कैसे होता है अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव?

By Shobhna Jain | Posted on 8th Nov 2016 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली,8 नवंबर (वी एन आई)अमेरीका के नये राष्ट्रपति के लिये आज चुनाव हो रहा है. पूरी दुनिया की निगाहे इस चुनाव पर लगी है.लोग इस बात को जानने के इच्छुक है कि दुनिया के बहुत बड़े ताकतवर देश् का शीर्ष नेता कौन चुना जायेगा. लेकिन इस चुनाव की प्रक्रिया खासी दिलचस्प और जटिल है. मतदान आज हो रहा है.उम्मीद वार की विजय का एलान कल दोपहर तक हो जायेगा लेकिन राष्ट्रपति का फैसला दिसंबर मे होगा. नये राष्ट्रपति आगामी २० जनवरी को शपथ लेंगे, दिलचस्प बात यह हैकि राष्ट्रपति का अंतिम चुनाव जनता सीधे नहीं करती. अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव नवंबर में होने वाले आम चुनाव के महीने भर बाद एक निर्वाचक मंडल करता है. दरअसल 18 वर्ष की आयु के बाद अमेरिकी नागरिकों को राष्ट्रपति चुनने का हक है. वे 8 नवंबर को होनेवाले मतदान में हिस्सा लेंगे लेकिन उनका वोट सीधे इस बात का फैसला नहीं करेगा कि कौन राष्ट्रपति होगा. अमेरिका के सर्वोच्च पद के फैसले का अधिकार एक निर्वाचक मंडल का है जिसमें 538 सदस्य होते हैं. ये सदस्य अमेरिका के 50 राज्यों से चुनकर आते हैं और खास बात यह है कि जो राज्य जितना बड़ा निर्वाचक मंडल मे उसके उतने ही ज्यादा सदस्य यानि ज्यादा वोट.निर्वाचक मंडली में 270 का जादुई ऑकड़ा यानि वोट जीतने वाला उम्मीदवार राष्ट्रपति चुना जाता है इस बार का चुनाव अमरीका के इतिहास के लिये भी मील का पत्थर साबित होगा. अमरीका के सवा दो सौ साल के संवैधानिक इतिहास में पहली बार एक महिला भी उम्मीदवार है.वहां अभी तक किसी महिला के राष्ट्रपति उम्मीदवार तक बनने का मौका नहीं मिला है.महिला के रूप में प्रथम उम्मीदवार बनने का सौभाग्य हिलेरी क्लिंटन को मिला है. वह डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से किस्मत आजमा रही हैं. रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप भी खासी चर्चा या यूं कहे विवादो मे है हर प्रांत को निर्वाचक मंडल के सदस्यों की एक खास संख्या आवंटित की जाती है जिसका फैसला उस प्रांत के सांसदों के आधार पर होता है. संसद के दोनों सदनों प्रतिनिधि सभा और सीनेट में किसी प्रांत के जितने सदस्य होते हैं उतने ही उसके निर्वाचक मंडल में सदस्य होते हैं. प्रतिनिधि सभा में किसी प्रांत के सदस्यों की संख्या उसकी आबादी के आधार पर तय होती है जबकि सीनेट में हर प्रांत के दो सदस्य तय हैं. मसलन न्यूयॉर्क प्रांत के प्रतिनिधि सभा में 27 और सीनेट में दो सदस्य हैं. निर्वाचक मंडली के 29 सदस्यों के लिए न्यूयॉर्क की रिपब्लिकन और डेमोक्रैटिक पार्टियां 29 उम्मीदवारों को मनोनीत करेंगी.अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव कई चरणों में होता है जिसकी प्रक्रिया के बारे में वहां के संविधान के अनुच्छेद 2 में बताया गया है। हर चार साल में एक बार होने वाले इस चुनाव में दो पार्टियां अपनी दावेदारी पेश करती हैं। चुनाव के लिए राष्ट्रपति बनने का ख्वाब देखने वाले उम्मीदवार एक समिति बनाते हैं। यह समिति चुनाव के लिए चंदा इकट्ठा करती है। साथ ही लोगों के मन को भांपने का काम करती है। यह काम चुनाव से दो साल पहले ही शुरू हो जाता है। हालांकि औपचारिक तौर पर चुनावी प्रक्रिया 'प्राइमरी' स्टेज से शुरू होती है। इसके तहत छह महीने के अंदर पार्टी अपनी तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों की सूची जारी करती है। इसके बाद अमेरिका के 50 राज्यों के वोटर्स पार्टी प्रतिनिधि (पार्टी डेलीगेट) चुनते हैं। दूसरे चरण में प्राइमरी में जिन लोगों का चयन किया जाता है वो पार्टी कन्वेंशन में हिस्सा लेते हैं। वहां पर यही चुने हुए प्रतिनिधि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चुनाव करते हैं। इस फेज में नामांकन की प्रक्रिया होती है। तीसरे चरण में चुनाव प्रचार शुरू होता है। इसमें पार्टी