भी फिनलैंड, नॉर्वे, डेनमार्क और आईसलैंड पहले चार देशों मे है, उम्मीद कई जा रही है कि इस बढती साझीदारी से दोनो को ही लाभ होगा.
यह शिखर सम्मेलन ऐसे महत्वपूर्ण समय में हुआ है जब नॉर्डिक देश वैश्विक मंच पर भारत की प्रमुख भूमिका चाहते है. वास्तव में, नॉर्डिक देशों को यूरोपीय संघ के साथ समझौते करने की बजाय भारत को अहमियत देना ज्यादा लाभप्रद लग रहा है, इसलिये 'भारत-नॉर्डिक शिखर' नॉर्डिक देशों के लिए भारत के साथ व्यापार करने का बहुत बड़ा अवसर है। वैसे तो नॉर्डिक देशों की आबादी करीब 2 करोड़ 70 लाख है फिर भी यूरोपीय संघ के साथ इनका मुक्त व्यापार का समझौता सालों से चला आ रहा है, जबकि इसके नतीजे उनके लिये ज्यादा उत्साहवर्द्धक नही रहे हैं। इसके अलावा, नॉर्डिक सरकारों को यह भी विश्वास है कि आने वाले वर्षों में चीन की तुलना में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसलिए भारत की 23 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के प्रति उनका झुकाव जगजाहिर है। यह दूसरा मौका है जब पांच नॉर्डिक देशों ने किसी एक देश (भारत) के साथ ्शिखर बैठक की। इससे पहले उनकी पहली बैठक तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ हुई थी। वैसे विगत 30 वर्षों के बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री स्वीडन गये. जिस मे उन्होने शिखर बैठक मे हिस्सा लेने के अलावा स्वीडन का द्विपक्षीय दौरा भी किया. जिस मे आपसी सहयोग बढाने के महत्वपूर्ण फैसले भी किये गये.
एक वरिष्ठ राजनयिक के अनुसार 'मेक इन इंडिया' मिशन में स्वीडन शुरू से ही भारत का मज़बूत भागीदार रहा है। उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर भारत में विकास से बन रहे अवसरों में यह स्वीडन और भारत दोनो देशो के लिये विन-विन साझेदारी है इसके इर्द-गिर्द ही दोनों देशों ने एक नवोन्मेष साझेदारी और संयुक्त कार्य योजना पर सहमति जताई है। यहाँ यह जानना दिलचस्प होगा कि स्वीडन ज़ीरो टॉलरेंस गार्बेज यानि कूड़ा करकट मुक्त देश बन चुका है,्वह इस कचरे से बिजली बनाता है. भारत मे न/न केवल नयी स्मार्ट सिटी की परियोजनाओ मे यह सहयोग लाभकारी होगा बल्कि कचरे से जूझ रहे हमारे कस्बो, गाँवो और शहरो के लिये भी यह सहयोग लाभकारी साबित हो सकता है.
इसके अलावा, दोनों देशों ने रक्षा और सुरक्षा सहयोग को भी बढ़ाने का निर्णय लिया है, क्योंकि रक्षा क्षेत्र में स्वीडन लंबे अरसे से भारत का साझेदार है। भविष्य में भी परस्पर सहयोग से रक्षा उत्पादन में कई नए अवसर पैदा होने वाले हैं। दोनों देशों ने सुरक्षा सहयोग, विशेषकर सायबर सुरक्षा सहयोग को और मज़बूत करने का निर्णय लिया है और इस बात पर भी सहमत हुए हैं कि उनके द्विपक्षीय संबंधों का महत्व क्षेत्रीय और वैश्विक पटल पर भी हो, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर स्वीडन और भारत एक-दूसरे के क़रीबी सहयोगी हैं जो आगे भी जारी रहेगा।
इस शिखर बैठक के बाद लगता है कि इन देशों के साथ अब भारत की कारोबारी, कूटनीतिक और सामरिक नजदीकियां और बढ़ेंगी क्योंकि ये देश भी अपने व्यावसायिक हित के लिए अमेरिका के विकल्प के रूप में भारत की ओर देख रहे हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं कि स्वच्छ प्रौद्योगिकियों, पर्यावरण हल, बंदरगाह आधुनिकीकरण, कोल्ड चेन, कौशल विकास और नवोन्मेष में नॉर्डिक देशों की दक्षता विश्व मान चुका है और अब इस का लाभ भारत भी उठा चुका है. स्वीडन की कंपनियों ने अगले दो साल में भारत में 1.1 अरब डॉलर का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई है। पिछले तीन साल के दौरान स्वीडन की कंपनियां पहले ही भारत में डेढ़ अरब डॉलर का निवेश कर चुकी हैं।
बहरहाल, भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका के मद्देनजर स्वीडन जैसे देश चाहते हैं कि बदलती दुनियादारी के बीच भारत भी अपनी प्रभावी रणनीतिक भूमिका निभाए. नॉर्डिक देशो ने इस के साथ ही भारत की परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता की मांग का समर्थन करते हुए नई दिल्ली के 'वासेनार अरेंजमेंट' एवं मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था समेत हाल में अंतरराष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था में शामिल होने का स्वागत किया। साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार और सुधार के बाद उसमें भारत की स्थायी सदस्यता का भी समर्थन किया और भारत को इस के लिये प्रबल दावेदार माना । गौरतलब है कि 48 सदस्य देशों वाले परमाणु समूह में भारत की सदस्यता का मुख्य रूप से चीन यह कहते हुए विरोध कर रहा है कि भारत ने अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है।
जैसा कि शिखर सम्मेलन के बाद जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया, 'प्रधानमंत्रियों ने भारत और नॉर्डिक देशों के बीच सहयोग बेहतर बनाने की ्प्रतिबद्धता जाहिर की और वैश्विक सुरक्षा, आर्थिक वृद्धि, नवोन्मेष एवं जलवायु परिवर्तन से जुडे अहम मुद्दों पर अपनी चर्चा को फोकस किया। उन्होंने माना कि नवोन्मेष एवं डिजिटल बदलाव एक-दूसरे से जुड़ी इस दुनिया में वृद्धि की संभावनाएं बढ़ाता है, जो भारत एवं नॉर्डिक देशों के बीच बढ़ते संबंधों में काफी अहम है' । यह तय है कि अब नॉर्डिक देशो के साथ प्राथमिकता के आधार पर रिश्ते बढाने का उचित अवसर है. साभार- लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)
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