नई दिल्ली, 01 अक्टूबर, (शोभना जैन/वीएनआई) माल्दीव के हाल के राष्ट्र्पति चुनाव मे देश की जनता ने अपने देश में राजनैतिक अस्थिरता और लोकतांत्रिक संस्थाओं के दमन चक्र के बीच इन चुनावों मे धॉधली की तमाम आशंकाओं को दरकिनार करते हुए लगभग 90 प्रतिशत की भारी संख्या में मतदान के अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल कर चीन के वरद हस्त वाले तानाशाह राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन का तख्ता पलट दिया. चीन जहां अपने 'खासमखास' के तख्ता पलट और माल्दीव में अपनी बढती पैंठ और चौधराहट पर छाई काली छाया से हतप्रभ और बैचेन है वहीं भारत सहित अंतरराष्ट्रीय जगत ने माल्दीव में लोकतंत्र की बयार के फिर से बहने का स्वागत किया है. वैसे भारत के लिये माल्दीव मे लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम होने के खास मायने है.चीन के 'बेहद खास' हो चुके यामीन दरअसल पिछले कुछ वर्षो से लगातार धुर भारत विरोधी रवैया अपनाये हुए थे .
इस चुनाव से पूर्व देश मे आपातकाल लागू करने और सभी प्रमुख नेताओं और उच्चतम न्या्यालय के न्यायाधीशों के जेल मे ठूंसे जाने पर भारत के मुखर विरोध के बाद तो भारत उस की ऑख की किरकिरी ही बन गया. कभी भारत को दोस्ती के लिये 'अव्वल' नंबर मानने वाले भारत के साथ उस ने तल्खियों के साथ दूरियॉ बना ली थी.जाहिर है माल्दीव के चीन के प्रति इस गहरे झुकाव या यूं कहे उसे अपने यहा पूरी पैठ बनाने देने का भारत सहित हिंद महासागर क्षेत्र पर भी असर पड़ा. उम्मीद है कि अब नई सरकार के आने से भारत व माल्दीव के बीच द्विपक्षीय सहयोग बढेगा लेकिन यह भी तय है कि भारत इस बार अपने इस पुराने परंपरागत मित्र के साथ रिश्ते बढाने मे पूरी सतर्कता रखेगा. माल्दीव में भारत के प्रति जो भरोसा रहा है उसी पूंजी के साथ उसे सावधानी से आगे बढना होगा.
इस चुनाव में विपक्षी गठबंधन तथा मालदीव डेमोक्रैटिक पार्टी के विपक्ष के साझा उम्मीदवार इब्राहीम मोहम्मद सोलिह यामीन के मुकाबले लगभग 16.6 प्रतिशत मतो से जीत दर्ज की. अभी ये नतीजे अंतरिम है तथा अगले सप्ताह अंतिम चुनाव परिणाम घोषित किये जाने की उम्मीद है.दिलचस्प बात यह है, चुनाव नतीजे स्वीकार किये जाने और सत्ता हस्तातंरण को ले कर यामीन की पिछली दमनकारी कार्यप्रणाली देखते हुए तमाम तरह की आशंका भी जा रही है और अंतर राष्ट्रीय जगत की निगाहे इस सत्ता हस्तांतरण पर लगी है. यामीन ने चुनावो के दौरान भी चुनाव मे गड़बड़ी करने और विपक्ष को डराने धमकाने के हर संभव पैतरे अपनाये. बहरहाल इन तमाम हालात के बीच या यूं कहे लोकतंत्र की धज्जियॉ उड़ा कर यामीन ने चुनाव कराये. चुनाव आयोग के अनुसार सतरह नवंबर को नयी सरकार के शपथ ग्रहण का निर्धारित कार्यक्रम है.निगाहें इस बात पर है कि सत्ता हस्तांतरण शांति से सम्पन्न हो जाये.
