एक लीजेंड का चले जाना...फिडेल कास्त्रो से जुड़ी कुछ बाते

By Shobhna Jain | Posted on 26th Nov 2016 | VNI स्पेशल
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एक लीजेंड का चले जाना...फिडेल कास्त्रो से जुड़ी कुछ बाते नई दिल्ली,२६ नवंबर (शोभनाजैन/वीएनआई) क्यूबा के करिशमाई नेता और महान क्रांतिकारी फिडेळ् कास्त्रो का आज ९० वर्ष की आयु मे हवाना मे निधन हो गया.देश को तानाशाह बतिस्ता से मुक्ति दिलवाने के बाद क्रांतिकारी कास्त्रो लगभग पॉच दशक तक प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति के रूप मे क्यूबा के शीर्ष प्रशासक रहे और उनके कार्यकाल मे अनेक क्षेत्रो मे क्यूबा ने विकास की नई उंचाईयॉ छूई विशेष तौर पर स्वास्थय सेवाओ और शिक्षा के के क्षेत्र मे उसकी उपलब्धियॉ विकसित देशो से भी आगे निकल गया,हालांकि उनके विरोधियो का लगातार यही कहना रहा कि उनकी आर्थिक नीतियॉ देश के लिये फायदेमंद नही रही. भारत के साथ भी उनके मधुर और प्रगाढ संबंध रहे, वर्ष १९८३ मे उन्होने नई दिल्ली मे आयोजित गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन के बाद इस आंदोलन की कमान भारत के प्रधान मंत्री के रूप मे श्री मति इंदिरा गंधी को सौंपी कम्युनिस्ट क्रांति के जनक फिडेल कस्त्रो ने अमेरिका समर्थित फुल्गेंकियो बतिस्ता कास्त्रो ने बतिस्ता की तानाशाह सरकार को उखाड़ फेंकने के बाद 49 साल तक क्यूबा में शासन किया. सत्ता पलट से पूर्व बतिस्ता प्रशासन के खिलाफ असफल विद्रोह की अगुवाई करने के लिए 1953 में कैद कर लिया गया था, तख्तापलट के लिए जेल में रहने के दो साल बाद वह मेक्सिको में निर्वासन में चले गए.लेकिन बाद में 1955 में मानवता के आधार पर रिहा कर दिया गया. वह 1956 में क्यूबा लौट आए और क्रांतिकारी आंदोलन की कमान संभाली. आखिरकार कास्त्रो ने फुलखेंशियो बतीस्ता को बेदखल करने के बाद नए साल के दिन 1959 को क्यूबा में सत्ता संभाली लेकिन बाद में 1955 में मानवता के आधार पर रिहा कर दिया गया. वह फरवरी 1959 से दिसंबर 1976 तक क्यूबा के प्रधानमंत्री और फिर फरवरी 2008 तक राष्ट्रपति रहे. इसके बाद उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया और उनके भाई राउल कास्त्रो को यह पदभार मिला. कास्त्रो के समर्थक उन्हें एक ऐसा शख्स बताते हैं, जिन्होंने क्यूबा को वापस यहां के लोगों के हाथों में सौंप दिया. हालांकि उन के विरोधी उन पर लगातार विपक्ष को बर्बरतापूर्वक कुचलने का आरोप लगाते रहे.. कास्त्रो ने 1961 में सीआईए समर्थित विद्रोहियों के खिलाफ अपने सैनिकों का नेतृत्व किया. जो उनके तख्ता पलट के लिए बे ऑफ पिग में उतरे थे. कास्त्रो की सबसे बड़ी परीक्षा की घड़ी साल 1962 में उनके सामने आई थी जब उन्हें अमरीका के राष्ट्रपति जॉन एफ़ कैनेडी ने क्यूबा से सोवियत मिसाइलों को हटाने की चेतावनी थी,बाद मे सोवियत नेता निकिता क्रॉसचोफ और फ़िदेल कास्त्रो ने मिसाइलें हटा ली और परमाणु युद्ध की आशंका ख़त्म हो गई.अमरीका से सीधे टक्कर लेने की वजह से लगातार ऐसे आरोप लगते रहे कि अमरीका की गुप्तचर एजेंसी सीआईए ने जाने नकितनी ही बार उनकी हत्या करवाने की कौशिश की. इसी को ध्यान मे रख शायद कास्त्रो ने21 जुलाई, 2006 में अर्जेंटीना में लातिन अमेरिकी देशों के सम्मेलन में कहा 'मैं 80 साल का होने पर बहुत खुश हूं. मैंने ऐसा कभी सोचा था, खासकर एक ऐसे पड़ोसी के होते हुए, जो हर दिन मुझे मारने की कोशिश कर रहा है. उनके समर्थको का कहना है कि जब दुनिया भर में कम्युनिस्ट शासन ढहते जा रहे थे. लेकिन फ़िदेल कास्त्रो अपने सबसे बड़े दुश्मन संयुक्त राज्य अमरीका की खुलकर आलोचना करते रहे और लाल झंडे को कभी झुकने नहीं दिया. कास्त्रोअप्रैल में देश की कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस को अंतिम दिन संबोधित किया था. उन्होंने माना था कि उनकी उम्र बढ़ रही है, लेकिन उन्होंने कहा था कि कम्युनिस्ट अवधारणा आज भी वैध है और क्यबा के लोग 'विजयी होंगे.' उन्होंने अपने संबोधन में कहा था, 'मैं जल्द ही 90 साल का हो जाऊंगा, जिसकी कल्पना मैंने कभी नहीं की थी. जल्द ही मैं अन्य लोगों की तरह हो जाऊंगा, लेकिन हम सभी की बारी जरूर आनी चाहिए. 'फिदेल इस वर्ष अप्रैल महीने से सार्वजनिक रूप से नहीं दिखे थे. उनके बारे में बताया जाता था कि वह हाल के वर्षों में आंत की बीमारी से पीड़ित थे, लेकिन उनकी सेहत के बारे में आधिकारिक तौर पर गोपनीयता रखी जा रही थी.वी एन आई

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