भारतीय मूल की आस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त हरिंदर सिद्धू सीख रहीं है हिंदी

By Shobhna Jain | Posted on 11th Feb 2017 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली, 11 फरवरी (वीएनआई/आईएएनएस/शोभना जैन/सरोज नागी)। पंजाब से दशकों पहले आस्ट्रेलिया जा बसे माता-पिता की संतान हरिंदर सिद्धू आज भारत में आस्ट्रेलिया की राजदूत हैं। वह अपनी कर्मभूमि और पुरखों के देश के बीच पुल की भूमिका निभा रही हैं। सिद्धू अब हिंदी सीख रही हैं, उन्हें बॉलीवुड फिल्में पसंद हैं और शाहरुख खान की वह फैन हैं। सिद्धू बताती हैं कि इन दिनों हिंदी सीख रही हैं। एक शिक्षिका उन्हे हिंदी सिखाने आती है। वह कहती हैं, "अब थोड़ा-थोड़ा हिंदी बोल लेती हूं। मां के लाख चाहने के बावजूद मैं हिंदी नहीं सीख पाई। सिद्धू बॉलीवुड फिल्मों की, खास तौर से अभिनेता शाहरुख खान की फिल्मों की मुरीद हैं। शाहरुख की नई फिल्म रईस देखने को वह उत्सुक हैं, बस इंतजार समय मिलने का है। शाहरुख से अभी तक न मिल पाने का भी उन्हें अफसोस है। भारत के आंचलिक व्यंजनों की वह बहुत शौकीन हैं, खास तौर पर पंजाबी व्यंजन उनके दिल के करीब है। भारत की विविधता उन्हें बहुत प्रभावित करती है। कुछ समय पूर्व वह अमृतसर के हरमिंदर साहिब गुरुद्वारा गई थीं। वहां उन्होंने मत्था टेका और मनपंसद पंजाबी भोजन सरसों का साग और मक्के की रोटी का लुत्फ उठाया। वह कहती हैं कि भारत की विविधता, भिन्न-भिन्न भोजन, संस्कृति सब कुछ अनूठा है। सिद्धू के माता-पिता दशकों पूर्व आस्ट्रेलिया जा बसे थे। वह कहती है कि उनके माता-पिता की आस्ट्रेलिया में सफलता की कहानी कोई असामान्य कहानी नहीं है, बल्कि हर राष्ट्रीयता के लोगों को वहां खिलने का मौका मिला और वह स्वयं इसका उदाहरण हैं। सिद्धू अचानक यादों में डूबी जाती हैं। वह बताती हैं कि किस तरह उनके पिता ने अपने कुछ मित्रों के साथ मिल कर सिडनी में एक छोटा-सा गुरुद्वारा बनाया, जो आज वहां एक महत्वपूर्ण स्थल बन चुका है। पिता को याद करती हुई सिद्धू कहती हैं, "यह संस्कृति और आस्था को बरकरार रखने की कोशिश थी। सिद्धू ने अपने एक वर्ष के कार्यकाल को द्विपक्षीय संबंधों के लिए अति महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, "दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत बनाने की जो व्यवस्था पहले से मौजूद है, उसे और मजबूती मिल रही है। आस्ट्रेलिया में लगभग पांच लाख भारतीय हैं और पिछले 10 वर्षो में जिस तेजी से वहां जन्म लेने वाले भारतीय मूल के लोगों की संख्या बढ़ी है, उससे ऐसा लगता है कि यह जगह उनके लिए संभावनाओं के सच होने की जगह है। पंजाबी भाषा वहां अब प्रवासी भारतीयों द्वारा बोली जाने वाली सबसे प्रमुख जुबान बन गई है।

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