उम्मीदवार जनता का समर्थन जुटाने की कोशिश करते हैं। उम्मीदवार टेलीविजन के माध्यम से कई मुद्दों पर बहस भी करते हैं। इतना ही नहीं अमेरिका में भी चुनाव प्रचार के अंतिम हफ्तों में उम्मीदवार अपना पूरा ध्यान स्विंग स्टेट्स पर लगा देते हैं, ये ऐसे मतदाता होते हैं जो किसी भी पक्ष की तरफ जा सकते हैं। जबकि चौथा चुनाव प्रक्रिया का अंतिम चरण होता है। इसमें इलेक्टोरल कॉलेज राष्ट्रपति पद के लिए मतदान करता है। राज्यों के मतदाता इलेक्टर चुनते हैं। ये इलेक्टर राष्ट्रपति पद के किसी न किसी उम्मीदवार के समर्थक होते हैं। इलेक्टर चुनने के बाद जनता का काम खत्म हो जाता है। मतलब चुनाव में जनता की भागेदारी यहीं तक सीमित है। ये इलेक्टर मिलकर ही इलेक्टोरल कॉलेज बनाते हैं। यही इलेक्टोरल कॉलेज राष्ट्रपति का चुनाव करता है। हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव (प्रतिनिधि सभा) में 435 सदस्य होते हैं, जबकि सीनेट में 100 सदस्य बैठते हैं। इन दोनों सदनों को मिलाकर संख्या होती है 535, इसके बाद अमेरिका के 51वें राज्य कोलंबिया से तीन सदस्य आते हैं। यानी इसको मिलाकर 538 इलेक्टर्स अमेरिकी राष्ट्रपति को चुनते हैं। अमेरिका में जब मतदाता राष्ट्रपति चुनाव में मतदान करते हैं तो वे राष्ट्रपति का चुनाव करने के बदले इस बात का फैसला करते हैं कि वे दो बड़ी पार्टियों में से किस पार्टी को अपने से प्रांत से निर्वाचक मंडली में सदस्य भेजने के लिए चुनेंगे. जिस पार्टी को सबसे ज्यादा मत मिलते हैं वही पार्टी प्रांत से निर्वाचक मंडली में पूरे के पूरे सदस्य भेजती है. एक महीने बाद दिसंबर में निर्वाचक मंडली के सदस्य अपने अपने प्रांतों में इकट्ठा होते हैं और राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान करते हैं. कांग्रेस को ये वोट जनवरी में मिलते हैं जब उनकी गिनती होती है. निर्वाचक मंडली में 270 वोट जीतने वाला उम्मीदवार राष्ट्रपति चुना जाता है. आम तौर पर नवंबर में होने वाले चुनाव के लोकप्रिय मतों में और दिसंबर को निर्वाचक मंडल के मतदान में एक ही उम्मीदवार राष्ट्रपति चुना जाता है. लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता और अंतर होने पर निर्वाचक मंडल का वोट अहम माना जाता है. अब तक अमेरिकी चुनाव के इतिहास में तीन उम्मीदवारों ने लोकप्रिय वोट हारने के बावजूद राष्ट्रपति बनने में कामयाबी पाई है. 2000 के चुनाव में डेमोक्रैटिक उम्मीदवार अल गोर को रिपब्लिकन जॉर्ज डब्ल्यू बुश से पांच लाख वोट ज्यादा मिले थे, लेकिन निर्वाचक मंडल में 271 वोट होने के कारण जीत बुश की हुई. राष्ट्रपति चुनने के लिए निर्वाचक मंडली की व्यवस्ता संविधान निर्माताओं के बीच समझौते से हुई. उन दिनों लोकतंत्र नया था और उसे टेस्ट नहीं किया गया था. कुछ संविधान निर्माताओं को डर था कि राष्ट्रपति के सीधे चुनाव से भीड़तंत्र को बढ़ावा मिलेगा. 1788 में संविधान बनने के बाद से अमेरिका बहुत बदल गया है लेकिन चुनाव व्यवस्था वही रही है. हालांकि ज्यादातर अमेरिकी उसे बदलना चाहते हैं. 2011 में हुए एक गैलप सर्वे के अनुसार 60 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि राष्ट्रपति को सीधे चुना जाए. निर्वाचक मंडल चुनने के लिए अमेरिका के 48 प्रांतों में विजेता को सारी सीटें के सिद्धांत से फैसला होता है. कैलिफोर्निया में राष्ट्रपति चुनाव में बहुमत हमेशा डेमोक्रैटिक पार्टी को मिलता है, इसलिए आम तौर पर हमेशा निर्वाचक मंडल में की सारी सीटें मिल जाती हैं. प्रांत में रिपब्लिकन पार्टी को कोई सीट नहीं मिलती. नतीजा ये होता है कि डेमोक्रैटिक पार्टी मानकर चलती है कि कैलिफोर्निया की सीटें उसे मिलेगी और रिपब्लिकन पार्टी उसे चुनौती नहीं देती. यही हाल टेक्सस में रिपब्लकिन का है. विपक्षी पार्टी वहां जीतने की कोशिश भी नहीं करती. सारा ध्यान कोलोरैडो, फ्लोरिडा, नेवादा, ओहायो और बर्जीनिया जैसे स्विंग स्टेट पर होता है जहां बहुमत बदलता रहता है.वी एन आई

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