नई दिल्ली,4 अप्रैल ( शोभना जैन,वीएनआई) मोहवश रह- रह कर पहाड़ो की तरफ खिंचे चले जाने और उनकी तरफ पलट पलट कर जाने वाले भारतीय पर्वातारोही मल्ली मस्तान बाबू को आखिर पहाडो ने अपने पास हमेशा के लिये बुला ही लिया. गत 24 मार्च से अर्जेटीना की एंडीज़ पर्वत श्रंखला से पर्वतारोहण के दौरान लापता हुए बाबू का शव अंततः खोज बीन के बाद इस पर्वत पर 6000 मीटर की उंचाई पर मिल गया है. इतने दिनो से बाबू की खैरियत और \'अनिष्ट नही घटने\' की दुआ मांगने वाले बाबू के दोस्तो और प्रंशसको ने फेस बुक पर यह दुखद खबर साझा करते हुए लिखा \'पर्वतो ने अपने सबसे प्यारे बच्चे को हमेशा के लिये अपने पास बुला लिया है...चिर शांति मे रहो मल्ली मस्तान बाबू..
कुशल पर्वतारोही माने जाने वाले बाबू आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले के रहने वा्ले थे.अर्जेंटीना और चिली के बीच इस पर्वत श्रंखला पर चढने के लिये बाबू 16 दिसंबर को घर से निकले थे, बताया गया है कि सफर की शुरूआत से ही बर्फानी और तूफानी हवायों के साथ वहा का मौसम बेहद खराब हो गया था और 24 मार्च से उनका कोई अता पता ही नही लग रहा था. भारत सरकार भी बाबू की खोज खबर लगाने के प्रयासो मे जुटी थी. विदेश् मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरूद्दीन ने कुछ समय पूर्व ट्वीट कर कहा था कि बाबू की खोज खबर के लिये भारत सरकार अर्जेटीना और चिली के प्रशासन के साथ मिल कर प्रयास कर रही है. बाबू के शव मिलने के बाद प्रवक्ता ने आज देश के इस बहादुर सपूत के जाने पर देश का दुख साझा करते हुए लिखा\' हम सब इस \'मुश्किल हालात\' मे बाबू के दोस्तो और परिवार के साथ मिल कर अर्जेटीना और चिली के साथ मिल कर अगले कदम की दिशा मे काम रहे है \'बाबू के के लापता होने की खबर सुनने के बाद से ही उनकी बहिन दोरसम्मा उनकी तलाश मे पहले से ही अर्जेंटीना पहुंच चुकी है.
चालीस वर्षीय बाबू आई आई एम कोलकता,आई आई टी कानपुर के छात्र रहे लेकिन तीन वर्ष तक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी के बाद पर्वारोहण का जनून इस कदर उन पर हावी हो गया कि फिर दुनिया दारी छोड वह पहाडो के ही हो गये.भारत के शीर्ष पर्वतारोही माने जाने वाले बाबू को दुनिया की सात पर्वत श्रंखलाओ मे सबसे कम वक्त, केवल 172 दिन मे चढने का गौरव हासिल था. एंटार्कटिका की सबसे उंची पर्वत श्रंखला विन्सन पर्वत शिखर पर पहुंचने वाले वे पहले भारतीय बने. \'लैटिन अफेयर्स ब्लॉग\' मे \'श्री विश्वनाथन\' को दिये एक साक्षात्कार मे बाबू ने परबतो के साथ अपने रिश्तों के बारे मे भावुक होते हुए कहा था \'जब भी मै किसी पर्वत शिखर पर चढता हूं, वे मुस्करा कर मेरा स्वागत करते है, वहां इतना अकेलापन और सब कुछ इतना सर्द और ठहरा ठहरा सा है कि वो मुझे देखते ही गदगद हो जाते है, इसीलिये पहाड़ो पर मै अकेला ही जाना ज्यादा पसंद करता हूँ , ताकि हम सिर्फ दोनो साथ हो और खुल कर मन की बात कर सके, और यह बातचीत मेरी अमूल्य धरोहर है...\' बाबू के एक प्रंशसंक और विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी डॉ सुमित सेठ के अनुसार \' पहाड़ो पर आखिरी सांस लेना बाबू की दिली ख्वाहिशो मे से एक ख्वाहिश थी\' चाहत तो ठीक है बाबू ,लेकिन अपने दोस्त और हमराज पहाड़ो के पास हमेशा के लिये चले जाने के लिये यह उम्र सही नही ...अब अपने दोस्तो के साथ चिर शांति से रहना.वी एन आई