नई दिल्ली, 25 अगस्त, (शोभना जैन/वीएनआई) पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अंंत्येष्टि में हाल ही में भूटान नरेश जिग्में के वांगचुक नामग्याल अपने देश की तरफ से संवेदना जताने भारत आये, निश्चय ही भूटान के शीर्ष नेता की गमी के इस मौके पर "किसी खास अपने" जैसी मौजूदगी से एक बार फिर भारत-भूटान के प्रगाढ रिश्तों की झलक मिलती है.
दरअसल भारत के कुछ पड़ोसी देशो के साथ रिश्तों को लेकर एनडीए सरकार के कार्यकाल की "सकारात्मक पहल' के अपेक्षित नतीजे नही निकलने से जहां इन देशो के साथ रिश्तों को पुनः परिभाषित करने का विचार जोर पकड़ता जा रहा है, ऐसे दौर मे कहा जा सकता है कि भूटान भारत के रिश्ते कुल मिला कर समय की कसौटी पर खरे उतरे है लेकिनइस बात पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है कि समय अब बदल रहा है, अब भारत को भूटान के साथ पड़ोसी धर्म थोड़ा संभल कर सतर्क हो कर उठाना होगा. चीन दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र खास तौर पर भारत के आस पड़ोस में अपना दबदबा और गतिविधियां बढा रहा है. भूटान से हालांकि पूरे प्रयासों के बावजूद वह अभी तक उस के साथ राजनयिक संबंध नही कायम कर पाया है लेकिन निश्चय ही हिमालय क्षेत्र मे बसा एक छोटा सा देश चीन के लिए रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है. पाकिस्तान की बात अगर छोड़ भी दे तो चीन अब ्नेपाल, माल्दीव और श्री लंका जैसे भारत के पड़ोसी देशो के बाद तेजी से ्भूटान की तरफ कदम बढ़ा रहा है। भूटान ही एकमात्र भारत का ऐसा पड़ोसी देश है जिसने चीन की तमाम तरकशों को ्झेलते हुए भी चीन की महत्वा कांक्षी बीआरआई परियोजना (बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव) हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है, भारत इस परियोजना का विरोध करता रहा है क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से गुजरने वाली है जो कि सीधे तौर पर भारत की संप्रभुता पर हमला है।ऐसे मे इस मुद्दे पर भूटान का साथ आपसी भरोसा बढाता है.
दस वर्ष पूर्व लोकतंत्र को अपनाने वाले भूटान में बहुत जल्द ही तीसरे आम चुनाव होने जा रहे है. आगामी १५ सिंतबर को प्राथमिक स्तर का तथा और १८ अक्टुबर को आम चुनाव होने को है, ऐसे मे भूटान में चारो प्रमुख राजनैतिक दलों सहित चुनावी पारा गर्म है. इसी क्रम मे यह जानना अहम है कि चीन के उप विदेश मंत्री कॉन्ग शुआंयू ्पिछले दिनों एकाएक भूटान की राजधानी थिम्फू पहुंचे। उन्होंने भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग टोबगे से मुलाकात भी की। इसी क्रम मे जानना अहम है कि इससे पहले भारत में चीन के राजदूत लुओ शाओहुई भी भूटान की यात्रा कर चुके हैं। जाहिर है चीन की भूटान पर बढती दिलचस्पी पर भारत की भी नजरे है.भू्टान के प्रधान मंत्री शेरिंग टॉगबे भारत समर्थक माने जाते है. उन का कार्यकाल सफल माना जाता है और उन की आर्थिक नीतियों का असर भी देश की अर्थ व्यवस्था पर सकारात्मक दिखाई दिया है.इस पृष्ठभूमि में वहा इस वक्त ्कतिपय भारत विरोधी ता्कते भारत के पड़ोसी धर्म को "बिग ब्रदर" की शक्ल देने पर उतारू दिखाई दे रहे है. हाल ही में भारत की बॉर्डर रॉड ऑर्गेनाईजेशन संस्था जो कि भूटान मे 'दॉतक'परियोजना के नाम से सड़के बनवाने मे सहयोग करती है, उसे ले कर भारत विरोधी ताकतो ने यह कह कर हवा दी कि बीआरओ पर लगा भारतीय तिरंगा अपना वर्चस्व दिखाने के लिये लगाया है. ऐसे भारत विरोधी कई और मामले पहले भी हो चुके हैं. खास तौर पर चुनाव से पूर्व भूटान के राजनैतिक समीकरणो के देखे तो एक प्रमुख प्रतिपक्षी दल 'डी पी टी' के अध्यक्ष पेमा ग्याम्त्शो भूटान की सुरक्षा और प्रभुसत्ता पर खतरे का हव्वा खड़ा कर भूटान के हितों की रक्षा की बात कर रहे है.एक और अहम बात यह है कि चुनाव भारत चीन के बीच हुए चर्चित डॉक्लाम तनाव के बाद हो रहे है जिसे भूटान अपना हिस्सा मानता रहा है. इस के साथ ही पेमा भूटान ्की ऐसी विदेश नीति पर जोर दे रहे है जो स्वतंत्र हो और भारत पर ज्यादा निर्भर नही हो उसी तरह कुछ और प्रतिपक्षी दल भी ऐसा ही राग अलाप रहे है.
दरअसल चुनाव के बाद जो भी सरकार बने उसे इस बात पर ध्यान देना होगा कि भारत के साथ संबंधों के स्वरूप पर पूरा ध्यान देना होगा, भारत के साथ उन के कैसे रिश्ते रहे है, इस पर उसे खास ध्यान देना होगा.डॉकलाम के बाद भूटान चीन की इस क्षेत्र मे विस्तारवादी रवैये को ले कर वैसे भी काफी सतर्क है डोकलाम रणनीतिक रूप से भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है और पिछले साल वहां पर काफी समय के तक भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने आ गई थीं। बहरहाल इस पृष्ठभूमि मे भारत को फिलहाल सतर्क हो कर कदम उठाना चाहिये, साथ ही उसे दीर्घ कालिक कदम बतौर भी भूटान के लिये अपनी नीतियो का आकलन करना चहिये.पड़ोसी धर्म तो निभाये लेकिन जब तब उस पर "चौधराहट' का जो आरोप "सुविधा' से लगा दिया जाता है,उस से सतर्क रहे. भूटान की आर्थिक मदद, विकास सहायता के साथ ही मौजूदा हालात को देखते हुए विकास योजनाये इस तरह से लागू करे जिस से भूटान को सीधा और त्वरित लाभ मिले.वहा जल विद्युत परियोजनाये तेजी से पूरी करनी चाहिये जिस से भूटान पर बेवजह ऋण का बोझ नही बढे और सीमा व्यापार भी बेहतर करने पर ध्यान दे. साभार - लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)
No comments found. Be a first comment here!