गौरतलब हैं कि भारत, अमरीका, संयुक्त राष्ट्र सहित विश्व समुदाय माल्दीव की संसद, न्यायपालिका जैसी लोकतांत्रिक संस्थाओं को स्वतंत्र तथा निषपक्ष तरीके से काम करने का अवसर दिये बिना देश मे चुनावों के एलान पर चिंता जताई थी. बहरहाल चुनाव परिणाम आ चुके है वहा ऐसी सरकार निर्वाचित हुई है जो भारत को मित्र मानती है और उस के साथ द्विपक्षीय सहयोग मजबूत करने की पक्षधर रही है..प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जो अपने कार्यकाल में माल्दीव को छोड़ कर आस पड़ोस के सभी देशों मे गये. उन के भी अब माल्दीव के साथ द्विपक्षीय सहयोग बढाने के एजेंडा के साथ जल्द माल्दीव जाने की उम्मीद है .समझा जाता है कि मोदी ्मार्च 2015 में वहां जाने वाले थे, लेकिन पूर्व राष्ट्रपति नाशिद की गिरफ्तारी के बाद देश मे उत्पन्न अस्थिर स्थतियों की वजह से मोदी ने वहा जाना स्थगित दिया था एक वरिष्ठ पूर्व राजनयिक के अनुसार हो सकता है प्रधान मंत्री नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह मे माल्दीव जाये.
गौरतलब है कि भारत समर्थक रहे पूर्व राष्ट्रपति नशीद को आतंकवादी गतिविधियों मे लिप्त होने का अरोप लगा कर 13 साल की कैद की सजा सुनाई गई है जिससे वह चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो गए हैं.इसी के बाद श्री सोलिह को विपक्ष का साझा उम्मीदवार ्घोषित किया. उम्मीद है कि सोलिह सरकार मे नशीद की भूमिका अहम रहेगी.नशीद ने चुनाव नतीजे आने के बाद एलान किया कि वह माल्दीव मे चल रही चीन की आधार भूत परियोजनाओं की समीक्षा करेंगे.हालांकि ऐसा नही लगता है कि चीन नई सरकार आने के बाद अपना डेरा डंडा समेट कर चल देगा लेकिन फिर भी कुछ अंकुश ्तो लगेगा. चीन माल्दीव सहित सेशल्स, नेपाल, श्री लंका जैसे ्क्षेत्र के देशो मे मदद और कर्ज के नाम पर अपना जाल बिछा रहा है. माल्दीव मे भी उस ने वहा आधारभूत ढॉचा विकसित करने के नाम पर बड़े ढेके हासिल किये.माल्दीव की बाहरी मदद का 70 फीसदी हिस्सा अकेले चीन देता है चीन पहले से ही अपना सैन्य बेस मालदीव में बनाने की जुगाड मे है.चीन के माल्दीव से गहरे ्सामरिक हित जुड़े है और अपने विस्तारवादी मंसूबे के लिये चीन माल्दीव का जम कर इस्तेमाल कर रहा है. इसी तरह उस के लगभग सात द्वीपो पर उस ने गहरी पैठ बना ली है,इसी लिये उस का तमाम जोड तोड़ यही रहा कि किसी तरह यामीन गद्दी पर ही बने रहे.
मालदीव मे जारी राजनीतिक अस्थिरता का हिंदमहासागर क्षेत्र और विशेष कर भारत पर प्रभाव पड़ता है,्पड़ोस मे लोकतांत्रिक व्यवस्था का होना क्षेत्र की शांति, सुरक्षा और ्शाति के लिये के लिये अहम है, और वैसे भी पड़ोसी माल्दीव सामरिक दृष्टिकोण से भारत के लिए खासा महत्पूर्ण है. चीन, यह सब एक सोची समझी नीति के तहत कर इस क्षेत्र मे अपना प्रभाव क्षेत्र बढा रहा है. लेकिन यह भी वास्तविकता है कि इन देशों की नज़र में मदद करने के वादे से लेकर असलियत में मदद पहुंचाने में चीन की गति भारत के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा है. भारत के लिये भी जरूरी है कि भारत इस क्षेत्र के देशो मे सहयोग करने वाली विकास परियोजनाओ मे तेज गति से आगे बढे. चीन की विस्तारवादी रवैये की तुलना में भारत के प्रति माल्दीव मे भरोसा है, भारत को इसी पूंजी के साथ द्विपक्षीय सहयोग बढाना होगा. साभार - राजस्थान पत्रिका (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)
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